स्वमित्र, दांत के डाक्टर

मेरे नीचे के इनसाइसर (काटने वाले दांत, कृन्तक) काले पड़ रहे थे। उनकी जड़ें ठीक थीं। ठंडा गरम भी इतना नहीं लगता था कि उसके उपचार की एमरजेंसी हो। पर काले दांत ऐसा आभास देते थे कि व्यक्ति तमाकू-सुरती-पानमसाला ज्यादा ही खाता है। जबकि मैं पान-सुरती खाता ही नहीं। मेरी मुस्कान और हंसी उत्तरोत्तर होठ दबा कर होने लगी थी – अप्राकृतिक। इनका इलाज कराने में प्रयाग के रेलवे अस्पताल जाने की सोच रहा था, पर प्रयागराज जाना, बार बार डाक्टर के अप्वाइंटमेण्ट पर अस्पताल में उपस्थित होना कठिन लग रहा था।

मेरी पत्नीजी को भी दांत में ठंडा-गरम लगने की समस्या शुरू हो गई थी। हम दोनो को अच्छे दांत के डाक्टर की तलाश थी।

सूर्या अस्पताल के अशोक तिवारी जी से मैने अपनी और अपनी पत्नीजी की दांत की समस्याओं पर बात की। उन्होने ने मुझे सुझाया था कि मेरे बगल में ही कुशल दांत के डाक्टर हैं, उन्हें ही दिखाऊं। वहां जाने पर हमारी समस्या का निदान हो गया। हमें मिले डा. स्वमित्र दुबे। महराजगंज मार्केट में उनका शिव शक्ति डेण्टल क्लीनिक है।

डा. स्वमित्र नौजवान हैं। तीस से कम ही होगी उम्र। उन्होने मेरी पत्नीजी के एक्सरे लिये। एक मोलर, एक केनाइन और एक दो इनसाइसर दांतों में उन्हें लगा कि दांतों का पल्प खराब हो गया है और रूट-केनाल ट्रीटमेंट करना होगा। दो तीन सिटिंग में उन्होने वह किया। मेरे सामने के दांतों को तो सफाई कर उनपर क्राउन (टोपी) बिठाने का काम करना था। वह भी उन्होने बड़ी दक्षता से किया।

डा. स्वमित्र के व्यवहार की जो बात मुझे अपील की, वह उनका आत्मविश्वास भरा एटीट्यूड था। वे दांत की आशंकाओं से सम्बंधित सभी बातों को बड़ी सरलता से समझा रहे थे। गांव देहात में जिस तरह के मरीज आते हैं उन्हें उनकी भाषा में उनके स्तर पर समझाना होता है। स्वमित्र वह कुशलता से कर रहे थे। मैं एक पढ़ाकू विद्यार्थी की तरह इंटरनेट पर दांतों से सम्बंधित सामग्री खंगाल कर उनके पास जाता था और अपनी समझ से बड़े प्रोबिंग सवाल उनसे पूछता था। उनके उत्तर भी पूरे धैर्य के साथ, दांतों के मॉडल को प्वाइण्टर से दिखाते हुये स्वमित्र देने का कष्ट करते थे। कभी मैने उन्हें खीझते नहीं देखा। एक नौजवान डाक्टर जो अपने काम में कुशल हो, व्यवहार में ज्यादातर रूखा या ब्रस्क (Brusque) हो जाता है। स्वमित्र उससे उलट थे। मुझे पसंद आये स्वमित्र!

मेरी पत्नीजी और मेरे दांतों का सन्तोषजनक इलाज के बाद मुझे लगा कि भविष्य में हमारी दांतों की समस्याओं के लिये हमें घर के पास ही अच्छे डाक्टर मिल गये हैं। पर बातचीत में स्वमित्र ने बताया कि उन्होने सिविल सेवा परीक्षा दी है और वे चाहते हैं प्रशासनिक अधिकारी बन कर जनता की सेवा करना। स्वमित्र को मैने अपने सिविल सेवा और उसके इतर अनुभव के आधार पर बताने की कोशिश की कि एक कुशल डेंटिस्ट कहीं बेहतर सेवा कर सकता है जनता की बनिस्पत एक आए.ए.एस. के। वे चाहे जितना भी आदर्शवादी हों, पूरी सरकारी मशीनरी उन्हें उस गरीब आम जन से इंस्यूलेट करने में लग जायेगी। वह आपको भ्रष्ट भले न बना पाये, पर वह आपकी जनता के प्रति सेंसिटीविटी कुंद अवश्य कर देगी। आपके प्रशासनिक लक्ष्य, आंकड़े और राजनेताओं के दबाव आपको मशीनरी का एक पुर्जा बनाने में लग जायेंगे।

