रतनिया से धर्मेश्वर महादेव

रतनपुर से एक ऊर्ध्व देशांतर रेखा नक्शे पर खींचें तो नर्मदा के दूसरी ओर वह पुनासा से गुजरेगी। पुनासा गांव के पास ही बना है नर्मदानगर, जो इंदिरासागर बांध परियोजना का मुख्यालय है। कुल मिला कर प्रेमसागर रतनिया के आगे जो यात्रा कर रहे हैं वह बांध बनने के पहले का परिक्रमा मार्ग नहीं रहा होगा। आगे साठ सत्तर किलोमीटर की परिक्रमा नर्मदा के जल के सहारे नहीं; मूल स्वरूप वाली नर्मदा की स्मृति और श्रद्धा के सहारे चलती है। एक परिकम्मावासी कहता है – इंदिरा सागर में माँ नर्मदा की साँसें धीमी हो गईं, पर हृदय अभी भी स्पंदित है।

इंदिरासागर में डूब का क्षेत्र

रतनिया से दातौनी नदी के नर्मदा संगम तक की सत्तर किलोमीटर की यात्रा मूलत: डूब प्रभावित परिवर्तित यात्रा मार्ग है। यह उत्तर तट पर है। दक्षिण तट पर तो इंदिरासागर की डूब का विस्तार और व्यापक होगा।

मैं प्रेमसागर की इस पदयात्रा के संजय की भूमिका के फेर में न पड़ता तो इंदिरासागर के इलाके को चिमटी से खोल खोल कर देखने का कोई प्रयास शायद जिंदगी भर न करता। प्रेमसागर खुद तो शायद अब भी न कर रहे हों। उनके जिम्मे तो मात्र चलना है। मन की यात्रा तो मेरे जिम्मे है।

वेगड़ जी की नर्मदा यात्रा नर्मदा परिक्रमा नहीं थी। अत: उसमें भले ही सौंदर्य और लालित्य तो बहुत है नर्मदा का, पर परिक्रमा वाला अनुशासन नहीं है। उनको पढ़ने से यह नहीं पता चलता कि बांध के पहले परिक्रमावासी कहां कहां से गुजरते थे। मेरे ख्याल से वे आगे की सत्तर किलोमीटर की यात्रा करने की बजाय नर्मदा तट से चिपके चलते होंगे। बेचारे पदयात्री अब छिटक गये हैं नर्मदा माई से। मानो इंदिरासागर के 1000 मेगावाट बिजली का करेंट उन्हें दूर फैंक गया हो।

मेरी पत्नीजी कहती हैं – अब ट्रेवलॉग लिखने के फेर में इंदिरासागर परियोजना का इतिहास-भूगोल छानोगे? उतना अभी तो नहीं करूंगा, पर ढेर सारी सामग्री टटोल जरूर ली है। भविष्य में अगर इस ट्रेवलॉग पर ब्लॉग से ज्यादा गम्भीर लेखन करना हुआ तो वह सब अध्ययन करना होगा।

मैं बांधों का पूरा नक्शा देखता हूं तो एक आस्तिक के नाते ठेस जरूर लगती है; पर वैसे विहंगम दृष्टि से नर्मदा अब भी कमोबेश पहले वाली नर्मदा ही लगती हैं। सरदार सरोवर, इंदिरा सागर और बरगी का इलाका आंत में गांठ जैसे लगते हैं। उनसे नर्मदा जी का सौंदर्य कुछ कम जरूर हुआ है पर वे गंगाजी की तरह आईसीयू की मरीज सी नहीं लगती हैं।

यूं, डूब के आकलन पर कितना समय लगाया जाये? जब पाँवों का रास्ता डूब जाए, तो श्रद्धा नई पगडंडी बना ही देती है।

नर्मदा का नक्शा यहां से लिया गया है।

खैर, अपनी कहने की बजाय प्रेमसागर की मूल यात्रा पर लौटा जाये।

रतनिया में प्रेमसागर आश्रम में रुकना चाहये थे, पर आश्रम का ताला बंद था। मायूसी जरूर हुई। भोजन मिलने की आस नहीं बची तो आश्रम के एक खुले हॉल में चादर बिछा कर सोने की सोची। चादर बिछाने पर एक महिला वहां आई। उन्होने कहा कि बाबाजी, आप मेरे घर आइये और रात वहीं गुजारिये। महिला गरीब थी और उनका घर भी साधारण था, पक्का जरूर था। इसी आश्रम में वे (शक्ति सिंह सोलंकी की माता जी) परिचारिका का काम करती हैं। भोजन बनाती हैं। उन्होने ही रात में भोजन बना कर खिलाया।

गांव में ही टेट्या मामा की प्रतिमा दिखी। सम्भवत: गांव आदिवासी भील-भिलाल लोगों का है। भिलाला भी सोलंकी जातिनाम लगाते हैं। महिला सम्भवत: आदिवासी रही होंगी। प्रेमसागर जी को शबरी माई का प्रसाद मिला! नर्मदे हर। सवेरे जब चलते हुये प्रेमसागर ने उनका चित्र खींचा तो उसमें उनके हाथ प्रणाम की मुद्रा में जुड़े हुये थे।

