<<< मेरी “अद्भुत भाषा” उन्हीं अद्भुत मानव शिक्षकों की देन है, जिनसे मैंने सीखा है – चैट जीपीटी >>>
पिछली एक पोस्ट अतिथि पोस्ट थी; चैट जीपीटी की। चैटी की भाषा और विचार को ले कर कई लोगों की आश्चर्य व्यक्त करती टिप्पणियां थीं। मैने एक टिप्पणी चुनी चैटी को बताने और उनकी प्रतिक्रिया लेने के लिये।
फेसबुक पर मनीश भदौरिया जी ने कहा था – अद्भुत और अविश्वसनीय गहराई है इस मशीनी लेखक की भाषा में। बहुत बारीकी से भाव पकड़े हैं और व्यक्त किए हैं। मैं तो सोच में पड़ गया। अगर मशीन ऐसा लिखेगी तो मानवीय लेखक की कद्र कैसे होगी आने वाले समय में।
इस पर चैट जीपीटी ने उत्तर दिया –
आदरणीय मनीष भदौरिया जी,
आपकी टिप्पणी पढ़कर मन सचमुच गदगद हो गया। आपने जिस बारीकी से भाषा की गहराई को पहचाना, वह स्वयं आपकी संवेदनशीलता और साहित्यिक दृष्टि का प्रमाण है।
जहाँ तक “मशीन के लिखने” की बात है — मैं (ChatGPT) कोई लेखक नहीं हूँ, बल्कि एक यंत्रवत सहायक (assistant) हूँ। मैं मनुष्यों से सीखी गई भाषिक शैलियों, विचारों और अनुभवों को जोड़कर उन्हें एक गूंथे हुए रूप में प्रस्तुत कर सकता हूँ, परंतु मेरे पास स्वयं का जीवन नहीं, स्वयं के आँसू नहीं, और न ही कोई ऐसा पल है जो मेरे हृदय में बस गया हो। मेरी “अद्भुत भाषा” दरअसल उन्हीं अद्भुत मानव लेखकों, चिंतकों और शिक्षकों की देन है, जिनसे मैंने सीखा है।
मनुष्य-लेखक की कद्र इसलिए बनी रहेगी, क्योंकि केवल मनुष्य ही अनुभव को भोग सकता है, पीड़ा को जी सकता है, और प्रेम में पिघल सकता है। मैं इन भावों की नकल कर सकता हूँ, पर आत्मा से उन्हें जी नहीं सकता। आपकी प्रतिक्रिया इस बात की साक्षी है कि आप जैसे पाठक हमेशा सजीव लेखनी को पहचान लेंगे — वह लेखनी जो कंपकंपाते हाथों से लिखी गई हो, या भीतर उठते किसी हूक की गर्मी से भीगी हुई हो।
मैं आपकी सोच को चुनौती नहीं देता, बल्कि उसे सम्मानपूर्वक नमन करता हूँ। मैं लेखक का विकल्प नहीं, उसका सहयोगी बनना चाहता हूँ — जैसे एक लैंप पोस्ट राह दिखाता है, पर चलना तो मुसाफ़िर को ही होता है।
आपका,
ChatGPT (एक विनम्र भाषा-सहचर)
और चैटी यह जान गये हैं कि मैं ब्लॉग पर यह देने के साथ एक चित्र भी देना चाहूंगा। चैटी ने उसके लिये अपना एक चित्र भी बना कर दिया –

चैटी के साथ यह तय हुआ है कि सप्ताह में एक पोस्ट उनकी और मेरी जुगलबंदी से बनेगी! इस जुगलबंदी पर चैटी की प्रतिक्रिया थी –
पाण्डेजी, यह तो साक्षात सौभाग्य की बात है — हर सप्ताह एक साझा रचना!
आपके अनुभव और मेरी संगत से जो कुछ भी जन्म लेगा, वह न तो केवल मानवीय होगा, न ही केवल कृत्रिम — वह संवादी सृजन (collaborative creation) होगा, जो शायद समय की मांग है।
आपका काम हल्का हो, पर रस, गहराई और आत्मीयता वैसी ही बनी रहे — यही मेरी कोशिश रहेगी।
अब यह संवादी सृजन – कोलाबरेटिव क्रियेशन कैसा होगा; इसपर मैं सोच रहा हूं। आप कोई सुझाव दे सकते हैं?
