लोग सोशियो-कल्चरल व्यापकता अपना रहे हैं और मैं भुंजवा-भरसांय-भुने दाने की ओर लौटने के उपक्रम कर रहा हूं। मेरा मानना है कि दीर्घ जीवन के सूत्र में साइकिल चलाने और भूजा सेवन का महत्वपूर्ण स्थान है। इन्ही के साथ जीवन शतायु होगा।
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बाजरा और जोन्हरी के खेतों से गुजरते हुये
एक ही दिन में सुबह शाम की गांव की सड़कों की सैर ने मुझे अलग अलग बिम्ब दिखाये। … जब कुछ लिखने की सामग्री टटोलने का मन हो, तो गांव देहात की सड़कों का ही रुख करना चाहिये। मानसिक हलचल वहां मजे से होती है।
टल्ला
मैंने उस उपकरण का नाम पूछा – उन्होने बताया कि टल्ला कहते हैं। शुद्ध देसी जुगाड़ है। मार्केट में नहीं मिलता। बनाते/बनवाते हैं वे।
आसपास के चरित्र
यह बंदा तो फकीर लग रहा था। बूढ़ा। दाढ़ी-मूछ और भौहें भी सफेद। तहमद पहने और सिर पर जालीदार टोपी वाला।
उसके हाथ में एक अजीब सी मुड़ी बांस की लाठी थी। कांधे पर भिक्षा रखने के लिये झोला।
चारधाम यात्रा के अंतिम धाम की ओर प्रेमसागर
सवेरे जल्दी चल कर प्रेमसागर करीब 33-34 किमी चल कर कर्णप्रयाग पंहुचे थे। रुद्रप्रयाग से बदरीनाथ की पैदल यात्रा वे कर रहे हैं। केदारनाथ की यात्रा की चारधाम यात्रा एक अनुषांगिक (सबसीडियरी/एंसिलियरी) यात्रा है।
प्रेमचंद को यकीन है कि मोक्ष मिलेगा कभी न कभी
वे अपने एक ट्रांस के अनुभव को बताने लगे – “सवेरे की रात थी। नींद में मुझे लगा कि त्रिशूल गड़ा है – धरती से आसमान तक। त्रिशूल के ऊपरी भाग पर डमरू लटका है और पास में शिवजी आसन लगा कर ध्यानमग्न हैं।