विजय नारायण त्रिपाठी

बहुत कम ही लोग अब मिलते हैं जो मुझे पहली बैठक-मुलाकात में ही प्रभावित करते हैं। विजय उनमें से एक निकले। मुझे उनसे मिलना था और मैं कोई बातचीत का योजक नहीं सोच पा रहा था। वे सज्जन निर्माण में लगे ठेकेदार हैं और मैं एक रिटायर्ड नौकरीपेशा। दोनों में क्या बातचीत हो सकती है? ईंट-गारा-सीमेंट-संगमरमर से मेरा कोई वास्ता नहीं रहा। उनसे क्या बात करूंगा? ब्लॉग और पुस्तकें, नदी और साइकिल – ये विषय हर किसी को आकर्षित नहीं करते। बैठेठाले को भले करते हों, किसी कामकाजी आदमी को तो नहीं ही कर सकते। मैं अपने को विजय त्रिपाठी से मुलाकात के लिये मिसफिट पाता था पर विजय जी ने मुझे मेरी खोल में से मुझे खींच निकाला! और उनके साथ तीन चार घंटे की बातचीत यादगार बन गयी।

विजय कौशाम्बी के हैं। कौशाम्बी जिले के नहीं; खास गंगा किनारे कोसम गांव के; जो ऋग्वैदिक काल में भारत का एक महाजनपद हुआ करता था। वह गांव भारत का गौरवमय अतीत/इतिहास अपने गर्भ में लिये है। विजय के पिता और बाबा उस गांव के प्रधान रहे हैं। मुझे रोमांच सा हुआ! मैं भारत के एक महत्वपूर्ण स्थल के एक महत्वपूर्ण व्यक्ति के साथ समय बिता रहा था। आई फैल्ट ऑनर्ड!

विजय नारायण त्रिपाठी

कौशाम्बी का नाम भारत के गौरव पूर्ण अतीत का एक बड़ा आधार है। मैं जिन गिनेचुने प्राचीन स्थलों का भ्रमण करना चाहूंगा उनमें प्रमुख है कौशाम्बी।… मैं कल्पना करता हूं कि किसी पिकअप वाहन मेंं अपनी साइकिल लाद कर प्रयागराज उतरूंगा और वहां से कौशाम्बी तीन चार दिन में खरामा खरामा साइकिल से घूमूंगा। कुछ उसी तरह जैसे पास के अगियाबीर टीले पर जाता रहा हूं। उसके बाद इसी तरह मुजफ्फरपुर जा कर वैशाली के भग्नावशेष देखने की साध है। ऐसी साइकिल यात्रा का सत्तर साल के व्यक्ति का लोड टेस्ट तो घर के सबसे पास के कौशाम्बी से ही होगा। और उसके निमित्त बनेंगे विजय नारायण जी!

ब्लॉग और पुस्तकें, नदी और साइकिल – ये विषय हर किसी को आकर्षित नहीं करते। बैठेठाले को भले करते हों, किसी कामकाजी आदमी को तो नहीं ही कर सकते।

विजय नारायण जी का गांव का पुश्तैनी मकान; बकौल उनके; बहुत बड़ा है। कोसम खिराज नामक इस गांव को मैं नक्शे में तलाशता हूं तो गांव के दो किमी परिधि में नजर आते हैं कौशाम्बी का अशोक का स्तम्भ और यमुना किनारे उदयन का किला। गूगल मैप के साथ उपलब्ध चित्रों में टीला और भग्नावशेष नजर आते हैं। विजय जी से मैत्री प्रगाढ़ करनी ही होगी जीडी तुम्हे! :lol:

विजय नारायण त्रिपाठी जी की बैठक में।

मैं जानता हूं कि मैं विजय जी के किसी काम का नहीं। नौकरशाही में अपने पूर्व पद पर होता तो शायद उन्हें मुझमें सहज रुचि होती। पर बीता समय कहां लौटता है। फिर भी मुझमें कुछ आकर्षण शायद उन्हें नजर आया और मेरा हाथ अपने हाथ में ले कर कुछ समय मुझसे बोले बतियाये। यह भी कहा कि मुझे अपना गांव दिखाने घुमाने के लिये शीघ्र ही प्रबंध करेंगे। क्या पता वे ही निमित्त हों मेरी भारत के अतीत दर्शन की स्वप्न यात्रा तो यथार्थ रूप देने में।

विजय जी के सराय अकिल के घर में मुलाकात हुई थी। उनके दोनो बेटे हम लोगों के आतिथ्य में सहज और आत्मीय भाव से लगे थे और एक के बाद एक उत्कृष्टतम व्यंजनों को परोसते हमें पॉज लेने का भी मौका नहीं दे रहे थे। मुलाकात के अंत में रात्रिकालीन भोजन था और मेरे पास डिनर के पूरे समय बैठे विजय बड़े धैर्य से धीरे धीरे भोजन करते समय मुझसे बातचीत करते रहे। कोई उकताहट नहीं थी उनमें। इतनी तवज्जो मुझे बहुत अर्से बाद किसी ने दी थी। और पहले तो तवज्जो देने वालों का कोई न कोई स्वार्थ मुझसे होता था, विजय जी का व्यवहार तो पूर्णत आत्मीयता की परिधि में आता था। खालिस अपनेपन से भरा।

पुरातन स्थलों को खरामा खरामा देखने का स्वप्न है मेरा। पाउलो कोहेलो की किताब में मुझे मिला था कि अगर कोई स्वप्न हम गहरे से देखते हैं तो प्रकृति पूरी तरह साथ देती है। प्रकृति शायद विजय नारायण तिवारी जी के माध्यम से साथ देने को तत्पर हुई है। उन्हीं के सौजन्य से यमुना का तट और भारत के एक महत्वपूर्ण महाजनपद का अतीत दर्शन प्रारम्भ होगा।

एक जाग्रत स्वप्न होगा कौशाम्बी! विजय नारायण जी की जय हो!

विजय जी के घर से विदा होते समय एक ग्रुप फोटो

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

6 thoughts on “विजय नारायण त्रिपाठी

  1. आदरणीय ज्ञानदत्त जी,

    आप का लिखा बनाया ब्लॉग हिंदी और उत्तर भारतीय तत्कालीन संस्कृति की धरोहर है। विजय नारायण त्रिपाठी जी निश्चित रूप से प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी होंगे, अन्यथा आपके ब्लॉग में उन्हें ऐसा स्थान ना मिलता।

    आपका पोस्ट यूं ही पढ़ने को मिलता रहे।

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