पेड़ों की छंटाई

***पेड़ों की छंटाई***

सर्दियों की शुरुआत में एक महत्वपूर्ण काम पेड़ों की छंटाई का होता है। घर परिसर के वृक्षों की छंटाई में हमारा मुख्य ध्येय वृक्षों से छन कर आती धूप में वृद्धि की चाहत है। गर्मियों में हम चाहते हैं कि वृक्ष जितना घने हो सकते हैं, हों, जिससे खूब छाया और शीतलता मिले। सर्दियों में उसके उलट जरूरत होती है। सूरज दक्षिणायन में होते हैं और दक्षिण में लगे पेड़ हमारी धूप बहुत रोकते हैं। जब हमने घर बनाया था तो गर्मी बहुत लगती थी। पेड़ थे ही नहीं। खेत में बना था घर। इसलिये हमने खूब पेड़ लगाये और दक्षिण में तो और भी अधिक लगाये। अब जब वे सब बड़े हो गये हैं, सर्दियों में धूप छेंक लेते हैं। लिहाजा छंटाई कराना जरूरी हो जाता है।

गांव का एक बड़ा हिस्सा जिसके पास अपनी जमीन और अपने वृक्ष नहीं हैं, वह हमारे घर के पेड़ों की छंटाई को आतुर रहता है। कई लोग अपनी टंगारी (कुल्हाड़ी) लिये मंडराने लगते हैं अपनी सेवायें मुफ्त में देने के लिये। छंटाई कराने का नियम है कि छंटाई करने वाला छोटी टहनियां और पत्ते उठा ले जाता है। वे उसके लिये सर्दियों में जलावन का काम देते हैं। सर्दियों में जलावन लकड़ी और पत्तों की बेहद कमी हो जाती है। इसलिये सर्दियां शुरू होते ही लोग उसका संग्रह करने में तत्परता दिखाते हैं।

मैं सोचता था कि भले ही हम और गांव वाले छंटाई में उद्धत रहते हैं, पेड़ जरूर आतंकित होते होंगे कुल्हाड़ी के प्रहार से। पर अब लगने लगा है कि एक संतुलित छंटाई पेड़ों को भाती होगी। आखिर सर्दियों के पहले पतझर में वे खुद अपनी पत्तियां और छोटी टहनियां त्यागते हैं जिससे नये पत्ते आ सकें, उनकी केनॉपी बेहतर बन सके और उन्हें वृद्धि का स्पेस मिल सके। यह पाया भी है कि छंटाई के बाद पेड़ों की ग्रोथ तेज होती है।

कुल मिला कर संतुलित छंटाई में हमारा, ईंधन की तलब वालों का और वृक्षों का – तीनों का हित है। विन-विन-विन सिचयुयेशन! बस हमें ध्यान रखना है कि पेड़ों के विकास और उनकी मूलभूत संरचना को आघात न लगे। यह ध्यान रखने का काम मेरी पत्नीजी बखूबी करती हैं। पेड़ों और पौधों के लिये वे उस मां की तरह हैं जो उनके प्रति वात्सल्य से सराबोर हैं; पर एक बच्चे को जब आरोग्य के लिये टीका लगवाना हो तो सूई कोंचवाने से परहेज भी नहीं करतीं। कड़वी दवा भी पिला सकती हैं।

हमने छंटाई के लिये किसी बाहरी को नहीं, अपने वाहन चालक अशोक को चुना। उसपर यकीन है कि वह निर्देश का पालन करने में अपने लकड़ियों के लोभ को हावी नहीं करायेगा। कल उसने सागौन के दो तीन पेड़ों की छंटाई की। अभी बहुत से वृक्ष बाकी हैं। काटी हुई टहनियां वह ले जायेगा। पर मेरे काम की पांच सात लम्बी लाठीनुमा डंडियां छोड़ जायेगा। उनमें मेरी आसक्ति है। उनसे आम तोड़ने की लग्गी बन सकेगी। (वैसे कभी अवसर नहीं आया) सांप को भगाने या मारने के लिये भी वे सही रहेंगी।

छंटाई शुरू हो गई है। पर अभी भी छंटाई की फ्री-सर्विस देने वाले आसपास चहरक महरक कर रहे हैं। और कुछ न मिले तो सागौन की पत्तियां ही मिल जायें! सर्दियों में वह सब, जो जल कर ऊष्मा देता है, काम का है और उसका संग्रह प्रारम्भ कर चुके हैं गांव वाले। मैं लोगों की गरीबी और ईंधन संग्रह की इस प्रवृत्ति पर ज्यादा नहीं लिखना चाहता; पर बावजूद इसके कि घर घर फ्री गैस चूल्हे मिल गये हैं, सबसिड़ी खूब मिल रही है; लोग छोटी टहनियों-पत्तियों के लिये मशक्कत करते दीखते हैं।

*********

पेड़ों की चुप्पी में,
हवा हल्की सी सरसराई।
एक-एक टहनी,
जैसे पुरानी यादें उतार रही हो।

अशोक आया,
हाथ में टंगारी लिए,
आंखों में एक छोटा सा लालच,
टहनियाँ, मानो कोई खजाना हों।

कुल्हाड़ी का हर प्रहार,
पेड़ का मौन स्वीकार,
जैसे कह रहे हों,
“तुम्हें जलावन चाहिये,
पर एक सीमा से आगे मत जाना।”

सूरज की पहली किरण में,
छोटे पौधों ने ली राहत की साँस,
धूप की हल्की गर्मी,
अब उनकी नाजुक पत्तियों को छूने लगी।


https://x.com/GYANDUTT/status/1855483033698087101


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

3 thoughts on “पेड़ों की छंटाई

  1. अब कविता लेखन में भी हाथ आजमाइए आप

    संजीत त्रिपाठी

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