फुटकर पोस्ट

अरुणा

अरुणा हमारे घर काम करती है।

आज अपने घर से गुड़हवा सेव का लेडुआ और जोन्हरी का लेडुआ/ढूंढी बना कर लाई और मेरे पैर छू कर मेरी मेज पर एक कटोरी में रख गई।

मकर संक्रांति पर इससे अच्छा और क्या हो सकता था। ताजा बना यह सब ऐसा लगा मानो गंगा नहा कर प्रसाद ग्रहण कर रहा होऊं। बहुत अच्छा बना था।

… वैसे आज सूर्योदय के पहले ही स्नान कर लिया था मैंने। आप सभी को मकर संक्रांति की मंगल कामनायें!


    विजय मिस्त्री के यहाँ

    कल विजय मिस्त्री जी की दुकान पर गया। गैस का चूल्हा ठीक करवाना था। पत्नीजी साथ गई थीं। वे ही तकनीकी निर्देश देने में सक्षम थीं।

    विजय मिस्त्री जी मेरे ब्लॉग के नायाब चरित्र हैं। मुझे अगर वे मौका दें और इनपुट्स दें तो मैं उनकी बायोग्राफी लिखना चाहूंगा। गांवदेहात में ऐसे कम ही लोग हैं जिनके बारे में यह धारणा है मेरी। विजय जी ने मेरी ओर अपना गैस रूम हीटर सरका दिया। ठंड के मौसम में अच्छी गर्मी दे रहा था।

    देसी तकनीक की जुगाड़ चीज है वह रूम हीटर। मेरा मन ललच गया वह लेने को। पर पत्नीजी, जो आजकल के टीवी सीरियल्स से प्रभावित हैं, उन्ही की भाषा में मुझे बोली – थोड़ा चिल करो! उनके अनुसार गैस का कमरे में गर्माहट के लिये प्रयोग नुक्सानदेय होगा।

    मेरा मन ललचता ही रहा। एक छोटे गैस सिलिंडर के साथ वह रूम हीटर का अटैचमेंट एक हजार से कम का पड़ता। बिजली का एक ब्लोअर भी उतने का आता है या उससे मंहगा। गैस वाले रूम हीटर के साथ दिक्कत यही है कि यह विशुद्ध जुगाड़ उपकरण है और गैस के साथ किसी नॉन स्टेंडर्ड उपकरण खतरनाक लगता है।

    पर ऐसी काम की चीज कोई मानक कम्पनी क्यों नहीं बनाती? ठण्ड के मौसम में यह तो खूब बिके! नहीं?

    विजय जायसवाल जी पर पुरानी ब्लॉग पोस्ट का लिंक – https://buff.ly/4fRqb5P

    गांवदेहात #आसपास


    भगेलू की गईया

    भगेलू की गईया एक पुराना कम्बल ओढ़े रहती है। दूर से याक लगती है। मानो मेरा गांव उत्तरप्रदेश में नहीं तिब्बत में हो।

    भगेलू ने उसे सानी दे रखी है नांद में। वह मुंह मार कर खाते खाते भी शायद जानती है कि मैं पास से गुजरते हुये उसकी एक फोटो क्लिक करूंगा। नोकिया का छोटा फोन उसकी ओर करने पर वह मेरी ओर देखने लगती है – फोटो खिंचाने के लिये पोज़ देते हुये। मैं सोचता हूं कि यह को-ईंसीडेंस है कि मोबाइल देखते ही उसकी ओर मुंह कर दिया हो। पर एक दूसरे फोटो के लिये रुकने पर वह फिर मोबाइल साधने पर अपना पोज देने लगी।

    पिछ्ले जनम में वह हीरोइन रही होगी। पक्का!


    इडली का घोल

    आज भी सवेरे कोहरा और दस बजे धूप. अब धूप लेने बैठा हूँ तो पत्नीजी पास में इडली का घोल रख गई हैं. सहेजा है कि ध्यान रखूं. उन्हें पक्का यकीन नहीं है कि मैं ध्यान रखूंगा। इसलिये ढक्कन के ऊपर एक लोढ़ा भी रख दिया है कि चेखुरा (गिलहरी) उसे खोलने का यत्न न करें।

    यही काम बचा है हमारे जिम्मे.

    इडली के घोल में हरी मिर्च खोंसने पर अच्छा खमीर उठता था, सर्दी ज्यादा बढ़ने पर कुछ दिक्कत होने लगी है शायद. सो धूप में रखा जा रहा है!

    अच्छा भला आदमी अकड़ गया है सर्दी में तो यह बेचारा इडली घोल है! 😁

    #बैठेठाले


    12 जनवरी 25

    कल लंच टाइम तक प्रेमसागर मेरे घर पंहुचे। पंहुचना परसों शाम तक था, पर गूगल मैप ने उन्हें भरमा दिया। वे बनारस के बीच से आने की बजाय बाबतपुर बाईपास से आने लगे तो रास्ता उनके लिये नया था और गूगल ने उन्हें किसी और विक्रमपुर की ओर ठेल दिया। जब तक पता चला तब तक पंद्रह किमी गलत रास्ते पर जा चुके थे। फिर मुझसे बात की, लोकेशन लिया मेरा और वापस बाबतपुर लौट कर एक मंदिर में शरण ली। पूरा देश पैदल घूमने वाले को गूगल नक्शे ने चकरघिन्नी खिला दी!

