किनारा नहीं दिखता था। इस किनारे इक्का दुक्का लोग भर थे स्नान करते। कोई नाव भी नहीं। कोई बंसी लगा मछली पकड़ते हुये भी नहीं था। पक्षी भी कम ही दिखे।
अचानक प्रयाग की ओर से एक खाली मोटरबोट आती दिखी। दूर से ही उसकी आवाज आ रही थी। कोहरे को चीरती आ रही थी वह। मैने मोबाइल संभाला। छोटा सा वीडियो बना।
मोटरबोट सम्भवत: बनारस से प्रयाग गई होगी सैलानियों के साथ। लौटानी में खाली आ रही होगी। पंद्रह बीस किमीप्रघ की रफ्तार से चल रही होगी। नदी की धार में चल रही थी, सो ईंधन भी कम लग रहा होगा।
कभी ऐसी बोट पर मैं बैठ कर गया नहीं। बनारस से प्रयाग की यात्रा करीब तीन-चार घंटे की होती होगी?
मेरा मन करता है नाव में गंगा की यात्रा की जाये – शुरुआत प्रयाग से बनारस की की जाये। ऐसी मोटरबोट में नहीं, एक पतवार वाली डोंगी में। पर शायद मैं मन लगा कर नहीं सोचता। अन्यथा, जैसे पॉउलो कोहेलो कहते हैं – स्वप्न अगर पूरे मन से देखा जाये तो पूरी कायनात आपकी सहायता को तत्पर हो जाती है। बहरहाल एकांत में मोटरबोट का जल और कोहरे को चीर आगे जाना बहुत अच्छा लगा।
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काफी अर्से से गंगा किनारे जाना नहीं हो रहा था। आज लगा कि रोज सवेरे वहां हो आना ही चाहिये।

ग़ालिब तो नाव में शायद कलकत्ता तक गए थे यूपी से शुरू करके। आप बनारस तक तो पक्का घूमकर आइए।
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