कल शाम डा. अनुराग टिप्पणी करते है –
अभी इतना सब कुछ पढने के बाद सोच रहा हूँ की अगली पोस्ट किस पर डालेंगे सर जी? एक मक्खी पर आप ने ढेरो लोगो को भिड़ा दिया ओर ख़ुद मजे ले रहे है? धन्य हो सर जी धन्य हो?
ओह, इतना नॉन-ईश्यू पर लिख रहा हूं? पर सही ईश्यू क्या हैं? चुनाव, टेलीवीजन सीरियल, ग्लोबल वार्मिंग, टाइगर्स की घटती संख्या, सेतुसमुद्रम परियोजना से सेविंग…
बड़ा कठिन है तय करना कि क्या लिखा जाना चाहिये और क्या नहीं। शास्त्रीजी की सलाह मान कर विषय स्पेसिफिक ब्लॉग रखने में यह झंझट नहीं है। उदाहरण के लिये अगर मैं "मेण्टल टर्ब्यूलेंस (mental turbulence – मानसिक हलचल)" की बजाय “थर्मोडायनमिक्स (thermodynamics)” पर ब्लॉग चला रहा होता, तो क्या मजा होता? मुझे ज्यादातर अनुवाद ठेलने होते, अपने नाम से। रोज के गिन कर तीन सौ शब्द, और फिर जय राम जी!
गड़बड़ यह है कि वह नहीं कर रहा। और बावजूद इसके कि शास्त्रीजी ने चेतावनी दे रखी है कि भविष्य में जब लोग विज्ञापन से ब्लॉगिंग में पैसे पीटेंगे, तब मेरे ब्लॉग पर केवल मेट्रीमोनियल के विज्ञापन देगा गूगल! »
मतलब अभी मैं (बकौल ड़ा. अनुराग) मजे ले रहा हूं; मक्खी और मच्छर पर लिख कर; पर भविष्य में ज्यादा चलेंगे पाकशास्त्र विषयक ब्लॉग।
« इधर गूगल का नॉल लगता है ब्लॉगरी का भविष्य चौपट कर देगा। काम के लोग गूगल नॉल पर विषय स्पेसिफिक लिखेंगे। पर जब आधी से ज्यादा जिंदगी हमने बिना विशेषज्ञता के काट दी, तो अब हम क्या खाक विशेषज्ञ बनेंगे।
जब से शास्त्रीजी ने गूगल नॉल का लिंक भेजा है, भेजा उस तरफ चल रहा है। मुझे लगता है – सीरियस ब्लॉगर उस तरफ कट लेंगे। हमारे जैसे हलचल ब्राण्ड या जबरी लिखने वाले बचेंगे इस पाले में। ड़ा. अनुराग भी (शायद) डाक्टरोचित लेखन की तरफ चल देंगे!
अगले पोस्ट के टॉपिक की क्या बात करें साहब; गूगल के इस नये चोंचले से ब्लॉगिंग (बतौर एक विधा) इज़ इन डेंजर! आपको नहीं लगता?

ब्लॉग्गिंग को कहे का खतरा ! ट्विट्टर, विकिपीडिया तो पहले भी थे अब एक नॉल और जोड़ लीजिये… चलता तो रहेगा ही.
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काश्! आप यदि ऊष्मागतिकी पर चिट्ठे ठेल रहे होते तो मुझे रोज टिपियाना पडता! बाकी सारे लोग तो मान लेते कि आप सही लिख रहे हैं लेकिन मीनमेख निकालने के लिये मुझे आना पडता.फिलहाल “हलचल” को न छेडें क्योंकि हम सब इसके आदी हो गये हैं. हां एक विषयाधारित चिट्ठा अलग से चालू कर दें तो कल को बडा फायदा होगा!!
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काश्! आप यदि ऊष्मागतिकी पर चिट्ठे ठेल रहे होते तो मुझे रोज टिपियाना पडता! बाकी सारे लोग तो मान लेते कि आप सही लिख रहे हैं लेकिन मीनमेख निकालने के लिये मुझे आना पडता.फिलहाल “हलचल” को न छेडें क्योंकि हम सब इसके आदी हो गये हैं. हां एक विषयाधारित चिट्ठा अलग से चालू कर दें तो कल को बडा फायदा होगा!!
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ज्ञान दा, आपने मानसिक हलचल को एक विषय ही बना दिया है। चूंकि ब्लॉगरी में आप इस विषय के सर्जक व नियामक हैं, इसलिए आपका ब्लॉग इस विषय का विशिष्टतम ब्लॉग बना रहेगा। आपकी यह विशिष्टता ही है कि सीजफायर और मक्खी जैसी छोटी चीजों पर भी बड़ी बात लिख जाते हैं और बड़ी बहस छेड़ देते हैं।
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आप तो हलचल लीला जारी रखे अच्छे अच्छे दौडे चले आएंगे फ़िर गूगल की आपकी हलचल के आगे बिसात क्या है. खैर आप तो सब जानते है . हलचल हलचल हलचल ज्ञान जी की हलचल जारी रहे.
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