मेरे अधियरा सुग्गी का लड़का एक वयस्क उल्लू ले कर आया। घायल हो गया है यह। ऊपरी चोट नहीं दिखती। कोई घाव या खून नहीं है। एक पंख पूरी तरह नहीं खुल रहा है। थोड़ा बहुत उड़ सकता है। पर ऊंची उड़ान नहीं भर सकता।
राजा ने बताया कि किसी के पतंग के मंझे में फंस गया था। महुआ के पेड़ पर उलझा हुआ था। राजा ने उसे उतारा। कुछ खाने और पानी पीने को दिया पर खा पी नहीं रहा है। राजा के अनुसार जब उसने पेड़ से उतारा था, तब से उसका वजन कुछ कम लगता है।
राजा भी उससे छुटकारा पाना चाहता था। उसने छोड़ दिया तो वह खलिहान का उल्लू (Barn Owl) हमारे घर में पौधों पेड़ों के बीच घुस गया। दोपहर का समय था, तो उसे ज्यादा दीखता भी नहीं होगा। यह समय तो सामान्यत: उल्लू के आराम का है।
उसकी चोंच बहुत तीखी है और अभी भी उसमें अपने आप को छुड़ाने की ताकत है। हमारे घर में उसे शरण मिल जायेगी। यहां पानी है और छोटे जीव भी। बिल्ली से उसको खतरा हो सकता है, पर वह लगभग उस मरियल बिल्ली के आकार का है। बिल्ली शायद उस पर आक्रमण करने से पहले सोचे। यहीं घूम टहल कर शायद उसका पंख कुछ ठीक हो जाये।
मैं प्रकृति की सेल्फ-हीलिंग पर दाव लगाते हुये उसको #घरपरिसर में उसके हाल पर छोड़ रहा हूं। शायद एक दो दिन यहां रह कर ठीक हो कर उड़ जाये। या फिर मेरे घर में किसी ऊंचे पेड़ पर अपना डेरा बना ले। पहले एक खलिहान का उल्लू सागौन के पेड़ पर रहता था। उसकी जगह ले सकता है यह।
और भी बहुत जीवों के बारे में सोचने को था। अब यह उल्लू परसाद भी उसमें जुड़ गये!
(चित्र में राजा, उल्लू के साथ)

उल्लू को मैं यूं ही नहीं छोड़ पाया। मैने जैमिनी एआई की सहायता ली। बकौल जैमिनी, अगर बार्न आउल चोटिल है तो बिल्ली उसे सस्ते में नहीं छोड़ेगी। बिल्ली शिकारी प्रवृत्ति की होती है तो किसी न किसी तरह से उल्लू को घातक नुक्सान पंहुचा सकती है। उसने मुझे सलाह दी –
तत्काल सहायता के लिए संपर्क करें: यह सबसे महत्वपूर्ण कदम है। अपने क्षेत्र में एक वन्यजीव बचाव संगठन या पशु चिकित्सक से तुरंत संपर्क करें जो जंगली जानवरों के इलाज में विशेषज्ञ हों। वे उल्लू का आकलन कर सकते हैं और उसे उचित देखभाल प्रदान कर सकते हैं। आप इंटरनेट पर “wildlife rescue [आपका शहर/राज्य]” खोज कर ऐसे संगठनों का पता लगा सकते हैं।
मैने वैसा ही किया। मेरे गांव से पैंतालीस किलोमीटर दूर वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन फाउंडेशन मिला नक्शे में। फोन करने पर सर्वेश चौधरी जी मिले। उन्होने कहा कि मैं वाराणसी से दूर भदोही जिले में हूं, तो वे मुझे सीधे सहायता नहीं दे सकते पर वे मुझे भदोही के डीएफओ साहब (नीरज आर्य जी) का नम्बर दे सकते हैं जो किसी तरह से उस उल्लू का उपचार निदान करवा सकेंगे।
मैने सोचा – कहां सरकारी महकमे के चक्कर में पड़ गया मैं। अव्वल तो ये डीएफओ साहब फोन नहीं उठायेंगे, उठाया भी तो टरकाऊ जवाब मिलेगा। इतनी बड़ी दुनियाँ में एक गांव के उल्लू की क्या अहमियत? मैने अनिच्छा से नीरज जी को फोन लगाया। पर नीरज जी ने पूरी सहायता की। उन्होने औराई के अपने अधीनस्थ रेंजर साहब को कहा। औराई से मेरे पास फोन आया और उन सज्जन ने किसी कर्मचारी को मेरे घर पर रवाना किया। नीरज जी को फोन करने के एक घंटे के अंदर वन विभाग के राकेश यादव जी मेरे घर पर आ गये थे।
रात हो गई थी। मुझे लगा कि उल्लू कहीं नॉक्टरनल जीव होने के कारण कहीं इधर उधर न चला गया हो, पर घायल होने के कारण वह वहीं, गुलाब के समूह के पीछे दीवार से सट कर बैठा था। राकेश जी ने एक कपड़ा मांगा। उन्होने और उनके साथी उदय जी ने किसी तरह उल्लू को पकड़ा। उल्लू उनसे बचने के लिये इधर उधर उड़ा, पर अंतत: उनकी पकड़ में आ गया। हमने एक बोरा उन्हें दिया जिसमें वे उल्लू को दबोच कर ले जा सकें। राकेश यादव जी को मैने पांच मिनट बैठ चाय पी कर जाने को कहा पर वे रुके नहीं। “इसको औराई अस्पताल ले जायेंगे जिससे इलाज हो सके” – कह कर राकेश और उदय अपनी मोटर साइकिल से चले गये।
विलायत में यह प्रकरण हुआ होता तो डिसकवरी चैनल वाला तामझाम के साथ एक डॉक्यूमेंट्री बना दिया होता। एक जूड़ा बांधे पूरे शरीर में टैटू गुदवाये आदमी और चड्ढ़ी पहने कद्दावर महिला बचाव कार्य का हीरोइक शूटिंग कर रहे होते। यहां राकेश और उदय जी मेरे पुराने पर्दे और बोरे के साथ यह काम कर चले गये। वे अगर चाय पीने के लिये रुकते तो मैं उनसे उनके कामधाम पर बातचीत करता। पर खलिहान के चोटिल उल्लू का उद्धार हो पाया, यही संतोष की बात रही।
अच्छा लगा कि वन विभाग एक अदना से उल्लू के प्रति भी सहृदय है! भारत जैसे “चलता है” की मानसिकता के परे वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन फाउण्डेशन नामक संस्था काम कर रही है और डीएफओ साहब/उनके अधीनस्थ भी क्विक रिस्पॉन्स देने वाले संवेदनशील लोग हैं। … आशा है खलिहान का उल्लू बच जायेगा और अपनी पूरी उम्र जियेगा।
(चित्र – उल्लू को थामे उदय और राकेश यादव।)


सुप्रभात।
कृत्रिम बुद्धि की मदद से घायल उल्लू को सही मदद पहुंचाने की कथा, रोचक है, प्रेरित करती है और भारतीय व्यवस्था में विश्वास और आशा की लौ जगाती है। खरिहानी उल्लू को नजदीक से देखना विरले ही हो पाता है।
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