’अनपढ़’ रीता पाण्डेय


और रीता ने अगला टाइपिंग असाइनमेण्ट मुझे बहुत जल्दी दे दिया। सोमवार को दोपहर दफ्तर में मुझे फोन कर बताया कि एक नयी पोस्ट लिख दी है। घर आ कर टाइप कर देना। अगले दिन मैने टाइप किया। फिर बुधवार पंकज अवधिया जी का दिन था। लिहाजा आज वह पारिवारिक पोस्ट प्रस्तुत कर रहा हूं। इसमें पिछले दिनों चले विवाद पर रीता का मत भी स्पष्ट होता है।


कुछ दिन पहले मेरे पति की एक लठैती पोस्ट ब्लॉग पर आयी। बड़ी हांवहांव मची। सो तो मचनी ही थी – जब लठ्ठ भांजेंगे तो सामने वालों को जोश आ ही जायेगा। इस तरह की लठ्ठमलठ्ठ में कई बार निर्दोष जन भी एक आध लाठी पा ही जाते हैं। सो मुझे भी लपेटा गया। कुछ – कुछ कहा गया। मैने पोस्ट को छपने से पहले भी पढ़ा था और बाद में टिप्पणियां भी कई बार पढ़ी। मैने वह सब सहज ढंग से लिया। बल्कि मजा आया। कई बार मैं सोचती हूं कि औरतें इतनी जल्दी भिन्ना क्यों जाती हैं। जरा सी बात में ’नारी मुक्ति संगठन’ खड़ा हो जाता है। जिन्दाबाद मुर्दाबाद शुरू हो जाता है। खैर, पोस्ट ज्ञान की थी तो मुझ पर कुछ छींटे पड़ने ही थे। आखिर मैं उनकी “बैटर हाफ” जो हूं।

ऐसा हमारे साथ कई बार हुआ है। पर एक वाकया मैं जरूर बताना चाहूंगी। बात काफी पुरानी है। मेरे भाई की शादी और उसके दस दिन बाद ज्ञान की बहन की शादी थी। सब निपटा कर हम रतलाम पंहुचे। पस्त हाल। अण्टी एक दम ढीली थी। पांचवे वेतन आयोग का दूर दूर तक पता नहीं था – निकट भविष्य में माली हालत सुधरने की कोई सम्भावना भी न थी। ऐसे में चक्रवात की तरह बम्बई से खबर आयी कि ज्ञान को तबादले पर बम्बई बुलाया जा रहा था। कुछ साख रही होगी कि तबादले के बारे में इनसे पूंछा जा रहा था। अन्यथा तबादला कर देते तो जाना ही पड़ता। इन्होने पुराना जुमला उछाला – “अपनी पत्नी से पूंछ कर बताऊंगा”। मुझे भी मामला गम्भीर लगा। बम्बई के मित्रों से बात की। बच्चों का एडमीशन, किताब कापी, दूध सब्जी सब के खर्चे का आकलन कर लगा कि यह तो तीसरी शादी जितना खर्च होगा! और मैने निर्णय कर लिया कि बम्बई के अलावा और कोई जगह मंजूर है। ज्ञान ने अपने तरीके से अपने वरिष्ठ अधिकारियों को समझाया। एक वरिष्ठ अधिकारी ने गम्भीर मुद्रा में कहा – “लगता है कि इसकी पत्नी पढ़ीलिखी नहीं है। इस लिये बम्बई आने में कतराती है। आ जाती तो कुछ तौर तरीका सीख लेती“!

जब मुझे पता चला तो मैने अपना सिर पीटा। कैसा लेबल माथे पर चिपक गया। कुछ देर सोचती रही। फिर हंसी आ गयी। बात आईगई हो गई।

कुछ साल बाद पश्चिमी क्षेत्र से फिर दबाव बना। इस बार बचना कठिन था। रतलाम में रहते हुये आठ साल हो गये थे। अत: ज्ञान ने बम्बई जा कार पोस्ट ज्वाइन कर ली। अनपढ़ का लेबल हटाने को मैने भी कमर कस ली। इनके बम्बई जाने के एक हफ्ते बाद मैने पूछा – कैसा लग रहा है? बोले – “बहुत अच्छा! चर्चगेट पर शानदार चेम्बर है। चर्चगेट रेस्ट हाउस में दो कमरे की ट्रांजिट रिहायश है। चपरासी, चार इंस्पेक्टर उपलब्ध हैं। हफ्ते भर में तीन बेडरूम का बधवार पार्क, कोलाबा में फ्लैट अलाट होने जा रहा है। और क्या चाहिये बम्बई में”।

