नर्मदा पदयात्रा – निसारपुर से बोधवाड़ा

बोधवाड़ा: जहाँ से देवताओं ने नर्मदा परिक्रमा की

#नर्मदापदयात्रा 12वां दिन 27 मई 2025

अभी भी नदी का किनारा बांध के असर से अछूता नहीं है। बांध का पानी मौसम के साथ बढ़ता है। उससे बचने के लिये नीचे के तटीय इलाकों से आबादी हट कर पीछे ऊंची जगहों पर चली गई है। किनारे पर कुछ बड़े पेड़, कुछ मंदिर अभी भी वहीं जमे हैं। जब बांध का पानी ले कर नर्मदा बढ़ती हैं तो जल समाधि में चले जाते हैं वे। सांस रोके देवता लोग इंतजार करते हैं नर्मदा पुन: पीछे सरकने का। नदी के आगे आने, पीछे हटने वाला नृत्य स्थानीय लोगों ने देखा होगा। बुज़ुर्ग शायद वो दिन याद करते हों, जब नर्मदा बिना बांध के अपने ढंग से बहती थी। यूं, नर्मदा थोड़े ही यह निर्मम तांडव करती हैं। वह तो बांध का किया धरा है।

निसारपुर से बोधवाड़ा – जहां तक आज की पदयात्रा हुई, यही खेल दिखा नदी का। मालवाड़ा-बोधवाड़ा गांवों में बसावट एक दो किलोमीटर पीछे सरक गई है। अब वे गांव ऊंचाई पर हैं। लोग ऊंचाई से भी नर्मदा माई के दर्शन सहज ही कर लेते होंगे, पर घाट तक जाने में तो श्रम बढ़ गया है।

बांध को ले कर लोगों में अलग अलग राय है। किनारे के गांवों के लोग, ज्यादातर उम्रदराज लोग जिन्होने बांध के पहले की नर्मदा देखी हैं; वे बांध को सभी मुसीबतों की जड़ मानते हैं।

नौजवान लोग तो गिनाते हैं उससे मिलने वाली नहरों के पानी के लाभ। वह नौजवान – रामलाल, तो बांध के पक्ष में तर्क देते हुये लड़ने को भी तैयार हो गया। आखिर उसके खेत में केले और अरहर की फसल जो लहलहा रही है। और पीने के पानी की किल्लत की पुरखा-पुरनिया की बात तो वह जानता ही नहीं।

प्रेमसागर बोधवाड़ा में नर्मदा तट पर हो आये। उन्होने बताया कि नर्मदा का बहाव तेज है। लहरें कुछ वैसे आती है जैसे समुद्र में। वैसी ही आवाज भी करती हैं। नदी का पाट भी चौडा है। सरदार सरोवर डैम के आगे तो नदी में रेत के टापू – बेट दिखते थे। यहां तो बड़ी जलराशि ही दिखती है। नर्मदा की प्रकृति बांध के पहले और बांध के बाद अलग है। शुक्लतीर्थ की नर्मदा और बोधवाड़ा की नर्मदा अलग लगती हैं।

इस जगह पर एक पट्ट लगवाया है किसी आनंद ही आनंद संस्था ने। पट्ट में कहना है कि स्कंद, अग्नि और वायु पुराण के रेवा खंड में आख्यान है कि इसी स्थान से देवताओं ने नर्मदा की परिक्रमा प्रारम्भ और पूर्ण की थी। इस स्थान पर ही नर्मदा की कृपा से उनको देवत्व बोध हुआ, तो स्थान का नाम बोधवाड़ा पड़ा। नर्मदा का प्रताप ही है कि आदमी या देवता, अपना आत्मबोध कर पाता है। वर्ना जिंदगी तो खटकरम में ही फंसी रहती है।

लोग ॐकारेश्वर से भी नर्मदा परिक्रमा शुरू करते हैं। कुछ लोग भरूच से करते हैं। एक पट्ट के अनुसार एक महामंडलेश्वर जी ने आँवली से भी परिक्रमा प्रारम्भ की थी 2021-22 में। मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना। यूं भी नर्मदा के किनारे के हर कंकर शंकर कहे जाते हैं। हर कंकर कोई न कोई तीर्थ है।

बस, आप अपना बैकपैक साधिये और कहीं से भी, नर्मदा माई को दाहिने रखे हुये परिक्रमा प्रारम्भ कर दीजिये। नर्मदा माई का प्रताप है तो देवता लोग आपके पीछे पीछे आ ही जायेंगे! नर्मदे हर!

मालवाड़ा में षोडल बाबा का मंदिर है। उसके कर्ताधर्ता हैं हनुमान दास जी। हनुमान बाबा से प्रेमसागर का पुराना परिचय है। वे चित्रकूट और अयोध्या में उनसे मिल चुके हैं। हनुमानदास जी पंचनंदनी अखाड़ा के हैं। यहां मुलाकात होने पर दोनो को ही हर्ष हुआ। प्रेमसागर सोलह किलोमीटर ही चले थे। और आठ किमी चलना था, पर हनुमान दास जी के यहां ही रुक गये। ऐसे रुकना चलना होता रहे तो ही नर्मदा पदयात्रा में रस है।

आज मैं सोच रहा हूं – बांध ने नर्मदा को बांधने का पूरा प्रयास किया है। पर उसने जल को साधा है, नर्मदा से स्वभाव को, उनकी पवित्रता को नहीं। बावजूद बांध के, परिक्रमा होती रहेगी और नर्मदा देवताओं-मानवों को उनका बोध कराती रहेंगी।


प्रेमसागर जी की सहायता करने के लिये उनका यूपीआई एड्रेस हैprem199@ptyes

नर्मदे हर! नर्मदायात्रा #नर्मदापरिक्रमा #प्रेमसागर_पथिक


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

आपकी टिप्पणी के लिये खांचा:

Discover more from मानसिक हलचल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Design a site like this with WordPress.com
Get started