#कड़ेप्रसाद फिर हाजिर थे। मूंग की नमकीन लिये थे। साथ में गुड़हवा लेडुआ भी था। बताया कि लेडुआ हिट हो गया है। पचास किलो तक निकल जा रहा है। पांच दस किलो तो स्कूल में मास्टराइनें ही ले ले रही हैं। इतनी जल्दी फिर आने का कारण मुझे समझ आया कि लेड़ुआ हिट होने पर जल्दी बनाने और जल्दी बेचने के फेर में पड़ गये हैं। मार्केट जितना हो सके कैप्चर करना चाहते हैं।
“हर कोई लेड़ुआ खा रहा है आजकल साहेब। बहुत मुलायम है। सर्दी में इससे बढ़िया और कुछ नहीं।” कड़े ने कहा। मुझे भी नसीहत दी – “सहेब ई सब सूगर-फ्री बा। सर्दी में खाये से सेहत ठीक रहे”।
तीन दिन पहले हमने दो किलो लेड़ुआ लिया था, आज एक किलो और लिया। एक सौ चालीस रुपया किलो के भाव से। यह संकल्प किया था कि एक दिन में दो लेड़ुआ से ज्यादा सेवन नहीं करेंगे हम (मैं और पत्नीजी मिला कर)। तीन लड़ुआ मशीन पर रख वजन लिया तो उसमें निकला कि एक लेड़ुआ करीब 55 ग्राम का है। इस हिसाब से तीन किलो करीब पच्चीस दिन चलेगा। फिर देखी जायेगी।
कड़े प्रसाद कहते हैं दो हफ्ते बाद फिर लायेंगे।
संकल्प जरूर किया है, पर लेड़ुआ के मामले में कोटा फिक्स करना और अपने पर अंकुश लगाना कुछ कुछ महर्षि विश्वामित्र और अप्सरा मेनका जैसा मामला है। देवताओं ने हम जैसे अटल तपस्वी का व्रत भंग करने के लिये ही लेड़ुआ को सृजित किया है! 😆
कड़े प्रसाद आज एक किलो लेड़ुआ और एक किलो मूंग की नमकीन टिका गये हैं। “सहेब ई सब सूगर-फ्री बा। सर्दी में खाये से सेहत ठीक रहे”।
कड़े प्रसाद को कुछ दिन पहले लिखी पोस्ट उन्हें मोबाइल पर दिखाई। गदगद हो गये। उसे पढ़ने की जहमत नहीं उठाई। यह जान लिया कि उनका नाम ‘सगरौं (हर तरफ)” चला गया है, उनको इसी में संतोष है।
“साहेब ई लिखे से हमार नमकिनिया अऊर बिचाये”।
#कड़ेप्रसाद #गांवदेहात #फेरीवाला


मेरे साले साहब, टुन्नू पंडित (शैलेंद्र दुबे) की बिटिया मीठी की शादी तय हो गई है। आज के चलन के अनुसार रिंग सेरिमनी, गोद भराई छाप संस्कार भी सम्पन्न हो चुके हैं। प्री वैडिंग शूट टाइप चीजें भी हो गई हैं। आज समधी विजय नारायण त्रिपाठी और उनके बड़े भाई साहब यहां आये थे। टुन्नू जी के यहां भोजन था।
भोजन तो घर का बना था, मेरी पत्नीजी ने बताया कि बहुत उम्दा बना था। समधियों पर इम्प्रेशन अच्छा ही पड़ा होगा। पर सब से अलग चीज थी भोजन के साथ सुनाई गई महिलाओं की गारी।
उस समय की गारी के शब्द तो मुझे याद नहीं पर कुछ इस छाप के थे – दाल भी मंहगा, चावल भी मंहगा; दोनवा को चाट चाट खाना, बड़ा मंहगा जमाना। …
वह भी जमाना था जब औरतें गारी गढ़ने में निपुण हुआ करती थीं। गारी में लालित्य भी होता था, व्यंग भी और हास्य भी। ढोलक के साथ थाप देती मधुर आवाज की गारी को लोग चाव दे कर सुनते थे। कोई कोई समधी तो हंसते हुये कहते भी थे – तनी अऊर गावअ। थोड़ा और गाओ।
अब गारी का जमाना, जिसकी चर्चा तुलसी बाबा जनकपुर में रामसीता विवाह के संदर्भ में और हिमांचल के शिव विवाह प्रसंग में भी करते हैं; खत्म हो रहा है। आजकल जमाना भोंडे डीजे वाले भांय भांय बजते “संगीत (?)” का है। 😢
मुझे आशा है कि मीठी दुबे की शादी के अवसर पर उत्तम कोटि की गारी का प्रबंध करेंगे शैलेंद्र (टुन्नू दुबे)।
विजय नारायण त्रिपाठी जी पर मेरी एक ब्लॉग पोस्ट का लिंक – https://buff.ly/4fjarZg
[चित्र में विजय नारायण (बांये) और उनके बड़े भाई भोजन करते हुये। पीछे वाले कमरे से गारी गाने की आवाज आ रही थी।]

कड़े प्रसाद मेरे ब्लॉग के महत्वपूर्ण पात्र हैं। वे नमकीन बनाते हैं और फिर अपनी मॉपेड पर लाद कर घर घर बेचते हैं। उनपर कुछ पुरानी पोस्टें इस लिंक पर देखियेगा – https://buff.ly/4gddEe4
आज कड़े प्रसाद नमकीन नहीं; उससे भी ज्यादा काम की चीज बना लाये। लाये गुड़हवा लेड़ुआ। इससे बढ़िया मिठाई और क्या हो सकती है। बचपन से ले कर उनहत्तर की उम्र का ज्ञानदत्त इसका मुरीद है।
मेरी बुआ इसको बनाती थीं। वे जब भी आती थीं तो गुड़हवा लेडुआ बनाने का अनुष्ठान जरूर होता था। अब तो बुआ नहीं रहीं और बाजार का लेड़ुआ तो उस गुणवत्ता का बनता ही नहीं। … आज कड़े प्रसाद मेरी बुआ की टक्कर का लेड़ुआ बना लाये। पता नहीं, हो सकता है स्वर्ग से बुआ जी ने ही कड़े प्रसाद को निमित्त बना कर मेरे यहां भेजा हो। अन्यथा पहले कभी कड़े प्रसाद लेड़ुआ तो नहीं बनाये थे।
वे एक किलो बेच रहे थे, मैने दो किलो लिया। एक डिब्बे में भर कर रख दिया है। मुझे टाइप 2 मधुमेह है। पर लगता है कुछ अलानिया और कुछ चुरा कर मैं अकेले ही खा जाऊंगा सारा लेड़ुआ। डाइबिटीज के लिये कुछ एक्स्ट्रा पैदल चलना या साइकिल चलाना हो जायेगा। सर्दी है, गुड़ के लेड़ुआ से बेहतर और क्या चीज हो सकती है!
कड़े प्रसाद ने कहा है कि पंद्रह बीस दिन बाद फिर बना लायेंगे। पर भरोसा नहीं। कड़े के जाने के बाद लगता है एक दो किलो और ले लेना चाहिये था।
#गांवदेहात #फेरीवाला #कड़ेप्रसाद


