#नर्मदापदयात्रा में 10-11वें दिन।
प्रेमसागर की नर्मदा पदयात्रा – दिनांक 25 मई 2025 को सकदी से धर्मराय की यात्रा करीब अढतीस किलोमीटर की हुई।
अगले दिन 26 मई को धर्मराय के नारायण कुटी मंदिर से निसारपुर आने के लिये उन्नीस किलोमीटर चलना हुआ।
सरदार सरोवर परियोजना के कारण केवलिया (गुजरात) से सकदी (मध्यप्रदेश) तक की यात्रा तो नर्मदा से छिटक कर ही हुई। सकदी के आगे परिक्रमा का नर्मदा के तीरे तीरे चलने का सुख प्रेमसागर को मिलने लगा।
कई तरह के हठी परिक्रमावासी हैं। प्रेमसागर को दो लोग मिले जो साइकिल से चल रहे हैं, पर वे जमीन पर बैठते या बिस्तर पर लेटते नहीं। एक जगह एक छोटी आलमारी के ऊपर अधलेटे और बाकी शरीर साइकिल पर साधे वे आराम कर रहे थे। प्रेमसागर को फोटो लेने से मना कर दिया। बकौल उनके “फोटो खिंचवाने से उनका व्रत-अनुष्ठान भंग होगा”। क्या कहा जाये? वे तालिबानी प्रकृति के परिक्रमावासी हैं? वे अपनी अज़ब-गज़ब परिक्रमा के कायदे कानून पालन में ही लगे रहते होंगे!
“भईया उनका दूर से आगे फोटो लूंगा जरूर। काहे कि वे एक दिन में पचास-साठ किलोमीटर चलते हैं साइकिल पर। वे हनुमान मंदिर उमराय (?) में विराम ले रहे थे, तो कभी न कभी आगे निकलते मिलेंगे ही।” – प्रेमसागर ने कहा।
एक और परिक्रमा वासी मिले। वे हिच हाइकिंग (वाहन याचन) के नियम पर चल रहे हैं। वे किसी मोटर साइकिल वाले को हाथ दे कर रोकते हैं और जहां तक वाहन वाला ले जाये, जाते हैं। उसके बाद कुछ पैदल चलते हैं और अगले वाहन को तलाशते रहते हैं।
अनेक तरह के नर्मदा पदयात्री हैं। “कोऊ मुख हीन विपुल मुख काहू” वाले शिवजी के गणों की तर्ज पर नर्मदामाई के भक्त भी विपुल सोची हैं। सब के अपने तरीके हैं और अपने नियम।
“भईया चौमासा में यात्रा विराम करने की भी जरूरत नहीं। एक जगह मुझे बताया गया कि चौमासा शुरू होने पर कुछ दिन देवशयनी एकादशी के बाद रुक कर और एक खंडित यात्रा का संकल्प ले कर यात्रा जारी रखी जा सकती है। मैं अब वैसा ही करूंगा।” – प्रेमसागर उहापोह में थे कि चौमासे में यात्रा रोक कर कैसे रहें, तो उन्हें समाधान मिल गया।

प्रेमसागर ने एक पावर बैंक खरीद लिया है, एक सिम जियो में पोर्ट करा लिया है। एक फीचर फोन खरीदने जा रहे हैं। एक जगह उन्हें नर्मदायात्रा पथ का नक्शा भी मिल गया है। उसके अनुसार रोज करीब बीस किलोमीटर चलते हुये वे आगे की यात्रा करेंगे। एक पिट्ठू भी खरीदेंगे आगे। … यह सब तैयारी जो यात्रा पूर्व होती, वह अब वे एक पखवाड़े के अनुभवों के बाद करेंगे।
सकदी के गुजरिया आश्रम की जमीन पर तरबूज की काफी खेती होती है। एक पूरा तरबूज खाने को मिला बाबाजी को। आगे चल अखल और हथिनी नदी पार की। अखल हथिनी नदी का एक अंग है। हथिनी नदी खुद नर्मदा की एक ट्रिब्यूटरी हैं। ओरसांग नदी के बाद पहली बड़ी नदी।

मध्यप्रदेश का धार जिला आ गया है। रास्ते में एक जगह प्रेमसागर ने बताया – बड़ा दुर्गम रास्ता है, भईया। पहाड़ अजब हैं। पैर पड़ने पर पत्थर टूट जाता है। पानी की बहुत किल्लत है। एक चित्र मैने लिया है जिसमें दस फुट बाई दस का एक कुंड है जिसमें पानी के टैंकर से पानी भर कर रखते हैं लोग। यह पानी परिक्रमा वालों और बाकी लोगों के काम आता है।” एक जगह एक गांव वाले पाटीदार जी ने पानी मंगवा कर प्रेमसागर को पिलाया।
प्रेमसागर ने बताया – बड़ा दुर्गम रास्ता है, भईया।
धर्मराय के नारायण कुटी मंदिर में ट्रस्टी रघु दरबार सोलंकी जी रात में राउण्ड पर आते हैं। व्यवस्था देखते हैं और परिक्रमावासियों की खोजखबर लेते हैं। मेरे मन में प्रश्न उठता है कि नारायण कुटी और इस जैसे सैकड़ों आश्रमों-शालाओं में की जा रही सेवा का अर्थशास्त्र क्या है? आखिर यह धर्म को जीवित रखने और उसके लिये खाद पानी मुहैय्या कराने का कितना शानदार उपक्रम है। समय के साथ इन आश्रमों का स्वरूप बदला होगा। पर आज वह जिस भी तरह से है, वह मन और आत्मा को तृप्त कर जाने वाला है!


