ध्रुव दिघर्रा का आतिथ्य और एक सरल जीवन की चाह
22 जून को प्रेमसागर ध्रुव दिघर्रा जी के साथ रहे।
वे 21 की शाम – या रात ढलने पर बेलखेड़ा पंहुचे जहां हाईवे किनारे के रमाकांत नवेरिया जी और पास के गांव मातनपुर के ध्रुव दिघर्रा जी से मिलना हुआ। ये दोनो अशोक शुक्ल जी के सम्बंधी हैं। रमाकांत उनके लड़के के साढ़ू तो ध्रुव अशोक जी के साढ़ू! रायसेन, नरसिंहपुर और जबलपुर के इस नर्मदेय क्षेत्र में अशोक शुक्ल प्रेमसागर की खूब सहायता कर रहे हैं और बाबाजी की पदयात्रा ही सहायता आर्धारित है!

बाबाजी रुके रमाकांत नवेरिया जी के यहां और एक दिन व्यतीत किया ध्रुव जी के साथ।
22 को सवेरे वे नर्मदा तट पर थे। उसके बाद मंदिर देखे। गांव में आ कर बाटी का इंतजाम हुआ। शाम के समय किसी शक्तिपीठ के दर्शन हुये।
नर्मदा परिक्रमा करते एक कन्नडिगा सज्जन मातनपुर आये थे साल भर पहले। नर्मदा ने उन्हें यहीं रोक लिया। वे साल भर से अखंड मानस पाठ कर रहे हैं। गांव वाले अपना अपना सहयोग करते हैं। मुख्य सहयोग शायद ध्रुव कुमार दिघर्रा जी का ही है। कन्नडिगा महराज का नाम पूछा तो प्रेमसागर ने बताया – “ओ बोले भईया, आप समझ लो, सीताराम नाम है।”
कर्नाटक के सीताराम जी, बांदा के बाबा तुलसीदास और उनकी रामायण, उनके आराध्य अयोध्या के राजा रामचंद्र और मानस का अखंड पाठ नर्मदा किनारे मातनपुर में। धर्म इस देश की अंतरबाह्य नसों में ऐसा प्रवाहित है कि उसकी पकड़ कभी ढीली न पड़ेगी!


ध्रुव जी के पिता का चित्र मिला मुझे। ध्रुव बताते हैं कि वे 101 साल से ऊपर हैं। अब थोड़ी याददाश्त गड्डमड्ड होने लगी है, वर्ना आज भी अखबार और पोथी-पंचांग पढ़ते हैं, बिना किसी चश्मे के। विद्वान व्यक्ति हैं। आसपास में उनके कहे का वजन है।
उनका चित्र देख मुझे अपने पिताजी की याद हो आती है। वे होते तो इक्यानबे के होते। वे नौकरी में जगह जगह रहे, उनकी बजाय नर्मदा किनारे के द्वारिका प्रसाद जी की दिनचर्या ज्यादा व्यवस्थित है। सैंकड़ा पार करने के बाद भी वे 70-85 के बीच लगते हैं। मैं सत्तर का होने जा रहा हूं। अब भी अपनी आदतें सुधार लूं तो शायद द्वारिकाप्रसाद जी का अनुसरण कर सकूं। सवाल केवल शतायु होने का नहीं है, सवाल उन सौ सालों को सार्थक तरीके से, नीरोग जीने का भी है। सप्लीमेंट्स और दवाओं के बल पर जीवन भी क्या जीवन?!
ध्रुव बताते हैं कि उनके पिताजी सवेरे चार बजे बिस्तर त्याग करते हैं। शौच के बाद गांव का एक दो मील का चक्कर लगाया करते थे साल भर पहले तक। दूध लेते हैं सुबह शाम। सवेरे आधा सेर दूध लेते हैं और फिर नौ बजे घर का बना नाश्ता। “कछू भी, जो घर में बना हो। बाहर का बना नहीं खाते।” इग्यारह बजे स्नान कर डेढ़ घंटा भजन-पूजन में व्यतीत होता है। शाम के समय कुछ फल-फूल। शाम पांच बजे के बाद भोजन नहीं करते। शाम छ बजे से माला जप प्रारम्भ करते हैं। डेढ़ घण्टा जप में व्यतीत होता है। रात आठ बजे दूध लेने के बाद सोने चले जाते हैं।
भोजन में घी का इस्तेमाल होता है। शुद्ध घी।