लेकिन गोविन्द को कुछ और ही मंजूर होता है। डेढ़ महीने में ही ज्ञान को कोटा, राजस्थान भेज दिया गया; यह कह कर कि आपकी वहां जरूरत है। कोलाबा के फ्लैट की चाभी लौटा दी गयी। और मैं अनपढ़ की अनपढ़ रह गयी! कोई मेट्रो सिटी न देख पायी। हां, अभी कुछ दिन पहले तीन दिन को कोलकाता जरूर गयी। वहां जाते समय लगा कि कामरेडों का भद्र शहर है। कमसे कम शहरियत का प्राइमरी क्रैश कोर्स तो हो ही जायेगा। पर वहां फूफाजी और बुआ (शिव कुमार मिश्र के पेरेण्ट्स) और शिवपामेला के साथ ही सारा समय सुखद स्वप्न सा बीत गया।

«← फूफाजी बहुत आकर्षक व्यक्तित्व हैं – मोहक वक्ता, बुद्धिमान और नवीनपुरातन का सही मेल है उनमें। शिव तो हैं ही मस्त जीव। उनकी पत्नी से तो मेरी बहुत जोड़ी जमी। वहां मेट्रो अनुभव की जगह पारिवारिक अनुभव अधिक रहा। फिर भी महानगर के दर्शन तो कर लिये। पढ़ाई में प्राइमरी तो कर लिये।

अगर एक दो और महानगर देख लें तो आठवींदसवीं पास का लेबल तो मिल ही जायेगा। पर ग्रेज्युयेशन तो शायद बम्बई जाने पर ही पूरा हो। अगर नीरज भैया अपने खपोली वाले घर में एकआध महीने टिका लें या यूनुस भाई मेहरबानी करें तो मैं भी “ग्रेज्युयेशन की डिग्री” हासिल कर गर्दन तान कर ब्लैक फिल्म की रानी मुखर्जी की तरह कह सकती हूं कि “जो काम आप लोगों ने 20 वर्ष की उम्र में किया, वह मैने अढ़तालीस वर्ष की उम्र में किया; पर किया तो!”

है न डॉयलाग – तालियां?!

रीता पाण्डेय


कल की पोस्ट पर टिप्पणियों में पाठक पंकज अवधिया जी का ई-मेल पता पूछ रहे थे। पता उनके ब्लॉगर प्रोफाइल पर उपलब्ध है। मेरा ई मेल पता तो इस ब्लॉग पर दांयी ओर “मेरा झरोंखा” में है।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

24 thoughts on “’अनपढ़’ रीता पाण्डेय

  1. आप ऐसे ही पोस्‍टें लिखती रहें, ग्रेजुएशन की डिग्री तो पाठक दे ही रहे हैं, मसि कागद छुवो नहीं कलम गहयो नहीं हाथ (हालांकि आपने लिखकर पोस्‍ट बनाया एवं पोस्‍ट में लगा फोटो कहता है कि आप स्‍पीच भी देती हैं)की तरह हमें ज्ञान जी के पारिवारिक पोस्‍ट का सदैव इंतजार रहेगा । और हां हम लोंगों को आर्शिवाद जरूर देते रहियेगा ताकि यहां हम बने रहें और आप दोनों से खुद व होममिनिस्‍ट्री सीख लेते रहें ।

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  2. बाप रे ! दूसरी पोस्ट में ही इतने निमंत्रण . पंचवर्षीय योजना में तो क्या पूरे होंगे,कोई रोलिंग प्लान बनाना पड़ेगा .मानसिक हलचल वाले शीर्षकधारी को अपनी दूसरी पोस्ट पर कितनी टिप्पणी और कितने निमंत्रण मिले थे ? नहीं-नहीं,पुरुषवादी सवाल नहीं है. ऐवैइं जीके दुरुस्त करने के लिए सामान्य-सी जिज्ञासा उठी थी मन में .

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  3. सबसे पहले तो हमारा सादर प्रणाम स्वीकारा जाए। बहुत सही पोस्ट। जबरदस्त।अब एक सुझाव भी टिका लिया जाए, ये स्टैनोग्राफ़र महोदय को बिजी रखियेगा, अगली पोस्ट का हम सभी को इंतजार रहेगा। (यदि स्टैनोग्राफ़र अड़ंगे लगाए, तो हम देवरों को खबर कर दीजिएगा, घर से आकर मैटर ले जाएंगे और छाप देंगे।)

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  4. “मैने वह सब सहज ढंग से लिया। बल्कि मजा आया। कई बार मैं सोचती हूं कि औरतें इतनी जल्दी भिन्ना क्यों जाती हैं। जरा सी बात में �नारी मुक्ति संगठन� खड़ा हो जाता है। जिन्दाबाद मुर्दाबाद शुरू हो जाता है। खैर, पोस्ट ज्ञान की थी तो मुझ पर कुछ छींटे पड़ने ही थे। आखिर मैं उनकी �बैटर हाफ� जो हूं।”बहुत खूब. सही जवाब दिया आपने और उचित समय पर.इन लोगों (भिन्नाये हुए) की हर जगह नाक घुसेड़ने की जो आदत है उससे ये फ़िर भी बाज नही आयेंगे.लेकिन आप अपने जवाब देना जरुर चालू रखियेगा.बहुत ही अच्छी पोस्ट है. बधाई.

