<<< लाहदेरांता में चुनचुन बाजपेयी >>>
यह जगह लाहदेरांता काल्स्त्रॉन्द (Lähderanta Källstrand); फिनलैंड में राजधानी हेलसिंकी से 100किमी दूर है। शायद हेलसिंकी का सबर्ब कहा जाता हो। सन 1960 के आसपास इसकी परिकल्पना रिहायशी क्षेत्र के रूप में की गई। यहां जैसे गाजीपुर, आजमगढ़, भदोही आदि के लोग अपने को बनारस का कहते हैं; वैसे लाहदेरांता के लोग अपने को हेलसिंकी का बता सकते हैं या बताते ही होंगे। यहां रहने वालों को ग्रामीण और शहरी दोनो प्रकार के जीवन का आनंद है।
ध्रुवीय वृत्त में होने के कारण आजकल वहां साढ़े नौ बजे सवेरा होता है और सवा तीन बजे सांझ ढल जाती है। छोटा और सर्द दिन।
मेरी बहन गरिमा की छोटी बिटिया चुनचुन और उसके पति अंकुर वहीं रहते हैं। चुनचुन साल भर से अधिक हुये, मुझे वहां के चित्र भेजती रहती है। वे चित्र शहरी हैं। रेंडीयर या स्लेज के चित्र नहीं दिखते। पर उसके संदेशों से प्रेरित हो कर मैने अपने में स्केंडिनेविया के बारे में जानने की इच्छा अपने में जगाई।
चुनचुन लाहदेरांता के बारे में विशेष नहीं बताती पर उसके भेजे चित्रों से वहां की सर्दी का अहसास होता है। स्थान के नाम में है लहदे – झरना या झील और रांता – किनारा। एक झील/झरने का किनारा।
बर्फ में सब जमा हुआ है तो कहां सो रहा होगा झरना कहां होगी झील और किस ओर होगा उसका किनारा? छोटा गर्मियों का जब वहां मौसम होता होगा तब उनका किनारा अस्तित्व में आता होगा। अभी तो शायद वह सब जमा हुआ हो और लोग उसपर स्कीइंग करते हों। … यहां प्रकृति और विकास का अच्छा संतुलन है।
पिछले साल चुनचुन सर्दियों से परेशान लगती थी। कुछ कुछ भयभीत भी। तब उसके जीवन की वह पहली भयंकर सर्दी थी। अब तो वह फिनलैंड की दुनियां में रम बस गई है। वहां वह भारतीय त्यौहार भी मनाती है और स्थानीय भारतीय कम्यूनिटी से भी जुड़ी है। उसकी फिन्निश भाषा सिखाने वाली महिला का भी चित्र है जिसे वह अद्वितीय महिला बताती है। उसके भेजे चित्रों में बर्फ से ढंके घर और सड़कें हैं। वृक्ष भी बर्फीली पत्तियों वाले हैं। सभी बर्फ का कम्बल ओढ़े हैं – घर की छतें, झील के किनारे और चीड़ (?) के पेड़, सब।
इंटरनेट मुझे बताता है वहां की नॉर्दन ब्ल्यू लाइट्स के बारे में जो पोलर क्षेत्र का एक अजूबा है। चुनचुन ने वह देखा होगा। नेट मुझे बताता है छोटी लाल रंग की चिड़िया के बारे में जो बर्फ पर फुदकती है। पता नहीं चुनचुन ने वह देखी है या नहीं। देखी भी होगी तो घर की खिडकियों से उसके चित्र लेना तो सम्भव ही नहीं होगा।
मैने तो उत्तर प्रदेश के इस जिले का उत्तरी छोर तक नहीं देखा पर चुनचुन धरती का उत्तरी छोर न केवल देख रही है वरन वहां रह रही है। यह सोचना ही मुझे चमत्कृत कर देता है।
चुनचुन यहां से सत्तू ले गई है। वहां समोसे बनाती है। चाय का मसाला और अदरक वाली चाय भी बनाती ही होगी। यहां तो लोग अपने हो कर भी अजनबी होते हैं शहरों में। वहां छोटी सी भारतीय कम्यूनिटी तो परिवार की तरह होती होगी?
कल चुनचुन ने अपने टैडी बीयर का चित्र भेजा। वह पण्डित भोलाशंकर बाजपेयी है। भोला शास्त्री के बारे में वह लिखती है –
“मिलिए हमारे घर के सदस्य पं.भोलाशंकर (भोलू )बाजपेयी जी से, कहने को तो ये एक विदेशी टेडी बियर हैं पर ये रहते एकदम देसी तरीके से हैं। रोज़ पूजा के बाद इनको आरती दिलवाई जाती है, पूजा के समय भी ये आसनी पर उपस्थित होते हैं। इनके रहने और भोजन की भी पूरी व्यवस्था है। पूरे दिन कुर्सी पर विराजमान रहते हैं फिर रात होते ही इनको सम्मानपूर्वक बिस्तर पे सुलाया जाता है और सुबह होते ही वापस कुर्सी पे बैठाया जाता है।
इनको ११ सितंबर (मेरे जन्मदिन के दिन) प्रिज़्मा मॉल से लाया गया था, उस दिन से ही ये हमारे घर का अहम हिस्सा बन गए हैं ।
अब इनको पुचकारे और लाड़ प्यार किए बिना कोई दिन नहीं जाता है..”
फिनलैण्ड में वहां के मॉल से लाये टैडी भालू को भी चुनचुन ने प्रयागराज का भोलाशंकर बना दिया है। अपने और अपने पति अंकुर की भावनाओं की ऊष्मा से वे दोनो वहां एक मिनी भारत भी बना ही चुके होंगे। मैं जितना उनके बारे में सोचता हूं, उतना उनकी नजरों से, उनकी पोस्टों से धरती का वह छोर जानने की इच्छा बलवती होती है। मैं अंकुर को नहीं जानता। पर कल्पना करता हूं उनकी मिलनसारिता/खुशमिजाजी की। अगर वे मनमाफिक हुये और उनसे भी लाहदेरांता के बारे में और जानकारी-नजरिया मिला तो वह बहुमूल्य होगा मेरे लिये।
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कितना अद्भुत है भारत के एक भदोहिया भुच्च का फिनलैंड के एक सबर्ब – लाहदेरांता के बारे में जानना। वह जगह जिसका नाम भी जबान पर चढ़ाने में मशक्कत करनी पड़ रही है।
[ चित्र 1 टैडी बीयर पंडित भोलाशंकर बाजपेयी। 2 लाहदेरांता की दोपहर जो शाम लगती है। 3. अंकुर और चुनचुन।]



सताईस दिसम्बर 24 को अपडेट –
लाहदेरांता (फिनलैण्ड) में चुनचुन बाजपेयी के बारे में मैने तीन दिन पहले ऊपर लिखा था। अब मेरी बहन गरिमा ने समाचार दिया है कि चुनचुन को वहां बेटा हुआ है। उसका नाम भी रखा गया है – अनिकेत बाजपेयी।
पंडित अनिकेत बाजपेयी 25 दिसम्बर को रात 20.52 (वहां के स्थानीय समय) अवतरित हुये। पता नहीं अनिकेत पंडित प्रयागराज के कहायेंगे या लाहदेरांता, फिनलैंड के। या फिर दोनो जगह के? सरजूपारी, कान्यकुब्ज आदि होते थे बाभन; अनिकेत ग्लोबल बाभन होंगे!
अनिकेत पण्डित की जय हो!
चित्र अनिकेत पंडित के। उनकी कुलही फिनलैंड के अस्पताल वालों की गिफ्ट है!


