सियार

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जीटी रोड के किनारे के इस गांव में बसे एक दशक होने को आया और मैं गांव की पहचान के तत्वों को ढहते देखता रहा हूं। जो तत्व अभी भी कायम हैं, उनमें से एक है – सर्दियों के महीने में शाम होते ही उठती सियार की हुआं हुआं करती आवाजें। मेरे सोने के कमरे से रात में आवाज आती है और लगता है कि पीछे मेरे खेत में ही हैं सियार। रात में नींद खुली है – लघुशंका के जोर से या सियारों की आवाजों से – मैं नींद के प्रभाव में तय नहीं कर पाता।

बाथरूम से बिस्तर पर वापस लौटता हूं तो पर्याप्त जाग्रत हो चुका हूं। रात के तीन बज रहे हैं। सियारों की हुआं हुआं एक छोटी हुक-हुक में बदल जाती है। जैसे कोई सियार हंस रहा हो।

सियार भेडियों की तरह बड़े झुंड में नहीं रहते। तीन से छ एक साथ होते हैं। एक परिवार भर। नर मादा और उनके दो-चार बच्चे। दो अलग अलग परिवार एक दूसरे के साथ ज्वाइंट फैमिली तभी बनाते हैं जब भोजन खूब मिल रहा हो। वे शिकार भी खुद कम ही करते हैं। प्रकृति के स्केवेंजर हैं। सर्वहारी जीव। आदमी की बस्ती के आसपास तो वे आदमी के भोजन अवशेषों के कूड़े में भोजन तलाशते हैं। जंगलों में दूसरे जानवरों के शिकार के अंश, छोटे जानवरों और पक्षियों की लाशों तथा कभी कभी फल, सब्जियों और खेतों की फसलों पर भी जिंदा रहते हैं। छोटे जानवरों का पारिवारिक समूह में शिकार भी करते हैं वे।

कभी कभी दिन में मैं घर के पिछवाड़े चक्कर लगा आता हूं। चार दीवारी के बाहर खेत है। और रसोई का कोई कूड़ा चारदीवारी के बाहर नहीं फैंका जाता जिसमें सियार की रुचि हो। मुझे कोई मांद भी नहीं दिखती जहां सियार रहते हों। वे जरूर मेरे घर से रेलवे स्टेशन के बीच के खेतों में रहते होंगे। बीच में अरहर के बड़े पौधे हैं। शायद उन्हीं के बीच रहते हों और वहीं प्रजनन करते हों, बच्चे पालते हों।

सियार निशाचर हैं। रात में ही अपना भोजन तलाशने निकलते हैं। अपने गांव में मेरा सियार से सीधे सामना नहीं हुआ पर अगियाबीर के टीले पर आसपास से गुजरते इक्का दुक्का सियार जरूर देखे हैं। मुझे लगा कि वे कुकुर हैं। पर उनके झाडियों में विलीन होने पर यकीन हुआ कि वे सियार ही हैं। लिहाजा, सियार मुझे वैसे दिखाई नहीं देते जैसे नीलगाय या मोर। पर उनकी उपस्थिति नीरवता को भेदती उनकी हुआं हुआं से मिलती रहती है।

हर साल सर्दियां आने पर उनकी आवाजें आने लगती हैं और यह यकीन होता है कि साल भर में यह गांव इतना नहीं बदला है कि गांव न रहे। यह भी यकीन होता है कि मेरे इलाके में पर्याप्त जैव विविधता है; जिसमें सियार जीवित बचने और पनपने की स्थितियां बरकरार हैं। … एक तरह की खुशी होती है!

सियार जंगली जीव है। कुत्तों के तरह उनको आदमी पालतू नहीं बना पाया। कभी किसी ने सियार के बच्चे पाले भी होंगे तो भी वयस्क होते होते वे अपना नैसर्गिक जंगलीपन दिखाने लगे होंगे और आदमी ने उन्हें भगाया होगा या वे खुद भाग गये होंगे। वे जंगली हैं पर आदमी का पड़ोसी होने में उन्हें शायद कोई गुरेज नहीं है। चूंकि वे आदमी का पड़ोसी बन कर रहना सीख गये हैं, उन्हें अंदाज है कि मानव बस्ती के आसपास रहने में भोजन का सुभीता है। उस कोण से कहा जाये तो वे पर्याप्त इंटेलीजेंट हैं।

सियार उस जानवर समूह केनीडे – Canidae से आते हैं जिसमें कुत्ता, भेडिया, लोमड़ी और लकड़बग्घा उस वृहत परिवार के अन्य गोत्र हैंं। सियार चतुर माना जाता है। पंचतंत्र की कथाओं में उसे ऐसा ही बताया गया है। पर कुत्ते उनसे ज्यादा सामाजिक हैं और भेड़िये उनसे ज्यादा संगठित। लोमड़ी और सियार बुद्धिमत्ता में समान होंगे पर सियार का पारिवारिक जुड़ाव लोमड़ी से ज्यादा है। इसी कारण से लोमड़ी को कुत्ते ज्यादा सरलता से लखेद लेते हैं। लकड़बग्घे सियार से ज्यादा संगठित और ज्यादा बुद्धिमान बताये जाते हैं।

मैने अपने आसपास के गांवों में भेड़िये या लकड़बग्घे नहीं पाये या सुने। एक दो जगह गंगाजी के किनारे की सड़कों पर लोमड़ी ने रास्ता जरूर काटा है। सियार और कुकुर तो बगल में ही रहते हैं। नीलगाय के आतंक के टक्कर में इन दोनो के खड़े होने की कल्पना मैं करता हूं। पर जल्दी ही लगने लगता है कि कद्दावर घणरोजों के मुकाबले ये छोटे जीव खड़े नहीं हो सकते। भेड़ियों का एक बड़ा झुंड नीलगाय का सफाया कर सकता है पर वे खुद मानव बस्ती के लिये नीलगायों से बड़ा खतरा होंगे।

तीन बजे मैं सियार की हुआं हुआं से उठा और फिर सियार पर लिखने लैपटॉप खोल कर बैठ गया। यह पोस्ट जब पूरी की है तो सवेरे के 4:40 हो गये हैं। मैने एक चित्र एआई से बनवाया है सियार परिवार का। वह चित्र और यह पोस्ट – आज का लेखन का कोटा खत्म हुआ।

आगे फिर कभी रात में नींद खुलेगी और गांव का कोई और प्रतीक मन में उठेगा; ब्लॉग पर लिखने को प्रेरित करेगा। आज तो बस सियार ही! :lol:


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

One thought on “सियार

  1. Sir apke ghar k aspas anukul mahol h shyaron k liye ye aik swar m chillana shuru karte h bahut ajib lagte h

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