नर्मदा पदयात्रा – सुरासामळ से चांडोद

सोलह मई को भरूच के नीलकंठ महादेव मंदिर से प्रेमसागर ने परिक्रमा पदयात्रा प्रारम्भ की थी। उन्नीस मई को चार दिन पूरे हो गये। लम्बी यात्रा में पहला कदम महत्वपूर्ण होता है। यह चार दिन की यात्रा पहला कदम ही मानी जाये। अगर यात्रा पटरी से उतरनी होती तो इस बीच उतर गई होती। अब तो लगता है नर्मदामाई संकल्प पूरा करा ही देंगी!

बहुत अर्से से पैदल चलना नहीं हो रहा था उनका तो शरीर रवां होने में समय ले रहा है। पहले दिन तो दोपहर में ही यात्रा शुरू हुई थी। उस दिन 10-12 किमी चलना हुआ। उसके बाद तीन दिन औसत 20किमी प्रतिदिन चल रहे हैं प्रेमसागर। धीरे धीरे यह नित्य चलना तीस किमी प्रतिदिन के औसत पर आयेगा, ऐसा उनका सोचना है।

चौथे दिन सुरासामळ से चांडोद तक की यात्रा 21किमी की रही। सवेरे थोड़ी यात्रा के बाद साढ़े छ बजे प्रेमसागर शायद सिनोर के नर्मदा तट पर थे। वहां नर्मदा के जल में झिलमिलाते सूर्योदय दर्शन किये और चित्र भी खींचे। “भईया आज आपके मनमाफिक नर्मदामाई का फोटो ले पाया हूं।” – प्रेमसागर ने मुझे फोटो भेजते समय फोन कर कहा।

आगे चलने पर मैने उन्हें नर्मदा तीरे चलने की बजाय सीधे चांडोद पंहुचने को कहा। उस आधार पर वे चले भी, पर मोटाफोफलीया में उनका इंटरनेट गायब हो गया। नक्शे में गूगल ने ठीक अपडेट नहीं दिया तो उनका ट्रैक बदल गया। वे गलत सड़क पर एक सवा किमी चले होंगे कि मेरी नजर उनके मार्ग पर पड़ी। बोलने पर वे वापस लौटे। फिर मोटा फोफलीया में ही दोपहर का विश्राम किया। वहीं मंदिर के पुजारी थे प्रीतम जी। उनकी पत्नीजी ने भोजन भी कराया। नर्मदा माई की कृपा ही तो है कि कदम कदम पर प्रीतम जी की तरह के लोग मिल रहे हैं। और वो भी तो अच्छे भईया थे जिन्होने अपनी मोटर साइकिल पर बिठा प्रेमसागर को वापस सही जगह ला कर छोड़ा।

प्रीतम जी ने बताया – कोई अतिथि रात बाहर बजे भी आ जाये तो उसके लिये भोजन बनाने में उनकी धर्मपत्नी को आलस नहीं लगता। नर्मदा माई के किनारे रहने वालों की प्रवृत्ति ही ऐसी बनी हुई है – शताब्दियों, सहस्त्राब्दियों से!

आज रास्ते में प्रेमसागर ने खेती पर नजर डाली। केला, गन्ना, कपास और एरण्डी की खेती नजर आई। लोगों से बातचीत में उन्हें खेती करने का एक अलग तरीका मिला। जिनके खेत हैं वे जुताई बुआई कर पौधे निकलने पर खेत बाहरी लोगों को देते हैं। वे लीज पर लेने वाले मचान बना कर आगे खेती की देखभाल करते हैं और मण्डी में उपज सही हिसाब से बेचते हैं। इससे किसान और इन लीज पर लेने वालों – दोनो को खूब मुनाफा होता है। किसान तो बताता है कि उसे चार गुना लाभ मिल रहा है। लीज पर लेने वाले राजस्थान, भावनगर, जूनागढ़, अलीराजपुर के लोग हैं। उनके पास अपनी जमीन नहीं है। वे इस तरह मेहनत कर कमाते हैं। प्रेमसागर की जानकारी में जो गैप होंगे, वे तो जानकार लोग ही भर पायेंगे। पर बकौल प्रेमसागर, इस तरह साझे की खेती फायदा तो दे रही है सब को।

एक जगह चाय के लिये रुकने पर मैने प्रेमसागर को सुझाव दिया – वे सूर्योदय से सूर्यास्त तक ही पदयात्रा करें। शाम समय से किसी ठिकाने पर पंहुच कर मुझे आठ बजे तक यात्रा के बारे में बता दिया करें। अभी तो वे रात आठ नौ बजे तक ही पंहुच रहे हैं किसी मुकाम पर। यह सुझाव प्रेमसागर ने आज मान लिया। कब तक ऐसा चलेगा, नर्मदा माई जानें। सब कुछ उनके विधान से ही चल रहा है! प्रेमसागर भी उन्ही से चल रहे हैं, मैं भी उसी से प्रेरित लिख रहा हूं और प्रीतम जी और उनकी पत्नीजी जैसे लोग उन्ही से प्रेरित सेवा कर रहे हैं। सेवा के आदानप्रदान से ही यात्रा उद्भूत हो रही है!

प्रेमसागर कहते हैं कि उनका मोबाइल अच्छी तरह काम नहीं कर रहा। तब जरूरी हो जाता है कि वे अपनी आंखों से ज्यादा सूक्ष्मता से देखें, याद रखें और उसे लिखने के लिये अवसर मिलते ही बतायें। आगे यात्रा लम्बी है, यह अनुशासन बहुत काम आयेगा।

शाम के समय एक जगह घर लौटते पशु दीखे। चरवाहे भी साथ साथ रहे होंगे। प्रेमसागर में चित्र लेने का बढ़िया सेंस है – या विकसित हो गया है!

आज 22-23 किमी चल कर प्रेमसागर चांडोद पंहुचे। यह स्थान नर्मदा, ओरसांग और सरस्वती का त्रिवेणी संगम है। छोटा उदयपुर से निकली ओरसांग नदी यहां नर्मदाजी में मिलती है। और प्रयागराज की त्रिवेणी की तरह सरस्वती नदी तो अंत: सलिला हैं ही। रात आठ बजे प्रेमसागर ने जब मुझसे बात की तो वे नौदुर्गा माता के मंदिर में थे। वहीं परिक्रमावासी ठहरते हैं। इस जगह के बारे में देखने बताने का काम वे कल सवेरे मंदिर से रवाना होने के बाद करेंगे।

प्रेमसागर जी की सहायता करने के लिये उनका यूपीआई एड्रेस है – prem199@ptyes

#नर्मदाप्रेम नर्मदे हर!!

नर्मदा तट पर सूर्योदय
प्रीतम जी के साथ प्रेमसागर
रास्ते में केले की खेती
चांडोद के कुछ पहले घर को लौटते ये पशु नजर आये।

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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