भोजन और शयन में सरकेडियन रिदम का पालन तो जाने अनजाने पंडित द्वारिका प्रसाद जी करते ही हैं। उसके अलावा शुद्ध नर्मदेय हवा पानी और तनाव रहित जीवन उनकी दीर्घायु का राज लगता है।
मैं पंडित द्वारिका प्रसाद जी के चित्र को ध्यान से टकटकी लगाये देखता हूं। वे कुछ बोलते से लगते हैं – “बेटा, समय को थाम कर नहीं रखा जा सकता। लेकिन उसे गवांया भी न जाये। अपने को जोड़ो, कुटुम्ब को थामे रखो, और मन का दीपक बुझने न दो।
लिखते रहो बेटा, पर लिखने से पहले थोड़ा चुप भी रहा करो। जिसे तुम नया कहते हो, वह बहुत पुराना भी होता है – बहुत उहापोह में मत पड़ा करो। और हाँ, थक जाओ तो विश्राम करने में संकोच न किया करो। जीवन की गति सरल रखो – उसे जीओ, भागो मत; थको तो बैठो, पर रुकने से पहले चलने की दिशा देख लो।”
मन होता है कि पण्डित द्वारिकाप्रसाद जी की तरह एक सादी बंडी सिलवा लूं — बाहरी वस्त्र से भीतर की सादगी का अभ्यास शुरू हो। उनके जैसा बनने के पहले उनके जैसा लगने लगूं।
दोपहर के भोजन के लिये ध्रुव जी ने बाटी बनवाई नर्मदा तट पर। हीरालाल पटेल जी बाटी बना रहे थे। बोले – “आज दादाजी के मंदिर पर बाटी-भरता का भोग लगाओ महराज!” दादाजी यहां हनुमान जी को सम्बोधित किया जाता है।


इतनी सुंदर, सुघड़ बाटी के चित्र देख मेरे मन में पानी आने लगा। यह आयोजन तो बाबाजी जैसे अतिथि के लिये था, जो पदयात्रा की तपस्या पर हैं। मेरे जैसा तुच्छ सांसारिक पंहुचता तो उसके लिये कैसा आतिथ्य होता ध्रुव जी का? मेरे लिये वे नर्मदा तट पर जाते या एक साइकिल थमा देते मुझे – पांडे जी, सीधे चले जाइयेगा तो झलोन घाट पड़ेगा। मेरा नाम बता दीजियेगा…
ध्रुव जी का व्यक्तित्व आकर्षक है। एक टीशर्ट में भी जंच रहे हैं। उनके सिर पर बाल कम हैं, पर व्यक्तित्व पूरा है। उन्हें देखकर लगता है कि यदि समय के साथ मेरे सिर के बाल भी विदा लें, तो भी मेरे जीवन में चमक बनी रह सकती है — बशर्ते मैं चेहरे की कठोरता छोड़, उनके जैसी सौम्यता और सरलता ला सकूं।
ध्रुव दिघर्रा के बहाने मैं नर्मदा के घाटों से होकर मन की गहराई में सहजता से चला जाता हूं।

एक दिन चलने से विराम मिला प्रेमसागर को। उनकी बैटरी जो लगभग डिस्चार्ज हो रही थी, फिर से पूरी चार्ज हो गई। अब फिर निकल लेंगे नर्मदा परिक्रमा पर। भेड़ाघाट, जबलपुर की ओर!
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