<<< दशरथदास जी का जीवन देखने की चाह >>>
प्रेमसागर ने मेला क्षेत्र से दो चरित्रों से परिचय कराया। बेतिया के श्रीकांत जी और राम रगड़ आश्रम, प्रह्लादघाट, अयोध्या के दशरथदास जी से। मैं जिस तरह की दुनियां-समाज में रह रहा हूं, उससे अलग हैं ये लोग।
श्रीकांत जी बेतिया में किसी मंदिर में हैं। रामरगड़ आश्रम से जुड़े हैं और पूरे कुम्भ मेला भर प्रयाग में रहेंगे। लगता है प्रेमसागर जी के मित्र हैं या बन गये हैं। वे प्रेमसागर की सुल्तानपुर-बैजनाथधाम कांवर यात्राओं के साथ थे या उनसे मुलाकात अयोध्या के आश्रम में हुई, यह अभी जानना है। वे गृहस्थ हैं या सन्यासी? मंदिर के कर्मचारी हैं या मंदिर के कर्ताधर्ता? उनका जीवनयापन कैसा है? उनकी आध्यात्मिक यात्रा कैसी है – इस तरह के प्रश्न मन में उठते हैं। प्रेमसागर वहां के और लोगों से बात करायेंगे तो उनके बारे में भी उठेंगे इस तरह के सवाल। कायदे से मुझे वहां होना चाहिये था। पूरे महीने भर के मेला के दौरान नहीं तो दो चार दिन के लिये…
बाबा दशरथदास, बकौल उनके चौहत्तर-पचहत्तर साल के हैं। रामरगड़ आश्रम का प्रबंधन उनके अधिकार क्षेत्र में है। आश्रम में तीस के आसपास स्थाई लोग हैं और आने जाने वाले नित्य सौ से हजार लोग होते हैं। उन सब के लिये संसाधनों और सुविधाओं की व्यवस्था करना बड़ा काम है। उनकी तुलना मैं एक मिड-कैप कम्पनी के सीईओ से करता हूं। बाबा जी की प्रबंधन दिनचर्या में उसी तरह के चैलेंज होंगे। दशरथदास बाबा जी के लीडरशिप रोल को मैं अपने नौकरी के दौरान के रोल से कमतर नहीं आंक सकता। और वे इस उम्र में भी कार्य में जुटे हैं। आश्रम प्रबंधन के अलावा वे अपनी और अपने अनुयायियों की आध्यात्मिक उन्नति के लिये भी प्रयासरत रहते हैं! दशरथदास जी का चरित्र मुझे बहुत आकर्षित कर रहा हैं।
उनसे दो चार मिनट की बातचीत हुई। वे मधुर स्वर में बोलने वाले, प्रेम, करुणा, त्याग आदि गुणों से ओतप्रोत लगे। मेरे पास साइकिल है, लेखन है और आसपास का अवलोकन है। दशरथ बाबा के पास तो सक्रियता है, रोज अनेकानेक लोगों से मिलना, उनको समझना, आश्रम का आर्थिक प्रबंधन करना, जमीन जायजाद का लेखाजोखा सम्भालना और शायद राजनीति को साधना आदि कार्य उनकी दिनचर्या में हों।
उनका आश्रम अयोध्या में परिक्रमा मार्ग पर, सरयू किनारे, रामजन्मभूमि मंदिर से पांच सौ मीटर पर है। दशरथ बाबा से प्रयाग में और फिर अयोध्या में मिलने का भी लालच मेरे मन में उमड़ा।
प्रेमसागर अब महीना भर दशरथबाबा जी के यहां ही रहेंगे। मैं बीच बीच में उनके माध्यम से दशरथदास जी से बातचीत करता रहूंगा। क्या पता इसी माध्यम से मैं आध्यात्मिकता की ओर मुड़ सकूं। उम्र के उस भाग में अब मैं हूं, जहां बाकी चीजों को हाशिये पर डालते हुये धीरे धीरे आध्यात्म को अपने जीवन में लाना चाहिये।
प्रेमसागर जी ने राम रगड़ आश्रम के महंत सियारामदास बाबा का चित्र भी खींच कर भेज। वे सौ साल के हो रहे हैं। ध्यान में लगे रहते हैं। यहां महाकुम्भ के अवसर पर आये हैं। भविष्य में शायद उनसे भी मुलाकात हो!
सोचता हूं, संयोग बनता दिख रहा है; एक दिन प्रयाग हो ही आऊं। दशरथदास जी का जीवन देखने की चाह मन में उठ रही है।
जै सियाराम!




ऐसे लोगों की जीवनचर्या कठिन होने के बावजूद आकर्षित करती है। आप जाएँ कुम्भ में- और भी कई तपस्वी मिलेंगे वहाँ- आपके माध्यम से उनके बारे में जानना भी श्रेयकर होगा। शुभकामनाएं
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कठिन हमारी भी थी, पर 75 की उम्र में भी उनकी इतनी सक्रिय और कठिन है वह आकर्षित करती है!
आपको धन्यवाद!
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अब शायद नाम भी दिखाए
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अनाम टिप्प्णी बता रहा था पहले! :-)
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समीर कहां किसी को दिखाई देती है?
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निश्चित ही ऐसी जीवनचर्या कठिन होने के बावजूद भी आकर्षित करती है। जरूर मिल कर आयें कुम्भ में। और भी संत पधारे होंगे वहाँ -आपके माध्यम से जानना श्रेयकर होगा।
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टिप्पणी के लिये धन्यवाद!
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