नारायणकुटी मंदिर में भोजन-प्रसाद था दाल बाटी। चित्र में देखने में अच्छी लग रही थी थाली।
मार्ग के नदी-पहाड़ और रास्ते – सब खुरदरे और दुर्गम भले हों, मन को मोह लेने वाले हैं। मुझे तो अजीब लगता है कि इतने मनमोहक परिदृष्य में प्रेमसागर तीस चालीस किलोमीटर चलने की बात कैसे करते हैं? यह सीन उनके पैर बांध नहीं लेते? और अगर नहीं बांधते तो प्रेमसागर में सौंदर्यबोध कहां है? आध्यात्मिकता-आस्तिकता बिना सौंदर्य निहारने के कैसे सम्भव है?
मैं नर्मदा की यात्रा पर और जानकारी के लिये तिलकवाड़ा के रवि काका सोनावणे जी से फोन पर बात करता हूं। उनका जीवन तो नर्मदामय है। वे पूरी श्रद्धा से बता रहे थे – “फरवरी का महीना था। हम पांच लोग थे यहीं मंदिर में। मैं चाय बना रहा था कि इतने में एक बहुत सुंदर महिला द्वार पर आई। उसने चाय की मांग की। उसके पैर इतने सुंदर-सुनहरे थे कि मन हो रहा था मैं उन्हें चूम लूंं।कुछ बोल कर वह पीछे की ओर गई। मुझे लगा कि अपना गिलास लेने गई होगी, पर फिर दिखी नहीं। हम सब ने देखा – आसपास जहां तक वह जा सकती रही होगी, देखा। पर मिली नहीं। अहसास हुआ कि मैय्या खुद चल कर दरवाजे पर आई थीं!”
क्या सच वही होता है जो हम आँखों से देखें?
या वह भी होता है, जो हमारी चेतना से टकरा जाए —
बिना दरवाज़ा खटखटाए? यूंही?
रवि जी के लिए यह सच था।
उन्होंने नर्मदा माई को अपनी देह से नहीं,
अपने भीतर के, अंतर्मन के द्वार से देखा था।
कभी तट पर, कभी यात्रा में, और कभी —
मंदिर के दरवाज़े पर।
धर्मराय के आगे यात्रा के दौरान प्रेमसागर ने मुझसे पूछा – “भईया, रास्ते में बच्चा बच्चा अभिवादन करता है “नर्मदे हर”। और उसके साथ मुर्गा भी कुकड़ूं कूं करता है। हर जगह ऐसा लगा है कि पशु पक्षी भी कह रहे हों – नर्मदे हर!

“भईया, मैं अब ज्यादातर नर्मदा परिक्रमा पथ पर चल रहा हूं। पथ से जगह जगह पगडंडी नदी किनारे जाती है।”


निसारपुर के राम मंदिर में मिले गंगाराम पाटीदार जी। उम्र सत्तर की है। उनका गांव सरदार सरोवर परियोजना के जल की चपेट में आ गया। कुछ लोगों को मुआवजा मिला – जमीन मिली। कुछ अभी भी आंदोलन कर रहे हैं। गंगाराम जी पच्चीस साल से आंदोलन से जुड़े रहे हैं।
निसारपुर के पुराने गांव से दो किलोमीटर हट कर यह नया गांव बसा है। पुराने गांव की एक टूटी इमारत का चित्र मिला है। कुछ ऐसा लगता है जैसे हम्पी का कोई खंडहर हो। अब नया मंदिर भी बन रहा है। पाटीदार जी मंदिर में परिक्रमा वासियों की सेवा भी करते हैं। मंदिर में तीन साल की परिक्रमा में चल रहे हीरालाल जी भी हैं। उनका चित्र भी मिला।



मैं सोचता हूं – इन सब चरित्रों और नर्मदा माई के आसपास के बारे में सोचते कितना कुछ लिखा जा सकता है।
मुझे शौकिया ब्लॉगर की बजाय एक इक्कीसवीं सदी का अमृतलाल वेगड़ सरीखा लिखने का यत्न करना चाहिये! … अपनी लेखकीय लिमिटेशन पर कोफ्त होती है। मन में कितना कुछ चलता है, पर उस सब को शब्द कहां से मिलें? नर्मदा माई सहायता करेंगी? वे तो शायद रवि काका जैसे निश्छल चरित्र पर कृपा बरसाती हैं!
नर्मदे हर!
प्रेमसागर जी की सहायता करने के लिये उनका यूपीआई एड्रेस है – prem199@ptyes
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#नर्मदाप्रेम नर्मदे हर!!





