सवेरे चार बजे नींद खुलने का समय होता है। आमतौर पर नींद एक सुखद अहसास के साथ खुलती है। आज वह एक (दु:) स्वप्न के साथ खुली। भोर के सपने में देखा कि मैं प्लेटफार्म पर खड़ा हूं। ट्रेन लगी है और मुझे यह भी नहीं याद कि किस ट्रेन में किस कोच में मुझे यात्रा करनी है। कोई बताने वाला भी नहीं है। कोई साथी या सहायक भी नहीं है।
पूरी रेल सेवा के दौरान ऐसी स्थिति आई हो, याद नहीं पड़ता। मुझे रेल की पटरी या स्टेशन पर इनकॉग्नीटो खड़े होने में बहुत मशक्कत करनी होती थी। कभी किसी स्टेशन पर अगर किसी बुक स्टाल पर बिना सूचना के चला गया तो इधर उधर देखने पर कोई न कोई कर्मचारी पर्याप्त दूरी बनाये मेरे आसपास खड़ा दिख ही जाता था। मेरे स्टेशन आने की पता नहीं कैसे खबर मिलती थी उन्हे जबकि मैं घर से पैदल घूमते घामते आता था रेलवे स्टेशन। उस दौरान कभी ट्रेन में यात्रा करनी हो तो आधा दर्जन कर्मचारी स्टेशन पर लेने और डिब्बे में सी-ऑफ करने वाले होते थे। मेरे फर्स्ट एसी कूपे या सेकेंड एसी के इनसाइड लोवर बर्थ पर बिस्तर पहले से लगा होता था। एक कर्मचारी ठण्डे पानी की बोतल रख गया होता था। कोच के अटेंडेण्ट और टिकटचेकिंग स्टाफ/ट्रेन-कैप्टन को पहले से सूचना होती थी। वे पूछ जाते थे कि सर सवेरे कितने बजे चाय लेंगे? फीकी या चीनी वाली?… रिटायरमेंट के बाद वह तामझाम बड़ी तेजी से गायब हो गया। और उसका मुझे मलाल भी नहीं। एक दिन नहीं लगाया उस तामझाम को त्यागने में।
रिटायर होने के कुछ दिनों बाद तक तो रेल यात्रा जरूरी थी पर मैने रेल सेवा की आसक्ति को छोड़ने के लिये ट्रेन से यात्रा करनी बंद कर दी। पांच-सात साल से रेलवे स्टेशन पर ही नहीं गया। अपना फ्री पास नहीं निकाला। तब वर्षों बाद आज भोर का यह स्वप्न? … अच्छा नहीं लगा मुझे।
मैने उठने पर पाया कि सर्दी की रात में भी मुझे हल्का पसीना आ गया है। अच्छा हुआ कि उठ गया। सपने में सिर काटई कोई, बिनु जागे दुख दूर न होई। अन्यथा सपने में बिना किसी स्टेशन मास्टर या टीटीई की सहायता के किस किस प्लेटफार्म पर मैं भटभटाता चक्कर लगाता?
लोगों को परीक्षा हॉल के सपने आते हैं। पर्चा कठिन होने या सब उल्टा पूछे जाने के आते हैं। मेरे लिये वैसी दशा रेलवे प्लेटफार्म पर दिग्भ्रमित होने के स्वप्न से बनी।
पुरानी यादें, आशंकायें ब्रह्मराक्षस हैं। उनका शमन कर उनसे छुट्टी पानी चाहिये। अपने मेमॉयर्स लिखना शायद एक तरीका हो। लोग पितरों को विदा करने गया जाते हैं। शायद पुरानी यादों-वासनाओं के लिये उन्हें लिख डालना एक प्रकार से उनको गया में पिंडदान करना हो। पर बिना नोट्स, बिना डायरी के वह कर पाना सम्भव नहीं लगता। कतरा कतरा यादें कैसे उतरेंगी लिखने में? यह द्विविधा मन में काफी अर्से से कायम है।
[चैट जीपीटी जानता है कि मेरा चित्र एक वृद्ध का बनाना है। ढीला कुरता पहने। चश्मा लगाये। सफेद बाल। उसने वैसा ही बनाया। मेरे चेहरे पर भ्रम भी दिखाया। पर मेरे बाल बहुत कम करने थे, वह नहीं किये। फिर भी वह ठीक ठीक ही बना देता है।]
#रेलपटरियां