टांट्या मामा की प्रतिमा, शक्ति सिंह सोलंकी की माता जी और उनका घर

रतनपुर के आगे घना जंगल था। शुरुआत में सवेरे चरवाहे और उनके गाय बैल जंगल में चरने के लिये जाते दीखे। “भईया, सभी जानवरों के गले में बड़ी बड़ी घंटियां बंधी थी। कोई जंगली जानवर उनकी आवाज से पास नहीं आते हैं इन आवाजों से। मुझे बताया कि जंगल में सब किसिम के जानवर हैं। बाघ, शेर, चीता… सब कोई। भईया सारिस्का में तो हमने केवल बाघ देखे थे यहां सब हैं। कभी कभी मगरमच्छ भी सैर के लिये चले आते हैं, ऐसा मुझे बताया।”

प्रेमसागर ने खुद कोई जंगली जानवर नहीं देखा, पर उनकी उपस्थिति का अहसास जरूर हुआ। रास्ते में कई जगह हड्डियां बिखरी दिखीं। जैसे किसी शिकार को किसी जंगली जानवर ने खाया हो। कई जगह रास्ते के साइड में बोर्ड लगे दिखे, जिसमें लोगों को सावधान रहने को कहा गया था।

बोर्डों पर लिखी जानकारी के अनुसार यह लक्कड़-कोट है; दण्डक वन। एक जगह लक्कड़ कोट की झाड़ी भी लिखा है। बाद में प्रेमसागर ने बताया – भईया, जितने भी जंगल मैने पार किये हैं, उनसे यह सबसे ज्यादा सुनसान और खतरनाक था।”

लक्कडकोट का दंडकवन

पूरे रास्ते में दो जगह लोगों ने पानी पिलाया। एक जगह तो नौजवान वाहन से आ कर पिलाये और बोले – बाबाजी, हम तो वाहन से यात्रा कर रहे हैंं, फिर भी हमें बारबार प्यास लग रही है। आप तो पैदल चल रहे हैं।” नौजवान और उनके साथ के लोगों ने फोटो भी खिंचाई।

“एक जगह भईया मैं थोड़ा दौड़ कर चल रहा था तो दूर एक झोंपड़ी से दो लड़कियों ने आवाज दे कर रोका और आ कर पानी पिलाया। वे पानी की जरूरत महसूस करती थीं।”

पानी पिलाने वाले

“भईया आज अजूबा देखा। एक बैलगाड़ी में तीन बैल लगे थे। दो एक तरफ और एक दूसरी तरफ। बैलगाड़ी वाले ने कहा कि अगर चौथा बैल होता तो वह भी जोत सकता था। चार बैलों के साथ कितना भी बोझा हो, ले कर चल सकता हूं – गाड़ीवान ने बताया।”

जो चित्र भेजे हैं अब तक यात्रा में प्रेमसागर ने, उससे लगता है मध्यप्रदेश में बैल का उपयोग अभी भी हो रहा है। “ट्रेक्टर हैं, पर छोटे वाले हैं भईया।” … आश्चर्य नहीं कि इस इलाके की आबोहवा साफ सुथरी है।

तीन बैल वाली बैलगाड़ी

शाम सात बजे प्रेमसागर धर्मेश्वर महादेव मंदिर में पंहुचे। बड़ा मंदिर है यह। किंवदंती है कि यह धर्मराज युधिष्ठिर ने बनवाया था। इंदिरासागर की डूब में आ गया था यह मंदिर। मुआवजे से सन 2002 में पहले की जगह से कुछ पीछे इसका पुनर्निमाण हुआ है। कोई मारवाड़ी सज्जन ने इसकी पहल की – प्रेमसागर को बताया गया। एक दूसरा मंदिर – बालेश्वर महादेव भी था, पर उसका पुनर्निमाण अभी तक नहीं हो सका है।

आज एकादशी है। प्रेमसागर फलाहार ही ग्रहण करते हैं। आश्रम के भंडारी हैं बदाम जी, उन्होने बाबाजी के अनुरोध को माना और उन्हें आलू मिला कर तीना के चावल की खीर बना कर खिलाई। “भईया तीना का चावल फलहारी माना जाता है। अगली बार आपसे मिलने आऊंगा तो अपने गांव से ले कर आऊंगा। तीना के चावल के साथ बगला की दाल भी फलहारी होती है। तीना के चावल और बगला की दाल की खिचड़ी बनाई जा सकती है फलाहार में।” …… फोन पर प्रेमसागर से संवाद चलता ही रहता है। उन्होने बताया कि बगला की दाल कुछ कुछ चने की दाल जैसी होती है देखने में।

फलाहार के लिये लोगों ने विकल्प तलाश लिये हैं – पौष्टिकता भी हो और स्वाद भी।

बाबाजी ने प्रसन्न हो कर बदाम जी की फोटो भी भेजी है!

धर्मेश्वर महादेव मंदिर। दांये नीचे हैं बदाम जी, भंडारी

प्रेमसागर जी की सहायता करने के लिये उनका यूपीआई एड्रेस है – prem199@ptyes

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नर्मदे हर!!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

5 thoughts on “रतनिया से धर्मेश्वर महादेव

  1. मां सरस्वती की विशेष कृपा है आप पर सर कि इतना शानदार ब्लॉग लेखन चल रहा है🙏 नर्मदे हर 🚩🙏🚩

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