सोकलपुर से हीरापुर – कच्चा रास्ता, नदी और वन

कल (18 जून 25) प्रेमसागर सोकलपुर से हीरापुर पंहुचे। कुल 10 किलोमीटर की पदयात्रा। विनोद पाठक जी का एक रात रुकने का निमंत्रण न रहा होता तो प्रेम बाबाजी ज्यादा ही चलते।

शिवम कृष्ण बुधलिया जी

दो किलोमीटर चले होंगे तभी मिले सड़रई गांव में शिवम कृष्ण बुधौलिया जी। वे अपने घर के सामने इंतजार कर रहे थे। अपना परिचय दे, उन्हें घर ले गये और चायपान कराया। बुधलिया जी अशोक शुक्ल जी के मित्र सुरेंद्र शास्त्री जी के सम्बंधी हैं। एक चित्र उनकी बेटी के साथ खिंचवाया प्रेमसागर ने।

बुधलिया जी की बिटिया

सिंदूरी नदी पार करने का उद्यम

सोकलपुर से आगे रास्ता कोई सड़क नहीं थी, परिक्रमा वालों के लिये बनाया कच्चा-पक्का परिक्रमा पथ भी नहीं था। वह नर्मदा किनारे की ऊंची नीची धरती पर पगडंडी थी, जो कहीं थी और कहीं छिप जा रही थी। आगे एक नदी थी – बकौल प्रेमसागर सिंदूरी, पर नक्शे में सिद्धावती।

छोटी, पतली सी नदी पर पानी था उसमें। मुहाने पर तो पाट चौड़ा और दलदल वाला था, वहां से पार करना कठिन था। यूं लगता था मानो पदयात्री के पैर पकड़ लेने वाला हो – कहां जाते तो बंधु, यहीं रह जाओ!

लोगों ने सलाह दी कोई डोंगी किराये पर लें। डोंगी आसपास थी भी नहीं, किराया भी पांच सौ रुपये बताया गया। एक छोटी सी नदी के लिये पांच सौ? प्रेमसागर ने अपना पिट्ठू सिर पर रख और धोती कमर पर बांध पार करने की सोची।

उसी समय बकरी चराते दो बच्चों ने उनके सामने प्रस्ताव रखा। वे दस रुपया ले कर एक ऐसी जगह से पार करायेंगे जहां कमर से थोड़ा ऊपर पानी होगा। प्रेमसागर सहर्ष मान गये। “एक डेढ़ किलोमीटर सिंदूरी के किनारे चले भईया। फिर एक लड़के ने मेरा पिट्ठू सिर पर लिया और दूसरे ने मेरी लाठी ले और मेरी उंगली पकड़ कर धीरे धीरे पार कराई नदी। नदी में दलदल बहुत थी पर वे गड़रिया बच्चे अच्छे से जानते थे नदी को कि कहां दलदल कम है।”

दलदल के बीच जब दो बच्चों की उँगलियाँ मिलती हैं, तो भरोसे की नाव अपने आप बन जाती है। नदी पार हो ही जाती है।

“बहुत खराब रास्ता था भईया!” मानो, रास्ता पदयात्री के पैरों की मजबूती और इरादों का परीक्षण लेने के लिये नर्मदा माई ने रचा हो!

प्रेमसागर ने इस बार गड़रिया बच्चों के नाम भी नोट कर लिये थे – आर्यन और निमित्त। नये जमाने के नाम। प्रेमसागर ने मुझे कल्पना के अश्व दौड़ाने का इस बार मौका नहीं दिया।

चरवाहा – बालक : आर्यन और निमित्त। इस यात्रा में कुछ भी छोटा नहीं — न सिंदूरी नदी, न ये बालक।

टिमरावन के हनुमान दद्दा जी

आगे टिमरावन पड़ा। नाम से ही लगता है कभी वन रहा होगा। आज भी कुछ वैसा लगता है। वहां हनुमान जी के मंदिर पर एक दम्पति पूजा कर प्रेमसागर को रोक कर प्रसाद दिये। एक महिला, पुरुष और लड़की थे। लड़की ने कहा कि ‘दादाजी (हनुमान जी) की पूजा कर आपको आते देखा हमने। लगा कि प्रसाद देने के लिये आप ही सही आदमी हैं’। प्रसाद में बाटी, दाल और हलवा था। साथ में बैंगन का भरता था। पर प्रेमसागर ने कहा कि वे यात्रा में बैंगन की सब्जी, उड़द की दाल और उसना चावल का सेवन नहीं करते।

उन लोगों, आशीष सक्सेना दंपति ने 101/-रुपये की दक्षिणा भी दी! बच्चों को प्रेमसागर ने दस रुपये दिये और हनुमान जी ने उसका दस गुना कर उन्हें लौटा दिया। जय बजरंग बली!

पदयात्रा में प्रसाद वही है, जो बिना माँगे मिले और दिल भर दे — बाटी हो या भरोसा।

टिमरावन में सक्सेना परिवार के साथ

पदयात्रा का पुण्य का अर्थशास्त्र समझ आया मुझे। आप जितना श्रम करेंगे, जितना चलेंगे, जितना स्मरण करेंगे ईश्वर का परिक्रमा के दौरान; नर्मदा माई किसी न किसी निमित्त आपको उसका दस गुणा देंगी। जिसे जो चाहिये, वह ले जायेगा यहां से।

टिमरावन से हीरापुरा पंहुचे प्रेमसागर। वहां विनोद पाठक जी का निमंत्रण है एक दिन रुकने के लिये। अशोक शुक्ल जी अटकल लगाते हैं कि यह हीरापुर ही नर्मदा पुराण में वर्णित हरिपुर है। हो भी सकता है। वहां प्रमोद पाठक जी का घर और राजराजेश्वरी मंदिर तो मुझे अतीत में ले गये – जो गौरवशाली भी है और भव्य भी।

हीरापुरा की चर्चा अगली पोस्ट में।

नर्मदे हर! #नर्मदायात्रा #नर्मदापरिक्रमा #नर्मदाप्रेम


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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