बुर्कीना फासो से आने को आतुर धन


मेरी स्पैम मेल में पैसे ही पैसे!रोज ४०-५० धन बांटने को आतुर स्पैम आते हैं!

रोज संदेश भेजता है वह मेरा अनजान मित्र। (एक ही नहीं अनेक मित्र हैं।) बैंक ऑफ अफ्रीका मेरे पास धन भेजने को आतुर है। मैं हूं, कि अपरिग्रह के सिद्धान्त से बंधा, वह संदेश पट्ट से डिलीट कर देता हूं।

यह मित्र रूप बदलता है – कभी ग्रीस या पुर्तगाल का धनी और ऐसे रोग से ग्रस्त मरीज है जो जल्दी जाने वाला है – ऊपर। और जाने से पहले सौगात मुझे दे जाना चाहता है जिससे मैं परोपकार के कार्य सरलता से कर सकूं।

अर्थात वे तो स्वर्ग पायें, हम भी परोपकार का पुण्य ले कर उनके पास जा सकें। धन्य हैं यह सरल और दानवीर कर्ण के आधुनिक रूप!

बैंक ऑफ अफ्रीका, बुर्कीना फासो (अपर वोल्टा) में कितना धन है इस तरह फंसाने को! 
और हम नराधम हैं कि ऐसे संदेश से वैसे डरते हैं, जैसे कोबरा-करैत-वाइपर के दर्शन कर लिये हों।

यह पढ़िये; इस विषय पर कुछ मिलता जुलता कहते हैं श्री गोपालकृष्ण विश्वनाथ भी –

यदा कदा कुछ मज़ेदार ई-मेल भी आते हैं।
कुछ महीने पहले, मेरे पास कोई Jim Zimmerman नाम के भले आदमी से एक प्यारा सा ई मेल प्राप्त हुआ। उसका दावा था कि वह वर्ष में एक लाख डॉलर कमाता था और वह भी घर बैठे बैठे।
इतने नि:स्वार्थ और  उदार दिल वाले इनसान हैं कि उनसे यह पैसा अकेले में भोगने में मन नहीं लगता था। हजारों मील दूर से, मुझे चुनकर केवल  0.00 डॉलर की पूँजी लगाकर 29,524 डॉलर कमाने की विधि बताना चाहते थे।
इस ऑफर ने मेरे दिल को छू लिया।
अपने व्यवसाय सम्बन्धी रहस्यों को मेरे कानों में फ़ुसफ़ुसाना चाहते थे। अवश्य पूर्व जन्म में मेरे अच्छे कर्मों का फ़ल है यह और मैं इस जन्म में यह रहस्य जानने के लिए योग्य बन गया हूँ।
लेकिन, यह तो कलियुग है। संदेह करना स्वाभाविक है। क्या कोई हमें यह बता सकता है कि इन देशों में आज के प्रचलित अर्थशास्त्रीय नियमों के अनुसार, यह संभव है?
यदि यह संभव है, तो मुझे मानना पड़ेगा कि आज का सबसे बड़ा महामूर्ख तो मैं ही हूँ, जिसने अमरीका में ऐसे अवसरों से अनभिज्ञ रहकर उनका लाभ नहीं उठाया।
बीते वर्षों को जाने दीजिए। चलिए, कम से कम अभी  हम सब, इंजिनियरी, ब्लॉगरी वगैरह  छोड़कर इस अनोखे अवसर का लाभ उठाते हैं।
जब संसार में इतने सारे 29,524 डॉलर के चेक हमारी प्रतीक्षा कर रही हैं तो देर किस बात की?
यद्यपि, 29,524 डॉलर कुछ ज्यादा नहीं है, मेरे पास कई सारे 0.00 डॉलर के चेक पढ़े हैं पूँजी लगाने के लिए जिससे  29,524 डॉलर से कई गुना ज्यादा प्राप्ति हो सकती है। lightbulb
— गोपालकृष्ण विश्वनाथ।


व्यक्तिगत ई-मेल की गोपनीयता –

मैने विचार किया। पर्सनल ई-मेल/चैट या फोन की बातचीत का नेट पर सार्वजनिक किया जाना ठीक नहीं है; भले ही वह निरीह सी बात हो। आप सामुहिक रूप से जो व्यवहार करते हैं, वह लिखा या चर्चा किया जा सकता है। यह आत्मानुशासन ई-मेल द्वारा (तकनीकी कारणों से ब्लॉग पर सीधे टिप्पणी न कर पाने के एवज में) पोस्ट पर भेजी टिप्पणी पर लागू नहीं होता; बशर्ते यह स्पष्ट हो कि वह टिप्पणी प्रकाशनार्थ है। मुझे नहीं लगता कि मैने इस आत्मानुशासन का विखण्डन किया है। पर भविष्य में यह दृढ़ता से लागू होगा; यह मैं कह सकता हूं।

ब्लॉगिंग अभिव्यक्ति/रूपान्तरण तो है ही; वह अनुशासन पर्व (संदर्भ – महाभारत का खण्ड) भी है!  


