तिलकवाड़ा से झारिया

तिलकवाड़ा में सवेरे – 21 मई की सुबह, प्रेमसागर रवि काका जी के साथ बैठे थे मारुति मंदिर परिसर में। रवि काका जी की उम्र कोई पचहत्तर साल होगी – ऐसा प्रेमसागर ने बताया। रवि काका सोनावणे जी भी पदयात्री हैं नर्मदा माई के। माई की पूरी परिक्रमा तीन बार कर चुके हैं। सौ-डेढ़ सौ बार तो तिलकवाड़ा की चैत्र मास की उत्तरवाहिनी नर्मदा-परिक्रमा कर चुके होंगे। इस सब को जोड़ लिया जाये तो 11-12 हजार किमी पदयात्रा नर्मदा के इर्दगिर्द ही उन्होने की है। जिस तरह प्रेमसागर बाबा धाम के पदयात्री हैं, उसी तरह रवि जी नर्मदा माई के। अच्छी जोड़ी मिली सवेरे सवेरे। साथ में रवि जी के भाई बाबू काका जी भी थे। वे भी नर्मदा भक्त हैं।

रवि जी ने प्रेमसागर को अगले चैत्र में तिलकवाड़ा आने और महीना भर रुकने का निमंत्रण दिया है। निमंत्रण में पूरा आतिथ्य निहित होता है। प्रेमसागर जी को यह निमंत्रण स्वीकार करने में कोई हिचकिचाहट नहीं करनी चाहिये!

नर्मदा की तिलकवाड़ा जैसी छोटी परिक्रमा मंडला में भी होती है। वहां एक दिन बीच में विश्राम करने की परम्परा है। रवि काटा जी ने उसके बारे में प्रेमसागर को बताया तो प्रेमसागर ने मन बनाने में देर नहीं लगाई – मण्डला वाली परिक्रमा भी कभी न कभी वे करेंगे!

रवि काका जी हिंदी अच्छी जानते, बोलते हैं। उम्र के बावजूद वे ऊर्जावान हैं। शायद नर्मदा के सानिध्य का प्रताप है। प्रेमसागर जी ने रवि जी का फोन नम्बर ले लिया है। कभी अवसर मिला तो नर्मदा जी के बारे में उनसे जानकारी लूंगा मैं।

रवि काका सोनावणे (बांये) और प्रेमसागर। तिलकवाड़ा में सवेरे चाय पीते हुये।

तिलकवाड़ा से निकलने पर रेंगन पड़ा। वहां मुस्लिम आबादी है। यहां के मुसलमान हिंदू धर्म से धर्मांतरित हैं। अपने नाम के आगे ठाकुर लगाते हैं। प्रेमसागर को सिराज भाई मिले। सिराज भाई ठाकुर। सिराज भाई ने दो गायें पाल रखी हैं। उनका दूध परिक्रमा वासियों के लिये अर्पित करते हैं वे। उनके दो हिंदू कर्मचारी हैं जो परिक्रमावासियों के लिये भोजन बनाते और आतिथ्य करते हैं। दो कर्मचाहियों हिंदू इंटरफेस के साथ वे नर्मदा माई की, और परिक्रमावासियों की सेवा करते हैं। नर्मदा माई के प्रति श्रद्धा धर्म के बंधन से नहीं बंधी। मुझे अच्छा लगा सिराज भाई और उन जैसे लोगों के बारे में जान कर। धर्मांतरण के बावजूद नर्मदा उनको उनकी जड़ों से जोड़े हुये हैं।

सिराज भाई ठाकुर

मैने प्रेमसागर को कहा कि वे केवड़िया तक पदयात्रा करते चलें। वहां से सरदार पटेल की स्टेच्यू ऑफ यूनिटी तक किसी वाहन से जा कर आयें और रात केवड़िया में गुजारें। लगभग वैसा ही किया प्रेमसागर ने। उन्हें बताया गया कि करीब पचास हजार आदिवासी पटेल जी की प्रतिमा के पास आंदोलन करने जा रहे हैं। उनकी जमीन के बदले मुआवजे और रोजगार के मुद्दे हैं। इसलिये प्रशासन ने पुख्ता बंदोबस्त किये हैं और किसी का वहां जाना सम्भव नहीं होगा। पर प्रेमसागर ने एक पुलीस वाले भाई को समझाया कि वे परिक्रमा कर रहे हैं, आदिवासी नहीं हैं। वे तो बाभन हैं। आंदोलन से उनका कोई लेना देना नहीं है। इतनी लम्बी परिक्रमा के दौरान उनका उद्देश्य तो एक बार सरदार पटेल की प्रतिमा को पास से देखना भर है। “भईया, मैंने इंटरनेट पर आपका लिखा ब्लॉग भी दिखाया अपने बारे में। पुलीस वाले भाई ने को‌ऑपरेट किया। दो मिनट के लिये मैं उनकी सहायता से प्रतिमा के पास जा कर फोटो खींच पाया।”

प्रेमसागर वाचाल नहीं हैं, पर सामने वाले को प्रभावित करना जानते हैं!

स्टेच्यू ऑफ यूनिटी से वापस लौट कर शाम के समय एक गांव झारिया से बात की प्रेमसागर ने। वे एक पंचमुखी हनुमान मदिर के ओसारे में बैठे थे। साथ में मंदिर के पुजारी थे सदानंद चैतन्य। शायद चैतन्य महाप्रभु के भक्त। आसपास प्रेमसागर को और भी वैष्णव मिले। “भईया,आपको चार पांच लोगों का फोटो भी मैने भेजा है। वे भी मिले थे। वे सत्यनारायण भगवान के भक्त हैं।

हनुमान मंदिर में प्रेमसागर और सदानंद जी भर थे। दो और लोग वहां रहते हैं, पर वे गांव में गये थे सामान लाने। उनके सामान लाने पर भोजन-प्रसाद बनने वाला था। भोजन बनाने का काम सदानंद जी करने वाले थे। … पर नर्मदा माई ने परीक्षा ली। भोजन बन ही नहीं पाया। उसके पहले तेज आंधी पानी आया। रात दो बजे तक बैठे बैठे गुजारी प्रेमसागर ने। “पानी खूब झंकोर ले कर आ रहा था तो सोना ही नहीं हो पाया।” खाली पेट और अधनींद रात!

अगले दिन यह सब जान कर मैने प्रेमसागर से पूछा – “अपने पास सत्तू नहीं रखा था? उससे भूख तो मिट जाती।? पर प्रेमसागर के पास कुछ भी बैक अप के लिये नहीं था। उन्होने बताया “सतू खतम हो गया था, और इस इलाके में सत्तू मिलता भी नहीं।”

यह मुझे बेकार तर्क लगा। सत्तू नहीं मिलता तो भुना चना तो सब जगह मिलता है। वह भी न मिले तो पार्लेजी का बिस्कुट तो सब जगह होता ही है। बिना थोड़ी तैयारी के यात्रा भी कोई यात्रा हुई। नर्मदा माई को इतना कष्ट तो नहीं देना चाहिये।

सरदार पटेल की प्रतिमा के साथ प्रेमसागर

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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