जून 13 उनतीसवां दिन।
श्रद्धालु मिलते गये, सूरजकुंड की थाह नहीं मिली, और लू ने प्रेमसागर को रोक दिया — फिर भी यात्रा रुकी नहीं
कल 13 जून को सुडानिया से चल कर भारकच्छ पंहुचे प्रेमसागर।
सवेरे पांच बजे सुडानिया के आश्रम से निकले थे। सवेरे एक सज्जन देवेश पटेल जी ने चाय पिलाई। चलते समय आधा सेर देसी घी और बाती का पैकेट भी दिया। बोले हम तो नर्मदा माई की नियम से आरती कर नहीं सकते, आप ही कर दिया करना बाबाजी। पता नहीं बाबाजी इससे पहले शाम के स्नान के बाद जो ध्यान करते हैं, उसमें नर्मदा जी को दिया-बाती करना भी होता है या नहीं, अब जुड़ गया।

परिकम्मा वासी को अपनी ही नहीं, मिलने वाले लोगों की श्रद्धा को भी कांधे पर साधते बढ़ना होता है। नर्मदे हर!
मैने यह नहीं पूछा कि देवेश जी से कुछ नगदी भी पाये क्या? श्रद्धा प्रेम तो सही है, पर नगदी हो तो श्रद्धा में तरावट आ जाती है! :lol:
आगे हथनौरा पड़ा। वहां सूरजकुंड है जिसके बारे में कहावत है कि वह अथाह गहरा है। हाथी तो क्या, खाट की रस्सी तक डूब जाये और थाह न मिले। अर्थात एक खाट की बिनाई में लगी रस्सी की लम्बाई से ज्यादा गहरा है सूरज कुंड।
खाट की रस्सी लटका कर किसने नापी होगी गहराई? कहावतें तो कवि की कविता की तरह उपमा देने में निर्दोश भी होती हैं और अचम्भित करने वाली भी।
देवेश पटेल और उनकी पत्नीजी का एक चित्र लिया प्रेमबाबा जी ने। प्रेमबाबाजी का उनकी लाठी और पिट्ठू के साथ चलते हुये फोटो भी मेरे अनुरोध पर देवेश जी ने खींचा। प्रेमसागर ने उसे और फोटोजीनिक बनाने के लिये उनके छोटे बच्चे को भी साथ लिया फोटो में।

आगे एक गांव पड़ा जैत। वहां के नितिन जाट जी का फोटो लिया बाबाजी ने । नितिन जाट के मामा जी ने अपने गांव के मुहाने पर एक सुंदर द्वार बनवाया है अपने माता पिता की स्मृति में। माता सुंदर देवी थीं और पिता प्रेम जी। द्वार के ऊपर लिखा है प्रेमसुंदर द्वार, जैत। माता पिता की स्मृति में स्मारक का यह तरीका कितना अच्छा है। कितने ही लोग द्वार के नीचे से गुजरते होंगे। वे सब याद करते होंगे प्रेमजी और सुंदर देवी को। नितिन जाट सेवा भावी भी हैं।
नर्मदा किनारे रायसेन जिले में ही तीन बार के मुख्य मंत्री और आजकल भारत की काबीना में मंत्री शिवराज सिंह चौहान जी का पुश्तैनी गांव है। उनके घर के बाहर खड़े हो कर प्रेमसागर जी ने अपना चित्र खिंचवाया।
शिवराज सिंह जी का गांव का घर अच्छा और सुरुचिपूर्ण है। घर आमंत्रित करता सा लगता है। बड़े मंत्री जी का भौकाल दिखाता, ऊंची दीवार में किले नुमा अहसास कराता घर नहीं लगता, जैसा उत्तर भारत का एक टुच्चा सा नेता भी कराना चाहता है!

नागनेर (ऐसा प्रेमसागर ने लिखा) में एक सज्जन राजेंद्र सिंह जी के घर दोपहर की भोजन-प्रसादी ग्रहण की। वे कुछ सुनाते रहे कि ऊदल की पत्नी इसी गांव की थी। नर्मदा किनारे रोज स्नान को जाया करती थी। “भईया इस जगह का नाम मुगल काल में बदला गया। नागनेर हो गया।” नक्शे में जगह का नाम नंदनेर आता है। पूरी कथा क्या है, वह तलाश नहीं पाया। यह ब्लॉग पोस्ट कभी पुस्तक बनने में प्रयोग हुआ तो और छानबीन करूंगा। ब्लॉग के खुरदरे और फटाफट लेखन में उतना शोध नहीं हो पाता। [यह प्रसंग भविष्य की गहराई से छानबीन के योग्य है]
नर्मदा परिक्रमा की पोस्टों की सूची नर्मदा परिक्रमा पेज पर उपलब्ध है। कृपया उसका अवलोकन करें। इस पेज का लिंक ब्लॉग के हेडर में पदयात्रा खंड के ड्रॉप डाउन मेन्यू में भी है।
राजेंद्र सिंह जी के यहां ही भोजन के बाद दोपहर का आराम किया बाबाजी ने। चार बजे उठ कर चले। आठ बजे वे भारकच्छ पंहुचे।

