कल की पोस्ट पर फुरसतिया ने देर रात टिप्पणी ठेली है। वह भी ई-मेल से। लिखा है –
बाकी ज्ञानजी आप बहुत गुरू चीज हैं। लोग समझ रहे हैं कि आप हमारी तारीफ़
कर रहे हैं लेकिन सच यह है कि आप हमको ब्लागर बना रहे हैं। आपने लिखा-
“इस सज्जन की ब्रिलियेन्स (आप उसे जितना भी आंकें)” मतलब कोई पक्का नहीं
है अगला कित्ते किलो या कित्ते मीटर ब्रिलियेंट है।
अब भैया, यह तो पोस्ट चिमटी से उधेड़ने जैसी चीज हो गयी। सुकुल अगले पैरा का जिक्र नहीं करते, जिसमें मैने उन्हें नये ब्लॉगर्स के कलेक्टिव सपोर्ट सिस्टम का केन्द्र बताया है। यह रहा वह अंश –
दूसरे, व्यक्तिगत और छोटे समूहों में जो बढ़िया काम/तालमेल देखने को मिलता था, वह अब उतना नहीं मिलता। अनूप जैसे लोग उस कलेक्टिव सपोर्ट सिस्टम के न्यूक्लियस (नाभिक) हुआ करते हैं। उन जैसे लोगों की कमी जरूर है…
लो जी; बोल्ड फॉण्ट में लिखे देते हैं (और मैं यूं ही नहीं लिख रहा, यकीन भी करता हूं) –
फुरसतिया हिन्दी ब्लॉगरी के ब्रिलियेण्टेस्ट स्टार हैं!
अब तो चलेगा? लो, एक स्माइली भी लगा देते हैं! ![]()

वाह कया अंदाज हे :)
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अनीता कुमार जी की मेल से मिली टिप्पणी – ” अनूप जी का जवाब मजेदार रहा और बिल्कुल फ़ुरसतिया स्टाइल में। चिठेरे और चिठेरी का हमें भी इंतजार है। वैसे ज्ञान जी जब मौज लेना सीखा ही है तो इतनी जल्दी कैसे हथियार डाल दिए, जवाब नंबर दो भी वैसे ही मौज लेते हुए देना था, अभी तो मैच शुरु हुआ था, हम पॉप कॉर्न वगैरह ले कर बैठे ही थे मैच देखने कि आप ने हथियार डाल दिए, नॉट फ़ेअर्…:) अपने नये नये सीखे गुर का अपने अंतरंग मित्र पर आजमाने में कोई खतरा नहीं , सो शुरू हो जाइए, हम ताली बजाने को तैयार बैठे हैं”…:)
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भईया हम समझे आप तकलीफ में हैं और दो चार दिनों तक पोस्ट नहीं लिखेंगे लेकिन अब जाना की ब्लॉग्गिंग एक कुटेव है, व्यसन है लत है…इस से छूटना आसन नहीं…अब देखिये ना इतनी तकलीफ में भी आपने एक ई मेल को ही पोस्ट बना दिया…आप सब ब्लोग्गेर्स के प्रेरणा स्त्रोत्र है.नीरज
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बहुत अच्छी पोस्ट , मज़ा आगया…आपका अंदाज़ गज़ब का है…thanks
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फ़ोन पर अनूप शुक्लाजी से बात करने का अवसर हमें भी अवश्य मिलेगा, यही मेरी कामना है।लेकिन फ़ोन पर तो केवल आवाज़ ही सुन सकता हूँ।उनकी आवाज़ कुछ महीने पहले तरकश डॉट कॉम (tarakash.com) par खुशी बेंगाणी के साथ पॉडकास्ट भेंटवार्ता में सुन चुका हूँ। दिखने में कैसे लगते हैं इसका अनुभव तो हमें तब होगा जब कभी हम भी अपनी रेवा कार में भारत दर्शन के लिए एक दिन निकल पढेंगे जैसा अनूपजी अपने साईकल पर निकले थे, एक जमाने में।अनूपजी के पैरों का तो “रीचार्ज” आराम करने पर हो जाता था लेकिन अपनी रेवा कार की बैटरी को कैसे रीचार्ज करूँ?फ़िलहाल उनके लेखों से उनके बारे में मन में एक “काल्पविक” चित्र से ऐसा लगता है कि वे अपनी मूँछों के पीछे अपनी शरारती मुस्कुराहट को छुपाने वाले सज्जन हैं पर अपनी शरारती आँखें उन्हें धोका देती हैं।एक दिन उनसे अवश्य हाथ मिलाने का सौभाग्य मिलेगा, इसकी भी आशा है।जाते जाते:समीर लालजी को अभी अभी लिखा हूँ इस प्रकार:इस समय Canada में वे सो रहे होंगे और मेरी टिप्पणी आज नहीं छपेगी।====================समीर लालजी,सन्दर्भ से हट्कर कुछ कहने के लिए क्षमा चाहता हूँ। http://www.rajasthanpatrika.com/magazines_new/ravi_inner1.phpऊपर दी हुई कड़ी देखिए।रविवार जुलाई १३ को राजस्थान पत्रिका में “ब्लॉग बोलता है” शीर्षक का हिन्दी ब्लॉग जगत के विषय पर शानदार लेख है।बहुत खुशी हुई पढ़कर।विशेषकर इस लेख में आपके बारे में पढ़कर बहुत अच्छा लगा।आलोक पुराणिकजी, मसिजीवी जी, युसुफ़ खान साहब, जीतेन्द्र चौधरीजी इन सब महाशयों का जिक्र है।आशा है आपका स्वास्थ्य सुधर गया होगा।शुभकामनाएंगोपालकृष्ण विश्वनाथ, जे पी नगर, बेंगळूरु=================
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जमाये रहियेजी।
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=^..^=अब तो चुप रहने में ही भलाई है ।
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सुकुल जी आजकल तोप की पालिश मे व्यस्त है फ़ुरसत मिलते ही तोप से १०० मीटर लंबी मिसाईल दागेगे :)
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सुकुल जी को चमचियाना बेकार है। इस हाँडी में पकने से पहले कोई आवाज नहीं आती। और जब भी आवाज आती है। लौकी की लम्बाई का खाद्य निकलता है।
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ईमेल ईमेल की जगह पोस्ट पोस्ट?? :)
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