    एक मिश्रा जी थे, चाय दुकान वाले और मंदिर के ट्रस्टी, उन्होने एक कमरे में रुकने की व्यवस्था की। अपने घर ले जा कर भोजन भी कराया।

    कल मेरे घर रात रुके। आज बारह तारीख को बलिया-रामबाग पैसेंजर से प्रयाग के लिये रवाना हुये हैं। उन्होने बताया कि महीना भर कल्पवास करेंगे। तब संगम के कुछ इनपुट्स मिलेंगे मुझे!

    प्रेमसागर #PremSangamYatra #प्रेमसंगमयात्रा


    कटका रेलवे स्टेशन

    तीन चार साल बाद किसी रेलवे स्टेशन पर कदम रखा। अपने घर के बगल के कटका स्टेशन पर घूमते घूमते चला गया। सवेरे इक्कादुक्का लोग। प्लेटफार्म खाली था। पांच नम्बर पर मेला स्पेशल का रेक खड़ा था। एक बेंच पर बैठ गया।

    स्टेशन मास्टर साहब एक रन-थ्रू एक्स्प्रेस गाड़ी को झंडी दिखाने कमरे से बाहर निकले ऐन मौके पर। उन्होने मुझे बैठे देख लिया। असमंजस में थे कि मेरा अभिवादन करें या सामने आ रही ट्रेन को झंडी दिखायें। उनका दायित्व उनके शिष्टाचार पर भारी पड़ा। ड्राइवर साहब को ऑलराइट एक्स्चेंज कर फुर्ती से मेरे पास आये और पैर छू कर वापस अपनी ड्यूटी पर खड़े हो गये – गार्ड साहब से ऑलराइट एक्स्चेंज करने के लिये। … अच्छा लगा कि रेलवे के लोग अभी भी इज्जत करते हैं – एक दशक रिटायर होने के बाद भी। यह और भी सुखद था कि अपनी ड्यूटी पर मुस्तैद भी हैं।

    गाड़ी गुजरने के बाद स्टेशन अधीक्षक साहब अपने कमरे में ले गये मुझे। एक ही कुर्सी थी तो खुद खड़े रहे, मुझे बैठने के लिये बढ़ा दी। चाय मंगवाई। रेलवे की हालत और अपना सुख दुख बयान किया। यह भी कहा कि अगर हो सके तो उनकी ट्रांसफर की अर्जी पर ध्यान देने के लिये उनके साहब से सिफारिश कर दूं। रेल कर्मी के लिये घर के पास पोस्टिंग मिलना भारत रत्न मिलने जैसा पुरस्कार होता है!

    लगा कि मेरे अपने ही लोग हैं ये सब। स्टेशन मुझे फ्रीक्वेंटली जाना चाहिये और अगली बार जाने पर घर से चाय का भरा थर्मस और राजेश की गुमटी से आधा दर्जन समोसे भी ले कर जाना चाहिये।

    अच्छा लगा धीरज का मेरे प्रति आदर-आत्मीय व्यवहार।

    #रेलपरिवार


    11 जनवरी 25

    सर्दी की रात में लघुशंका के लिये जाना टॉर्चर है। उठना, रजाई से बाहर निकलना, ओढ़ने के लिये शॉल टटोलना, सिर ढंकना और जाना…

    मेरे बेड़रूम के साथ ही टॉयलेट है तो ज्यादा दिक्कत नहीं; पर #गांवदेहात में लोग शौचालय घर के बाहर बनवाते हैं। वे क्या करते होंगे? पूस की रात में बाहर निकलना कितना कष्टकारक होगा? बढ़ती उम्र और प्रोस्ट्रेट ग्रंथि के एनलार्जमेंट पर रात में कई बार उठना पड़ता है। उस बुढ़ाते आदमी के लिये तो बिपत ही है।

    बहत्तर साल के फलाने, जिनका शौचालय घर से तीस कदम पर बाहर है, उनका क्या हाल होता होगा?

    अटैच्ड बाथ/टॉयलेट; गठिया ग्रस्त घुटनों के कारण वेस्टर्न स्टाइल कमोड जैसी चीजें लग्जरी हैं या उम्र की जरूरत? कोई आश्चर्य नहीं कि लोग घर के बगल की दीवार या आंगन के एक कोने का उपयोग करते हैं और वह क्षेत्र गंदगी का कारक होता है।

    गंवई जिंदगी में सब कुछ नोस्टाल्जिक ही नहीं है। छोटे छोटे कष्ट बहुत हैं।

    #फुटकरसोच #बैठेठाले


    Published by Gyan Dutt Pandey

    Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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