मकर संक्रांति – गंगे तव स्मरणात्‌ मुक्ति:

<<< मकर संक्रांति – गंगे तव स्मरणात्‌ मुक्ति: >>>

रात में जब भी नींद खुली, प्रयाग की ओर जाती रेलगाड़ियां बोझिल और उल्टी दिशा वाली फर्राटे से गुजरती सुनाई दीं। प्रयाग जाने वाली सभी सामान्य और मेला स्पेशल ट्रेने हर स्टेशन पर रुक रही होंगी – इस कटका स्टेशन पर भी। वापसी में खाली गाड़ियां रनथ्रू गुजर रही होंगी। सब दिशाओं से रेल और सड़क यातायात आदमियों औरतों की भीड़ संगम में उंडेल रहा होगा। अंतत: तीन बजे मैं उठ ही गया। कल्पना की कि संगम पर शाही स्नान शुरू होने वाला होगा। कुछ लोग तो डुबकी लगा भी चुके होंगे।

घर में भी मैने गीजर से पानी निकाल लिया। गर्म पानी की पाइप में कुछ फंसा है तो पानी धीरे धीरे निकलता है। एक बाल्टी भरने में दस मिनट लगते हैं। दो बाल्टियां भरीं। एक अपने और एक पत्नीजी के लिये। भोर में, सूर्योदय के पहले हमने स्नान कर लिया। संक्रांति का एक महत्वपूर्ण काम समय से सम्पन्न किया। नहाते समय कल्पना की कि गंगाजल में डुबकी लगाई। एक मग पानी सिर पर डाला मतलब एक डुबकी। दस पंद्रह डुबकियां लगाई होंगी इस तरह! गंगे तव स्मरणात्‌ मुक्ति:!

सुना है – गंगाजी के दर्शन से मुक्ति है। उससे आगे कहता हूं – गंगाजी आपके स्मरण से ही मुक्ति है!

***

प्रेमसागर ने सात बजे कुम्भ मेला क्षेत्र से फोन कर बताया कि वे भोर चार बजे गंगाजी में नहाये। मेला क्षेत्र में घूमे। पांच सात चित्र मुझे भेजे। वे फिर गुड्डू भईया के डेरा पर नहीं ठहरे, वापस अयोध्या वाले दशरथदास बाबा जी के यहां ही आ गये। उन्होने कुछ कारण बताया कि गुड्डू भईया और उनके गोल के लोग शाक्त हैं। रात भर धूनी जगा कर जागरण करने जा रहे थे। वे रात भर जागते और दिन में सोते। पटरी नहीं बैठी। … पर यह कारण मेरी समझ नहीं आया। अपने घर से प्रेमसागर चले गुड्डू भईया के निमन्त्रण पर ही थे – जैसा मुझे अब तक बता रहे थे। वे खुद शक्तिपीठ पदयात्रा कर चुके हैं। शाक्त विधियों की उन्हे जानकारी होनी चाहिये थी; बिफोर हैंड। खैर, मैने कुछ तिखार कर नहीं पूछा।

वे दिन में घूमेंगे मेला क्षेत्र। प्रवचन भी अटेंड करेंगे। रात तक मुझे दर्जन आधा दर्जन चित्र भेजेंगे। उनका संगम ट्रेवलॉग सेट पैटर्न वाला लगता जा रहा है। उनके चित्र भी मुझे भीड़ से अलग कोई कथा, कोई पात्र नहीं दिखा रहे। शायद यह इसलिये है कि मैं कभी कभी उखड़ा उखड़ा सा व्यवहार करता हूं। कल तक शायद मैं प्रसन्न हो सकूं। प्रसन्नता मेरा अपना इंटरनल मामला है। प्रेमसागर उसके कारक-मारक नहींं।

***

घर के पास के गंगाजी के घाट द्वारिकापुर पर गये। हमारी छोटी आल्टो गाड़ी में हम दो थे। रास्ते में एक महिला ने हाथ दिया। वह भी घाट जाना चाहती थी। हमने उसे और उसके छोटे बच्चे को आगे की सीट पर बैठने को कहा तो वह मेरी बगल का दरवाजा खोलने लगी। उसने बताया कि वह अकेली नहीं तीन लोग हैं। जैसे एक टेक्सी में गांव में आठ लोग भर जाते हैं, उसने कुछ वैसा सोचा कि कार में भी आ जायेंगे। हमने उन लोगों को मना कर दिया और आगे बढ़ गये।

घाट पर जैसे जैसे पंहुचने लगे, कोहरा नाचने लगा – नदी के पानी के पास कोहरे का अपना एक चरित्र होता है। ठण्ड भी ज्यादा लगने लगी। घाट पर पीपल के पेड़ के नीचे अलाव लगाये थे आठ दस लोग। मंदिर के कपाट बंद थे पर उसके सामने की जमीन पर मेला लगा था। खाने पीने की दुकानें, पिपिहरी, मूंगफली, आलता, बिंदी — सब थे। करीब सौ मोटर साइकलें गिन सकता था मैं। दर्जन भर कारें या अन्य चारपहिया वाहन।

मेला ठेला देखा, स्नान करते लोग देखे, पास में सरसों के खेत देखे और घर चले आये।

***

घर में खिचड़ी, गुड़ की रेवड़ी, गुड़ मिली दही आदि का भोजन किया। संक्रांति पर्व घर ने स्नानघर में गंगाजी के स्मरण से ही सम्पन्न माना। संगम या गंगा स्नान तो विकट धार्मिकों के लिये छोड़ दिया। .. गंगे तव स्मरणात्‌ मुक्ति:

[दो चित्र संगम क्षेत्र के प्रेमसागर के भेजे है। अन्य तीन यहाँ द्वारिकापुर गंगा तट के हैं।]

#प्रेमसागर #PremSangamYatra #प्रेमसंगमयात्रा #गांवदेहात #मकरसंक्रांति


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

5 thoughts on “मकर संक्रांति – गंगे तव स्मरणात्‌ मुक्ति:

  1. मेरा नाम क्यूँ नहीं आता टिप्पणी पर? -समीर लाल

    Like

  2. चूंकि 14 जनवरी अपना अवतरण दिवस भी है। ऐसे में गीजर के पानी स्नान करते वक्त अपन भी गंगाजी का स्मरण कर लेते हैं।

    संजीत त्रिपाठी

    Liked by 1 person

  3. आपके चलते हमें भी दर्शन हो लिए मेला क्षेत्र के – माध्यम प्रेम सागर 🙏🏻

    Liked by 1 person

आपकी टिप्पणी के लिये खांचा:

Discover more from मानसिक हलचल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Design a site like this with WordPress.com
Get started