>>> गूलर <<<
गूलर एक अजीबोगरीब वृक्ष है।
रामचरित मानस के लंका कांड में अंगद-रावण संवाद में, रावण पर तंज कसते गूलर का संदर्भ दे कर अंगद बोलते हैं –
गूलर फल समान तव लंका, मध्य बसहु तुम जीव असंका। अर्थात लंका गूलर के फल जैसी है जिसमें तुम और अन्य राक्षस अज्ञानी कीट की तरह रहते हैं।
गूलर का फूल तो अदृश्य है। गूलर का परागण उसके फलों के बीच ही कीट द्वारा होता है। फल में ही फूल होता है। ऐसे कि फूल दिखाई ही नहीं देता। तभी तो अलभ्य चीज को गूलर का फूल कहा जाता है। भारतीय स्वतंत्रता के संदर्भ में होम रूल लीग थी, जिसे ले कर साम्राज्य के भक्त तंज कसा करते थे – “हम होम रूल लेंगे! गूलर के फूल लेंगे!”
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मेरे घर में ईशान कोण (घर का उत्तर-पूर्व) पर एक गूलर है। दो साल पहले मैं उसे पाकड़ समझता था। तब उसके फल नहीं लगे थे। दो साल से उसमें फल लगने लगे हैं और मुझे भान हो गया है कि वह गूलर है; पाकड़ नहीं।
वैसे गूलर (Ficus racemosa), पाकड़ (Ficus virens), बरगद (Ficus benghalensis) और पीपल (Ficus religiosa) ये सभी चचेरे-मौसेरे भाई जैसे हैं। फिकस जीनस के सदस्य।
ईशान कोण में मेरे घर में गूलर के साथ एक पीपल हैं। ये दोनो दैवीय वृक्ष माने जाते हैं। ये घर बनवाने के पहले ही अपने आप लगे मिले मुझे। यूं कहें तो इस जगह में देवता वास करते रहे हैं पहले से ही और उन्होने हमें यहां बुला कर बसाया। उनकी उपस्थिति से मुझे अहसास होता है कि मेरे यहां आ बसने का कोई दैवीय ध्येय है। ईशान कोण में गूलर और पीपल से, माना जाता है, सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और जीवन में स्थिरता आती है। उद्वेग कम होता है।
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गूलर का परागण (पॉलीनेशन) इतना विचित्र और रहस्यमय (?) है कि भांति भांति की उपमायें और मुहावरे उसपर आर्धारित हैं। किसी भी कठिन काम को गूलर का फूल पाने के यत्न से जोड़ा जाता है। गूलर का फल को जहां अंगद राक्षसी अंधकारमय जगत से तुलना कर बताते हैं; वहीं भारतीय आध्यात्मिकता में वह प्रकृति की विविधता और समस्त जगत में एक ही सत्ता होने के कॉन्सेप्ट को भी दर्शाता है।
मेरे माली, रामसेवक गूलर के फूलों के गुच्छ मुझे दिखाते हुये कहते हैं – “साहेब, यहां इतने तरह तरह के पक्षी आते हैं, उनके लिये इस गूलर का भी बहुत योगदान है। पक्षी और छोटे जानवर (मसलन गिलहरी) जरूर आपका धन्यवाद करते होंगे।”
पक्षी, जानवरों और कीट का एक बड़ा ईको-सिस्टम गूलर और उस जैसे पेड़ों के कारण मेरे घर परिसर में है। तीन साल पहले एक गूंगी (सैंड बोआ – दुमुहा सांप) भी रहा करती थी उसकी जड़ों के आसपास। अब सफाई कराने और हमारी आने जाने की गतिविधि बढ़ने से शायद चली गई है कहीं और। वह भी जैव विविधता का एक प्रतीक थी।
गूलर दीर्घजीवी पेड़ है। तेजी से बढ़ता है और दस पंद्रह मीटर का हो जाता है। इसका तना मझली मोटाई का और हल्की भूरी छाल वाला होता है। यह शायद सदियों जीता है। इसी कारण वह जीवन की शाश्वतता का प्रतीक है। हिंदू धर्म की दीर्घायु, अमरत्व और पुनर्जन्म की अवधारणाओं को दर्शाने के लिये गूलर की उपमा सटीक है। कोई आश्चर्य नहीं कि गूलर को पवित्रतम पेड़ों में गिना जाता है।
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गूलर का आयुर्वेद में भी बहुत महत्व है। त्वचा के रोगों, पाचन सम्बंधी विकार और जलन की समस्याओं में गूलर के फल, जड़ और छाल का प्रयोग होता है। पिछली साल किसी रोग की चिकित्सा के लिये पास के गांव के एक सज्जन किलो दो किलो भर गूलर के फल मांग कर ले गये थे। इसके पत्तों को तोड़ने पर निकला दूध बताशे पर गिरा कर लोग सेवन करते हैं और उनकी मान्यता है कि वह अधकपारी (माईग्रेन) में लाभदायक होता है। इनकी लकड़ियां शुभ कर्म में प्रयुक्त होती हैं।
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मैं गूलर के तनों पर लगे फलों के गुच्छों को बहुत ध्यान से देखता हूं। कुछ फल पक रहे हैं। हरे से भूरे-लाल हो रहे हैं। उन्हें देख कर प्रकृति के अनूठेपन पर आनंदमिश्रित आश्चर्य होता है। मातृसत्ता की एक सशक्त उपस्थिति का अहसास!




sir Gular ka vraksh haribhari chhaya deta rahega avam majbut hota h . Ye fir bhi safe wade m h anytha bakriwale inke patte nahi chhodte h
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गूलर और अंजीर दोनों रहस्यमय फल प्रकृति का महान उपहार हैं।
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