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  5. छांदस पोस्ट का आनन्द लिया . हम तो जन्मे देहात में और पढे-लिखे छोटे-बड़े कस्बों में,पर अब पेट के चक्कर में तीन राज्यों की राजधानी में रह लिए . शहराती डिग्री नहीं मिलनी थी सो नहीं मिली . सूरदास की काली कामली चढै न दूजो रंग की तरह .रही बात आपको डिग्रीधारी मानने की सो हम नहीं मानेंगे . इसके पीछे हमारी शुद्ध ईर्ष्या है . हमारी घर से,अरे साब हमारी बेटर हाफ(अलबत्ता हाफ मैं हूं,वे पूरी हैं) बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में एम.कॉम. हैं और बाद में हमरे कुसंग में नब्बे के दशक के शुरुआती वर्षों में हिंदी में एम.ए. भी कर लिया (अब ज्ञान जी कहेंगे यह क्या किया,प्रच्छन्न संभावनाओं को नष्ट कर दिया). विनोदकुमार शुक्ल का उपन्यास ‘दीवार में खिडकी रहती थी’ हमने उनके मशविरे पर दुबारा पढा और नई सोच के साथ पढा . अभी-अभी वेगड़ जी की दो किताबें पढकर मुग्ध होती रहीं . पर विभिन्न कारणों से नौकरी नहीं की, सो जनता उन्हें पढा-लिखा नहीं मानती . इसलिए हम आपको डिग्रीधारी नहीं मानेंगे . हिंदुस्तान में ऐसे ही होता है . बहुत खतरा ले के टिप्पणी कर रहे हैं, सो हमरी परेशानी समझिएगा . इधर पोस्ट लिखने वालों से टिप्पणी करने वालों पर खतरा बढा है . पर जहां खतरा वाली जगह होगी — विवाद होगा — हम आपको वहीं आसै-पास मंडराते मिलेंगे . हमरी कुंडली में लिखा है(रैशनलिस्ट उर्फ़ तर्कवादी उर्फ़ बुद्धिवादी उर्फ़ युक्तिवादी भाई-बहनों से अग्रिम क्षमा-याचना सहित).पर आप लिखती रहिए . स्टेनोग्राफर आपको मिला हुआ है ही — वह भी खूब पढा-लिखा और अनुभवी.नोट : हमरी इस टिप्पणी का कोई इतिहास नहीं है,सो कोई भविष्य भी नहीं होगा ऐसा मानता हूं .

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  6. भाभी जी जब आप इतनी जगह पढाई करेंगी तो थक जायेंगी तो गोवा घूमने आ जाइयेगा।

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  7. मुझे भी लगता है अब मुंबई जाना ही होगा! सुन रहे हो मुंबई वालों, मुझे ग्रेजुएट बनाने की जिम्मेदारी आपकी।@भाभीजीपहली ही पोस्ट में कमाल कर दिया आपने!बधाई।

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  8. पैले तो भौजी को हमरा साप्ताहिक प्रणाम।ह्म्म, तो अमेरिका जा रही हैं व्हाया मुंबई, क्यों न बीच में छत्तीसगढ़ में रुका जाए, क्या ख्याल है। इधर पंकज अवधिया जी भी हैं, संजीव जी हैं और हम तो खैर हैं ही।कहां लगाए आप भी यह ग्रेजुएशन, हम छत्तीसगढ़ वाले ही आपसे कुछ सीख लेंगे इसी बहाने।

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  9. कई बार मैं सोचती हूं कि औरतें इतनी जल्दी भिन्ना क्यों जाती हैं। जरा सी बात में ’नारी मुक्ति संगठन’ खड़ा हो जाता है। जिन्दाबाद मुर्दाबाद शुरू हो जाता है।शमा करे रीता जी बढ़ी गलती हो गयी उन औरतो से जिन्होंने आप के पति की पोस्ट पर सूक्ष्म को देखा और टिप्पणी की । आप की मानसिक स्वंत्रता !!! का प्रमाण है ये दो लाइने जो आप ने ’नारी मुक्ति संगठन’ के विषय मे कही ॥ आप खुश है जैसी आप है , आप संतुष्ट है जैसी आप है इस से अच्छी अवस्था कोई कोई हो ही नहीं सकती । पर कभी समय पाये पति का लिखा पढ़ने से और उन्हे बताने से की उन्हे क्या करना चाहेयाए तो अवश्य ये बताये की अगर पति की गलती होती है या वह अपनी पत्नी का एक सामाजिक जेगाह मजाक उडाता है और उसकी प्रातारना होती है तो उसकी पत्नी उसके साथ तुरंत पत्नी प्रेम दीखते हुए उसके बचाव मे आ जाती है परन्तु पति ऐसा किसी भिन्नाती महिला की पोस्ट के बाद ही करता है । क्यो ??

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