प्रेमसागर नर्मदा किनारे चल रहे हैं और मेरा काम उनका यात्रा मार्ग निहारना हो गया है। नक्शे में देखता हूं, नर्मदा सीधे नहीं चल रहीं, घुमावदार बल खाती चलती हैं। यही नर्मदा का सौंदर्य है जिसका बखान वेगड़ सौंदर्य की नदी नर्मदा में करते हैं?
पुस्तक के प्रारम्भ में अमृतलाल वेगड़ जी कहते हैं – नर्मदा सौंदर्य की नदी है। यह नदी वनों, पहाड़ों और घाटियों से बहती है। मैदान इसके हिस्से में कम ही आया है। यह चलती है इतराती, बलखाती, वन प्रांतरों में लुकती छिपती, चट्टानों को तराशती, डग डग पर सौंदर्य की सृष्टि करती, पग पग पर सुषमा बिखेरती। (सौंदर्य की नदी नर्मदा, अमृतलाल वेगड़। पृष्ठ 1 अध्याय – जबलपुर से मंडला।)
इतराना, बलखाना क्या होता है? क्या वह सर्पिल (घुमावदार) गति होता है? जैसे नर्तकी सीधा कदमताल करते नहीं चलती, घूमते लचकते चलती है। पर क्या नर्मदा सीधे सपाट कम, बल खाती ज्यादा चलती हैं? क्या अन्य नदियों की तुलना में उनका बलखाना कहीं ज्यादा है?
नदी के इठलाने बलखाने के लिये एक साइंटिफिक पैरामीटर है – सिनुओसिटी इंडेक्स (Sinuosity Index)। यह निम्न प्रकार से परिभाषित होता है –
सिन्युओसिटी इंडेक्स = सर्पिल मार्ग की दूरी / दोनो छोर के बिंदुओं की सीधी दूरी
यह इंडेक्स जब 1.0 से 1.2 के मध्य होता है तब नदी लगभग सीधी मानी जाती है। अगर यह इंडेक्स 1.2 से 1.5 के बीच होता है तो नदी घुमावदार या मियेंडरिंग (Meandering) मानी जाती है। इस इंडेक्स के 1.5 से अधिक होने पर नदी अत्यधिक घुमावदार (Highly Meandering) कही जाती है।
प्रेमसागर की नर्मदा पदयात्रा और प्रयाग से वाराणसी के बीच (वर्चुअल) गंगा पदयात्रा की तुलना करने का मन हो आया। कौन नदी ज्यादा सर्पिल है, ज्यादा घुमावदार, ज्यादा मियेंडरिंग?
मैंने तुलना करने के लिये निम्न अंतिम बिंदु चुने गंगाजी और नर्मदा माई पर –

गंगा – प्रयाग त्रिवेणी संगम से अस्सी घाट वाराणसी।
नर्मदा – नर्मदापुरम से पहले नर्मदा-तवा नदी का संगम से सोकलपुर के पास नर्मदा-सक्कर नदी का संगम।
मैंने दोनो उदाहरणों के लिये गूगल मैप पर उनके सर्पिल पाथ को मैप किया और कुल दूरी निकाली –
| नदी | अध्ययन का खंड | सर्पिल मार्ग की लम्बाई किलोमीटर | सीधी लम्बाई किलोमीटर | सिनुओसिटी इंडेक्स |
| नर्मदा | नर्मदा-तवा नदी का संगम से नर्मदा-सक्कर नदी का संगम | 133.91 | 96.52 | 1.387 |
| गंगा | प्रयाग त्रिवेणी संगम से अस्सी घाट वाराणसी | 190.93 | 112.79 | 1.693 |

उक्त आंकड़ों से नर्मदा जी और गंगा जी की सिनुओसिटी क्रमश: 1.387 और 1.693 निकली। नर्मदा घुमावदार हैं पर गंगा अत्यधिक घुमावदार हैं।
नदियां पहाड़ों में लगभग सीधी रेखा में बहती हैं। ऊंचाई से नीचे आने में कूदती हैं – प्रपात बनाती हैं। गोमुख से हरिद्वर के बीच गंगा भी वह करती हैं और अमरकंटक से नीचे उतरने में नर्मदा भी। मैदान मिलने पर दोनो नदियां अपने वेग से धरती को काटती हैं और दूसरी ओर मिट्टी जमा करती हैं। इससे घुमावदार बहना होता है और बड़े मोड़ और गोखुर (Oxbow) झीलें बनती हैं।

