यह श्रीमती रीता पाण्डेय की पारिवारिक पोस्ट है। मेरा योगदान बतौर टाइपिस्ट है। एक घरेलू महिला अपने परिवेश को कैसे देखती समझती है – यह रीता जी के नजरिये से पता चलेगा। मैं बनारस में अपनी मां के साथ रजाई में पैर डाले बैठी बात कर रही थी। अचानक भड़भड़ाते हुये घर में घुसी चन्दाContinue reading “शादी के रिश्ते – क्या चाहते हैं लोग?”
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दिहाड़ी मजदूर
सवेरे साढ़े नौ बजे दफ्तर के लिये निकलता हूं तो फाफामऊ जाने वाली रेल लाइन के पास अण्डरब्रिज के समीप सौ-डेढ़ सौ दिहाड़ी मजदूर इंतजार करते दीखते हैं। यह दृष्य बहुत से शहरों में लेबर चौराहों या मुख्य सड़क के आसपास दीखता है। राज-मिस्त्री, बिजली का काम जानने वाले, घर की पुताई करने वाले याContinue reading “दिहाड़ी मजदूर”
अलसाई धूप में गेंहू बीनना
कुछ मूलभूत काम करने का अभ्यास छूट गया है। रोटी बेलना नहीं आता – या आता था; अब नहीं आता। धूमिल की कविता भर में पढ़ा है – “ एक आदमी है जो रोटी बेलता है “ । खाना आता है, बेलना नहीं आता। जरूरत पड़े तो आ जायेगा। पर ईश्वर करें कि रोटी सेContinue reading “अलसाई धूप में गेंहू बीनना”