पर मेरी पत्नीजी ने मुझे बार बार कहा कि बेकार में मैं उस नौजवान को हतोत्साहित कर रहा हूं।

लोगों का जीवन जीने के तरीके में बदलाव, रिफाइण्ड और ‘मृत’ भोजन के प्रति आसक्ति, मिठाई और पेय पदार्थों के प्रति बढ़ता लालच लोगों के दांत पहले से ज्यादा खराब कर रहे हैं। तम्बाकू सेवन समय से पहले ही उन्हें क्षरित कर रहे हैं। ऐसे में एक कुशल डेंटिस्ट बहुत जरूरी है समाज के लिये। पर उत्तरप्रदेश और बिहार की पूरी नौजवान पीढ़ी यूपीएससी के ग्लैमर से चकाचौंध है। और मैं, जो खुद संघ सरकार की सिविल सर्विसेज के रास्ते जीवन यापन कर चुका हूं, कितना सार्थक उपदेश दे सकता हूं?

वे चाहे जितना भी आदर्शवादी हों, पूरी सरकारी मशीनरी उन्हें उस गरीब आम जन से इंस्यूलेट करने में लग जायेगी। वह आपको भ्रष्ट भले न बना पाये, पर वह आपकी जनता के प्रति सेंसिटीविटी कुंद अवश्य कर देगी। आपके प्रशासनिक लक्ष्य, आंकड़े और राजनेताओं के दबाव आपको मशीनरी का एक पुर्जा बनाने में लग जायेंगे।

स्वमित्र मुझसे यूपीएससी की परीक्षा और इंटरव्यू की तैयारी के बारे में पूछते हैं। मैं उन्हें बताता हूं कि चार दशक पहले का मेरा अनुभव अब किसी काम का नहीं होगा। स्वमित्र फिर भी मुझसे आदर-सम्मान के साथ बात करते हैं। शायद गांवदेहात में कोई सिविल सर्वेंट सामान्यत: न होता हो। वैसे भी गांवदेहात से जो सिविल सेवा में आ जाता है, वह गांव थोड़े ही रहने आता है?

मेरी पत्नी चाहती हैं कि स्वमित्र सिविल सेवा परीक्षा निकाल लें! मैं चाहता हूं कि बतौर डेंटिस्ट वे अपनी कुशलताओं को और मांजें और इस अंचल की बेहतर सेवा करें अपने हुनर और अपने सेवा भाव से। हम दोनो उनके लिये अलग अलग कामना करते हैं; पर दोनो चाहते हैं कि स्वमित्र उत्कृष्टतम निकलें!

वे पहले ही अच्छे डाक्टर/अच्छे व्यक्ति हैं। उम्र के साथ साथ वे और निखरें, और सफल हों; यह कामना हम करते हैं। मैने स्वमित्र को कहा है कि कभी चाय पर मेरे घर आयें तो एक घंटा उनके साथ बातचीत हमें बहुत अच्छी लगेगी। गांवदेहात में ऐसे नौजवान कम ही होते हैं!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

2 thoughts on “स्वमित्र, दांत के डाक्टर

  1. अब इसे भारतीय शिक्षा पद्धति की विफलता कहें या लोगों में aptitude की कमी की कोई वो भी व्यक्ति नहीं करना चाहता जिसकी उसने शिक्षा और training पाई है। लोग कहते हैं की इसमें दोष system का है, पर जब हर कोई यही कर रहा है तो दोष system का नहीं बल्कि अपनी-अपनी मानसिकता का है।

    R

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    1. अब इस बारे में मैं अपना ही उदाहरण रखूंगा। मुझे सरकार ने वजीफा दिया। एक प्रीमियर संस्थान में इंजीनियरिंग की शिक्षा लगभग फ्री कराई। पर मैने इंजीनियरिंग की बजाय प्रशासनिक सेवा को वरीयता दी। मेरा मानना है कि मेरी शिक्षा ने मुझे एक एनेलिटिकल माइंड दिया, जिसका मैने सरकार के लिये सार्थक इस्तेमाल किया। मुझे नहीं लगता कि मैने गलत किया। पर बहुत से लोग इसे मेरी गलती मान सकते हैं।
      सिस्टम की कमी इस बारे में है कि वह बच्चे को उसके एप्टीट्यूड के हिसाब से भविष्य के लिये तैयार नहीं करता।

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