लेकिन पहुंचे कहां, पंहुचाये गये। एक दिन पहले तीस किलोमीटर चले थे, आज गर्मी और उमस में 25 किलोमीटर चल चुके थे, जब लू के कारण ज्वर ने उन्हें आ दबोचा।
“एक पेड़ की छांव में उठ बैठ रहा था भईया। लोग देखे तो यहां ले आये।” रात आठ बजे प्रेमसागर ने फोन कर बताया।
गर्मी का मौसम और ऊपर से उमस। दो तीन दिन में मानसून आ टपकेगा। उससे पहले उनचास डिग्री तापक्रम का अहसास था। सवेरे पांच घंटा चल चुके थे बाबाजी। शाम चार बजे फिर उठ कर पेरने लगे अपने आप को। दो घंटे में लू ने दबोच लिया। भारकच्छ पार कर चुके रहे होंगे। तब लोग वापस उन्हें लाये और एक राम मंदिर के निर्माणाधीन हॉल में उन्हें टिकाया।
कई लोग जमा हो गये थे प्रेमसागर के राह चलते अस्वस्थ होने की सुन कर। कोई उनमें से डाक्टर साहब को बुला लाये। बुखार तेज था तो एक अन्य सज्जन बर्फ भी लाये। दो घंटा बाबाजी के सिर पर ठंडे पानी और बर्फ की पुल्टिस रखी गयी। डाक्टर खुद सहृदय व्यक्ति थे। वे रुक गये और प्रेमसागर के सिर पर पट्टी रखने लगे। दो घंटे में ताप उतरा।

जून 14, तीसवां दिन
रात में आराम करने के बाद प्रेमसागर फिर निकल लिये भारकच्छ से। “भईया, वहां आश्रम बन रहा है और जगह ठीक से बन नहीं पाई है। टीना की छत है और गर्मी बहुत लगती है उसमें। लोगों ने तो बहुत सहायता की पर…” प्रेमसागर ने अपनी सफाई दी।
मैने उन्हें अनुरोधात्मक आदेश दिया कि कोई ऑटो ले कर आगे किसी अन्य जगह पंहुचें जहां व्यवस्था बेहतर हो और वहां कम से कम दो दिन रुक कर आराम करें। शरीर आराम मांगता है। उसे तुमने नहीं दिया तो बुखार ला कर जबरी आराम छीना। अब शरीर की इज्जत करना सीखो।
जिद्दी आदमी हैं प्रेमसागर। वे दांये बांये के अर्थहीन तर्क दे कर अपने मन की करते आये हैं, आज भी कर सकते थे। पर शायद खुद को भी लगा कि शरीर सही में आराम मांगता है। कुछ देर बाद वे मोतलसिर में थे। वहां नर्मदा किनारे एक आश्रम बन रहा है। सुविधायें अच्छी हैं। आज यहां रहे। कल भी रहेंगे।
मोतलसिर के आश्रम में शाम के समय प्रेमसागर ने नर्मदा उस पार के एक सरपंच जी से वीडियो कॉल करवाई। मोतलसिर रायसेन जिले में है। नर्मदा के दूसरी ओर नर्मदापुरम (होशंगाबाद) जिला पड़ता है। नर्मदापुरम के हरिपुर गांव के पूर्व सरपंच हैं हरनारायण सिंह। उनके बाल और दाढ़ी मूछें अहसाह दिलाती हैं किसी सन्यासी का। आवाज से भी वे सरल और मधुर लगते हैं। उन्होने बताया कि महंत जी ने साढ़े चार लाख में आश्रम के लिये जमीन खरीदी और आश्रम बनवा रहे हैं। करीब बाईस लाख खर्च आयेगा। कमरे, शौचालय आदि बन कर तैयार हैं। महंत जी ने बागवानी भी कुछ की है। परिसर पूरा बना नहीं है, पर सुंदर लगता है।

अब प्रेमसागर अगर कल रुकते हैं तो इस जगह के बारे में लिखने को और अवसर मिलेगा। पर उसकी सम्भावना रुपया में छ आना भर है।
नर्मदे हर! #नर्मदायात्रा #नर्मदापरिक्रमा #नर्मदाप्रेम
