>>> हूडी <<<
मुझे यह पहनावा लगता था कि लूंगाड़ों का है। कभी मैने इसे या इसे पहनने वालों को सीरियसली नहीं लिया। पर मेरी पतोहू ने एक हूडी मेरे लिये खरीद दी। बहुत समय तक वह घर में उपेक्षित पड़ी रही। एक बार नापने के लिये मैने पहना तो घुटन सी लगी। बंद बंद। क्लस्ट्रोफोबिया सा हुआ। कई महीने ऐसे ही गुजरे।
अगली सर्दियों में मैने दिल कड़ा कर उसे फिर पहना। बाहर घरपरिसर में साइकिल चलाते समय मुझे एक ऐसा स्वेटर चाहिये था जिसमें डीप-पॉकेट हो; मोबाइल रखने के लिये। इस हूडी में वह था। पहनने पर मैने पाया कि हूडी पहनने के साथ साथ कोई कुलही या टोपी भी नहीं चाहिये। उसकी कुलही बहुत आरामदायक लगी। सर्दियों में एक ही पहनावे से कई उपयोग सध गये। स्वेटर, कुलही, मफलर और जेब वाली जैकेट – सब का समन्वय हो गया एक हूडी में।
सो अब, पंद्रह दिनों में ही; हूडी मेरा राष्ट्रीय पहनावा हो गया है सर्दियों का। मेरा पर्सोना हूडायमान हो गया है!
हूडी आजकल की ईजाद नहीं है। सन 1930 से यह अस्तित्व में है। पांच साल बाद हूडी शताब्दी भी शायद मने।
उन्नीस सौ तीस के दशक में चैम्पियन ब्राण्ड की निकरबोकर निटिंग कम्पनी (Knickerbocker Knitting Company) ने इसका आविष्कार किया। यह कम्पनी सर्द जलवायु में काम करने वाले मजदूरों के लिये एक ऐसी पोशाक बनाना चाहती थी, जिसमें टोपी जुड़ी हो। इस जरूरत अनुसार हेडकवर और गर्मी प्रदान करने के लिए इसे डिज़ाइन किया गया था, ताकि मजदूरों को ठंडी हवा से सुरक्षा मिल सके।
सन 1930 के दशक में इसका प्रारम्भिक नाम हुडेड स्वेटशर्ट था। हुड अर्थात सिर पर धारण किया जाने वाला शिरस्त्राण। जब इसे सत्तर के दशक में लुंगाड़ों ने अपनाया तो नाम भी संक्षिप्त कर हूडी बना दिया। अब यह कैजुअल परिधान भी है और इसका नाम भी कैजुअल है – हूडी (Hoodie)!
पर यह फैशन में 1970 के दशक में आई अमरीका में। इसे गली कूचों के फैशन के रूप में अपनाया न्यूयॉर्क और अन्य शहरों में। हॉलीवुड की फिल्म रॉकी में इसे सिल्वेस्टर स्टेलोन ने पहना और यह “विद्रोही” सोच का प्रतीक बन गई। यह अमरीका में 1970 के दशक में फैशन बनी पर इसे मेरी स्वीकृति पाने में पचास साल लगे। अब जब मेरा दिल हूडी पर लट्टू हुआ है; अमरीकी जाने क्या अपना चुके होंगे!
अमरीकी कितने प्रयोगधर्मी हैं? आज से सौ साल पहले भी मजदूरों की जरूरतों के अनुसार एक वस्त्र बनाने – ईजाद करने में लगे थे। कम्पनियां उसमें अपना मुनाफा देख मेहनत कर रही थीं। यहां भारत में कई कई शताब्दियों से यह प्रयोगधर्मिता गायब हो गई है! मैं गांव के कुम्हारों को लीक से हट कर कोई मिट्टी का बरतन बनाने को कहता हूं तो वे तैयार नहीं होते। उनका टके सेर जवाब होता है – के खरीदे? केऊ न ले!
यही हाल बांस की दऊरी भंऊकी बनाने वाले बांस के कारीगर धईकारों का है। मैं उनसे कहता था कि बरसात में मुझे एक छाता नुमा बांस का हैट चाहिये जिससे दोनो हाथ काम करने को खाली रहें। मैं उनके पास कई बार गया। सौ रुपया बयाना भी दिया। पर उन्होने नहीं बनाया। मेरे सौ रुपये भी डूब गये।
कोई कारीगर लकीर से हट कर चलता ही नहीं। कोई साभ्रांत घर वाला अपनी लड़कियों लड़कों को गीत-सगीत-अल्पना-रंगोली-चित्रकारी के लिये प्रोत्साहित ही नहीं करना चाहता। सब चाहते हैं कि लड़की बीए एमए कर टीचर बन जाये और उसकी शादी अच्छे से हो जाये। लड़का यूपीएससी क्रैक कल ले या थानेदार बन जाये! … खैर मेरा यह दुख दर्द तो बारम्बार झलकता ही रहेगा। उस विषय को जाने दिया जाये!
अब आप मेरे घर आयें तो बहुत सम्भव है मुझे एक शॉल लपेटे (जो मेरा सर्दियों का सामान्य परिधान होता था) की बजाय हूडी पहने पायें!
एक तुकबंदी पढ़ें –
गुनगुनी धूप, बाग में सजी हरियाली,
हूडी में बदली, बुढाते मनई की छटा निराली,
सादगी गायब और नये जमाने के साथ,
मेरा चेहरा बदला, सर्दी को देने मात। :lol:


हूडी आपको वॉर्म तो रखती ही है पर मुझे सबसे बढ़िया फायदा हूडी का ये लगता है की ये आपको फिजिकल मूवमेंट्स की आज़ादी देती है। वरना स्वेटर और जैकेट्स में फिजिकल कन्स्ट्रैन फील होता है। और बड़ी सी पॉकेट का फायदा तो आपने बता ही दिया है। एक रूल जो मैंने हमेशा फॉलो किया है की हूडी एक साइज बड़ी ली जानी चाहिए। एक ढीली- ढाली हूडी से बेहतर सिर्फ अलाव ही है सर्दी में।
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जी हां! और यह बहुत सही कि कपड़े ढीले ढाले ही होने चाहियें – विशेषत: बढ़ी उम्र में। आपकी काया भी वैसी नहीं रहती कि उसका सौंदर्य चिपके कपड़ों से दर्शाया जाये।
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हुडी वाकई बहुत उपयोगी परिधान है। मैंने भी गुरुग्राम में जैकिट लेने के बजाए हुडी ही डाले रहते हैं ठंड पड़ने पर। आपका हुडीयमान रूप भी अच्छा लग रहा है।
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