स्कंद, अग्नि और वायु पुराण के रेवा खंड में आख्यान है कि इसी स्थान से देवताओं ने नर्मदा की परिक्रमा प्रारम्भ और पूर्ण की थी। इस स्थान पर ही नर्मदा की कृपा से उनको देवत्व बोध हुआ, तो स्थान का नाम बोधवाड़ा पड़ा। नर्मदा का प्रताप ही है कि आदमी या देवता, अपना आत्मबोध कर पाता है। वर्ना जिंदगी तो खटकरम में ही फंसी रहती है।
बस, आप अपना बैकपैक साधिये और कहीं से भी, नर्मदा माई को दाहिने रखे हुये परिक्रमा प्रारम्भ कर दीजिये। नर्मदा माई का प्रताप है तो देवता लोग आपके पीछे पीछे आ ही जायेंगे! नर्मदे हर!
मैं सोच रहा हूं – बांध ने नर्मदा को बांधने का पूरा प्रयास किया है। पर उसने जल को साधा है, नर्मदा से स्वभाव को, उनकी पवित्रता को नहीं। बावजूद बांध के, परिक्रमा होती रहेगी और नर्मदा देवताओं-मानवों को उनका बोध कराती रहेंगी।
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