सुटकहवा (पतला दुबला) तो बाकी दो हैवीवेट वालों को सम्भालने में ही हैरान परेशान दिखता है। है वो पढ़ा लिखा। चण्ट भी है। दोनो बाकी लोगों के दबाव में नहीं दिखता। पर उसका रोल जैसा है, उसके हिसाब से उसे बैलेंस बनाना पड़ता है।
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
सुटकहवा (पतला दुबला) तो बाकी दो हैवीवेट वालों को सम्भालने में ही हैरान परेशान दिखता है। है वो पढ़ा लिखा। चण्ट भी है। दोनो बाकी लोगों के दबाव में नहीं दिखता। पर उसका रोल जैसा है, उसके हिसाब से उसे बैलेंस बनाना पड़ता है।