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

18 thoughts on “बुर्कीना फासो से आने को आतुर धन

  1. मुझे अब समझ मे आया अफ़्रीका गरीब क्यो हो गया, वह सारा धन तो हम पर लुटा रहे हे, कम से कम २०, ३० बार तो मुझे ही दान दे चुके हे( मेने लेने से मना कर दिया )बचो इन लोगो से ओर जब भी ऎसी मेल आये, उसे खोलॊ मत, ओर उस दिन अपनी टेम्परेरी फ़ाईल जरुर मिटा दे, पता नही केसे केसे कारतुस साथ मे भेज देते हे, जो आप के कम्पुटर की गोपनिये सुचनाये ओर पास वर्ड चोरी कर लेता हे, मेरे साथ हो चुका हे, लेकिन हमारे बेंक बालो ने मुझे बचा लिया.ओर कभी भी कम्पुटर पर पास बर्ड सेव ना करे,

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  2. कमेंट बॉक्‍स बदले जाने से मुझे भी खुशी है। जब से आपने इससे पहले वाला कमेंट बॉक्‍स लगाया था, आपका ब्‍लॉग मेरे मोबाइल पर नहीं खुलता था।

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  3. सच कह रहे हैं भईया …आज कल ऐसे खुदाई मदद गारों की लाइन लगी पड़ी है,रोज़ की कोई ५-७ मेल आ ही जाती हैं…मेरा एक मातहत जो लाख समझाने के बावजूद इनके चक्कर में आकर चालीस हजार रुपये डुबो चुका है…दुनिया में कुछ भी मुफ्त में नहीं मिलता ये बात कब हमारी समझ में आएगी?नीरज

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  4. सर अच्छा किया जो आपने कमेंट का बक्सा बदल दिया..पिछले ना जाने कितने ही पोस्ट पर मन मसोस कर रह गये थे.. हाथ में ख्जली होने लगी थी.. आपको कमेंट जो नहीं कर पा रहे थे..वैसे हम भी हैं इस कतार में..अभी कुछ दिन पहले की बात है.. एक चेन्नई के टी.सी.एस. में काम करने वाले एक व्यक्ति को लगभग 18 लाख का चूना लगा दिया लगा दिया गया था.. बाद में पुलिस ने प्लान बना कर उस बुल्गारीयन को झांसा दिया की कुछ और पैसा उसे मिलेगा और इस तरह चेन्नई बुलाया गया.. फिर चेन्नई एयरपोर्ट पर ही उसे धर दबोचा..पुरा वाकया चेन्नई के आई.टी.सेक्टर में बहुता छाया हुआ था..

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  5. पहले हमारे पास अफ्रीकी देशों से बहुत चिट्ठी आती थी. बाद में उनलोगों ने चिट्ठी भेजना बंद कर दिया. कारण शायद यह होगा कि मैंने अफ्रीकी देशों से आने वाली चिट्ठियों को कभी भी शक की निगाह से नहीं देखा. हाँ, अमेरिका से चिट्ठी मिली होती तो हम उसे साम्राज्यवादी देश से मिली चिट्ठी मानकर उसके ऊपर शक करते. ये अफ्रीका वाले बड़े ईमानदार लोग होते हैं.कुछ चिट्ठियां बड़ी मजेदार होती थीं. एक बार एक चिट्ठी आई कि अशोक मिश्रा नामक व्यक्ति का अफ्रीका में एक्सीडेंट हो गया. बन्दे के पास बहुत पैसा वगैरह था. वही पैसा ये अफ्रीकी मित्र मुझे देना चाहते थे क्योंकि मैं मिश्रा हूँ. मुझे लगा कितने कम मिश्रा हैं इस दुनिया में कि कोई अफ्रीका में कार एक्सीडेंट में शहीद होता है और ये समाजसेवी किसी और मिश्रा को भारत में उसका पैसा देना चाहते हैं. पढ़कर मन भर आया था. ये सोचकर कि दुनिया में अभी भी भले लोग हैं. ऐसे ही एक अफ्रीका वाले की चिट्ठी पढ़कर मेरे एक मित्र संजीत चौधरी ने उनके द्बारा सुझाए गए सारे काम कर डाले. दिल्ली में रहता था. पैसा जैसे ही उसके बैंक अकाऊंट में ट्रान्सफर होने वाला था, सी बी आई वालों ने पकड़ लिया. मजे की बात ये कि उस बेचारे को एक दिन बाद दुबई जाना था, नौकरी ज्वाईन करने के लिए. इधर वो बेचारा सी बी आई के कार्यालय में फंसा बैठा था कि उधर दुबई से फ़ोन आ गया. और बड़ी आफत आ गई. सी बी आई वालों को लगा कि बन्दे के तार दुबई से भी जुड़े हैं. बड़ी छीछालेदर हुई बेचारे की. पिछले साल की घटना है. कलकत्ते आया था तो बता रहा था.

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  6. ज्ञानजी,व्यक्तिगत ई मेल के विषय में आपकी नीति सही है।लेकिन, कभी कभी, चुन चुनकर, विशेष परिस्थितियों में, मैं व्यक्तिगत ई मेल को अपने उत्तर / टिप्पणी के साथ सार्वजनिक मंचों पर प्रस्तुत किया हूँ, सब की सूचना/भलाई के लिए। जिसने ई मेल भेजा है, उसका नाम हम मिटाकर, उसके बदले ***** लगा देते हैं और कभी कभी, जब मामला संवेदनशील होता है तो मंच पर प्रस्तुत करने से पहले उससे पूछ भी लेते हैं। एक उदाहरण देता हूँ। कई साल पहले एक युवक ने मुझे खुदखुशी करने की अपनी असफ़ल प्रयास के बारे में लिखा था और कारण और परिणाम के बारे में भी बताया था। उत्तर में मैं ने बहुत लंबी चिट्टी लिखी थी उस समय और उसका नाम न लेकर, उसे, उत्तर सहित, एक सार्वजनिक चर्चा समूह पर पेश किया था। बहुत दिनों तक यह एक “Hot Thread” बना रहा। और लोगों के उत्तर/ टिप्पणियों का संकलन करके उस युवक को भी भेजा था। आज वह युवक एक कामयाब, शादि शुदा व्यक्ति है।

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