गंगा जी हरिद्वार के बाद यह करती हैं और नर्मदा भी मैदान में उतरने पर यह करती हैं। फर्क यह है कि गंगा को बहुत विस्तृत गांगेय मैदान मिलता है सर्पिल घुमाव के लिये पर नर्मदा सतपुड़ा तथा विंध्य के बीच एक संकरी रिफ्ट घाटी में ही थोड़ा बहुत घूम पाती हैं। नर्मदा जी को इठलाने बलखाने को ज्यादा जगह विंध्य और सतपुड़ा से घिरा रंगमंच प्रदान नहीं करता।
नर्मदा एक अपेक्षाकृत सीधी बहने वाली नदी है। इसी कारण से, यह पश्चिम की ओर बहती हुई भी अपने मुहाने पर कोई बड़ा डेल्टा नहीं बनाती, बल्कि एक ज्वार-नद-मुख (estuary) बनाती है, क्योंकि अवसादों को जमा करने के लिए पर्याप्त मोड़ और धीमा बहाव नहीं मिलता। इनके उलट गंगा का एक विशाल गंगासागर-सुंदरवन का डेल्टा है।
भारत की सभी बड़ी नदियों में (जिनमें सिंधु भी शामिल है); नर्मदा सबसे सीधी बहती नदी है!
नर्मदा जी के सौंदर्य को मैं कम नहीं कर देखना चाहता। वह तो अप्रतिम है। पर नदी का सर्पिल चलना, वह मैंने गंगाजी में बहुत देखा है। वह भी मुझे मोहित करता है। वेगड़ जी की तरह गंगाजी की कोई सौंदर्य यात्रा करने वाला नहीं रहा शायद। पर धीर गम्भीर गंगा जी का सौंदर्य भी कम कर नहीं आंकना चाहिये। गंगा जी के किनारे लोग उतने गंगाभक्त नहीं हैं, तो क्या?!
यह आम धारणा कि नर्मदा चिर युवा, इठलाती, बल खाने वाली हैं और गंगा शांत, कोमल, करुणामयी हैं; एक जन सामान्य में (और विद्वानों में भी) मिथक ही है। नदी की चाल को निहारना केवल धारणा नहीं, आंकड़ों पर ठहराव दे कर करना चाहिए।

मैं गंगा किनारे बहुधा बैठता हूं। इतनी धीरे बहने वाली सीधी सपाट नदी कैसे गोखुर झील का निर्माण कर सकती होगी? पर मेरे पुरातत्ववेत्ता मित्र रविशंकर जी का कहना है कि गंगा हमेशा ऐसी नहीं थीं। वारह पुराण और कूर्म पुराण में उनका नाम भद्रा या महाभद्रा आता है – अर्थात विशाल जलराशि के साथ तेज बहने वाली नदी। उसके कटाव से प्रयाग और वाराणसी के बीच (और उसके पहले या बाद में भी) ऑक्स-बो आकृति की झीलें बनीं।
यह सम्भव है। रविशंकर जी ने कहा कि पुरुषोत्तम वामन काणे जी के धर्मशास्त्र का इतिहास में भी भद्रा नाम का जिक्र है गंगा के लिये। बहुत कुछ वैसे जैसे सरस्वती नदी के लिये घग्घर या घर्घर नाद करने वाली नदी का योग बताया जाता है। … वाराह पुराण का सन्दर्भ तलाश पाया गूगल का जैमिनी। बाकी दोनो सोर्स नहीं जांच सका। कभी रविशंकर जी से मिलना होगा तो इसपर चर्चा होगी। फिलहाल तो मैं गंगा और नर्मदा के इठलाने बलखाने को ले कर मगन हूं! नर्मदे हर! जय गंगा माई!
किसी ने कहा वो इठलाती है,
नदी है, नर्तकी कहाती है।
बह ज्यों चली बीच जंगल नदी,
हर इक मोड़ पर मुस्कुराती है।
कहीं नागिन और कहीं हिरनी सी,
चाल में, कहाँ कैसा बल खिलाती है?
वो नर्मदा है या गंगा माई —
ये सच्चाई किस किस को सताती है?

बहुत सुन्दर और अनूठा अध्ययन । संभवतः इससे पूर्व किसी ने इस बिंदु पर नहीं सोचा होगा ,जितना मैने इन दिव्य जल धाराओं पर पढ़ा कम से कम उसमें तो नहीं दिखा । हालांकि नदियों के संबंध में बहुत ज्यादा लिखा भी नहीं गया है तो यह सोचना भी ज्यादती ही है कि कोई इतने वैज्ञानिक रूप से किसी उपमा का विश्लेषण करे । जिस तरह मां नर्मदा ने प्रेम बाबू को बुलाया है,धीरे धीरे मां गंगा आपको पुकार रही है ऐसा लगता है । किसी वाहन से भी यह यात्रा संभव हो सकती है। ऐसा होता है तो निश्चित ही उसका दस्तावेजीकरण भी अदभुत ही होगा ।
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देखते हैं कितनी गहन मनयात्रा हो पाती है मां नर्मदा की. अभी शायद दो तीन महीने चले… 😊
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