संगम में भटका भल्लू

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गांव का ही है भल्लू। भल्लू कंहार। उससे मैं तीन दिन से मिलना चाहता हूं पर मिलना नहीं हो रहा। वह सवेरे सात बजे काती के कारखाने पर चला जाता है और रात आठ बजे के बाद वापस आता है। कार्पेट बुनकर के कारखाने में लोग दो तरह से काम करते हैं। एक तो दिहाड़ी पर करते हैं; दूसरे भल्लू जैसे काम के आउटपुट के हिसाब से पैसा पाते हैं। जितने वर्गफुट बिनाई की, उसके हिसाब से पैसा। भल्लू ज्यादा कमाने के लिये ज्यादा देर तक काम करता है। कारखाना तीन-चार किमी दूर है बाबूसराय में। मेरा अंदाज है पैदल ही जाता होगा। तेरह घंटा कारखाने में और आने जाने को जोड़ कर व्यतीत करता है वह। उसके बाद कहां समय निकालेगा मेरे लिये?!

मैं क्यूं मिलना चाहता हूं? असल में भल्लू संक्रांति के दिन संगम नहाने गया था। वह और उसकी पत्नी गये थे। संगम में वह भटक गया। पत्नी ने उसे ढूंढा, पर न मिलने पर वह गांव वापस आ गई। पत्नी शायद ज्यादा छटपट है। उनके पास एक मोबाइल फोन था और वह पत्नी के पास था। भल्लू अकेले, बिना मोबाइल के, बिना दिशा ज्ञान के भटभटाता रहा। तीन दिन बाद गांव किसी तरह वापस लौटा। … भल्लू के पास अगर फोन होता, या भल्लू-भल्लुआइन दोनो के पास फोन होते तो भल्लू शायद बिछुड़ता नहीं।

मेरे मन में बहुत तरह के सवाल हैं। पैंतीस साल का भल्लू, जो कारखाने में काम करता है, इतना घोंघा कैसे हो सकता है कि प्रयाग से घर न लौट पाये? प्रयाग से गांव तो एक सीध में है। हाईवे के उपर चलते चलते आ सकता है। कहीं मुड़ना नहीं है। संगम से झूंसी, हंडिया, गोपीगंज, औराई और गांव विक्रमपुर। गांव और पास की जगहों का नाम भी मालुम हो तो कोई न कोई वाहन लिफ्ट दे सकता है। पता नहीं क्या हुआ भल्लू के साथ।

बहुत से लोग माघमेला में गुम होते रहे हैं। छोटी उम्र के भाइयों के बिछुड़ने और लम्बे अंतराल के बाद मिलने की कहानियों के आधार पर बड़ा साहित्य मिलता है। पर पैंतीस-चालीस साल का कामकाजी आदमी खो जाये? उसकी पत्नी घर आ जाये और वह भटकता रहे; ऐसा कहीं होता है? भल्लू की कहानी अज़ीब लगती है। पर भल्लू से मिलना ही नहीं हुआ कि मैं उसे सही सही जान पाता।

अशोक (मेरे वाहन चालक) का कहना है कि भल्लू सारी जिंदगी यहीं गांव के आसपास ही रहा। पहले कभी इलाहाबाद नहीं गया। शायद बनारस भी नहीं गया हो। अपने काम से काम रखने वाला है वह। पर क्या चार पांच किलोमीटर की परिधि में ही जिंदगी के चार दशक काटे हैं उसने? और फिर किस आधार पर महाकुम्भ नहाने चले गये दम्पति? जितनी जानकारी मिलती है उसके अनुपात में प्रश्न भी बनते-बढ़ते चले जाते हैं। भल्लू मेरे लिये पहेली बन गया है। समाजशास्त्र की पहेली।

गांव के कोंहराने में, मेरे घर से आधा किमी दूर रहता है भल्लू। सर्दी में बहुत सवेरे उसके यहां जाना या रात में जाना – दोनो ही असुविधाजनक हैं। पर कभी मिलना तो होगा ही। मैं अपनी पत्नीजी को कहता हूं कि घर पर रहती भल्लू की औरत से ही मिला जाये। उससे मिलने मैं अकेले नहीं जा सकता। पत्नीजी को चलना ही होगा मेरे साथ। पर पत्नीजी अपने काम में व्यस्त रहती हैं। वे मुझे कहती हैं – जाओ, खुद ही हो आओ। जब आकास की माई से बोल बतिया सकते हो तो भल्लू की पत्नी से मिलने में तुम्हें क्या झिझक? … लिहाजा न भल्लू से मिलना हुआ है न भल्लूआइन से।

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मैं दो चार बार संगम गया हूं कुम्भ या माघ मेला के अवसर पर। भूला भटका शिविर का अनाउंसमेंट सतत सुनाई देता है। अनाउंसमेण्ट में किसी पत्नी, किसी बेटी, किसी आदमी की आवाज में सुरसत्ती देवी, छुट्टन के पापा, गांव स्रीरामपुर के रामखेलावन आदि के लिये बोलने वाले की आवाज में अटपटापन और घबराहट – दोनो लक्षित होते हैं। हर एक अनाउंसमेंट में एक कथा होती होगी। आखिर मेला हो, भीड़ हो, लोग हों और बिछुड़ें नहीं – यह हो ही नहीं सकता।

भल्लूआइन ने भूले भटके शिविर में जा कर भल्लू के लिये कोई अनाउंसमेट किया था या नहीं? यह एक और सवाल मेरे मन में जगा है।

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मेरे पास लिखने के लिये कोई चित्र नहीं है। मैं ग्रोक को चित्र बनाने के लिये अनुरोध करता हूं। वह चार चित्र बनाता है। एक तो मैं खुद ही रिजेक्ट करता हूं – वह ग्रामीण आदमी ज्यादा स्मार्ट लग रहा है। भल्लू अगर स्मार्ट होता तो भुलाता कैसे? बाकी चित्र अपने घर काम करने वाली अरुणा को दिखाये जो भल्लू को जानती है। वह सभी चित्र रिजेक्ट करती है। चार और चित्र बनाता है ग्रोक। उसमें से एक चुन कर मैने इस पोस्ट के साथ लगाया है।

चित्र भी सट गया और पोस्ट भी बन गई। पर भल्लू की कथा मिलनी बाकी है। वह मिली तो आगे लिखी जायेगी!

#महाकुम्भ25 #ज्ञानमहाकुम्भ

[1] आकास की माई पर ब्लॉग पोस्ट – https://gyandutt.com/2022/10/19/%e0%a4%ad%e0%a5%81%e0%a4%82%e0%a4%9c%e0%a4%88%e0%a4%a8-%e0%a4%86%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%b8-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%ae%e0%a4%be%e0%a4%88/


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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