ओह, आपको यह भय होता है? ब्लॉगिंग में मुझे होता है। अभी मुझे नौकरी लगभग सात साल से अधिक करनी है। और कई क्षेत्र ऐसे हैं जिनपर मैं कलम नहीं चला सकता। जो क्षेत्र बचता है, उसमें सतत स्तर का लिखा जा सकता है कि लोग पढ़ें?
मुझे शंका होने लगी है। मैं श्री पंकज अवधिया या श्री गोपालकृष्ण विश्वनाथ से ब्लॉग इनपुट चाहता हूं, उसके पीछे यह भय काफी हद तक काम करता है। ऐसा नहीं कि वे जो भेजते हैं, उसे मैं पकापकाया मान कर सिर्फ परोस भर देता हूं। उनकी पोस्ट में वैल्यू एडीशन का प्रयास करता हूं – और शायद यह इन सज्जनों को ठीक न लगता हो। पर उन्होनें (शायद सज्जनतावश) अपनी अप्रियता दर्शाई नहीं है। लिहाजा गेस्ट पोस्ट का वह मॉडल चल रहा है।
मैं चुका नहीं हूं, पर चुक जाने की आशंका से ग्रस्त अवश्य रहता हूं।
एक बार मन हुआ था कि यह खोमचा (मानसिक हलचल) बन्द कर शिव वाले ब्लॉग पर ही नियमित लिखने लग जाऊं। पर उस ब्लॉग को शिव कुमार मिश्र ने बड़ी मेहनत से एक चरित्र प्रदान किया है। उसमें अब पोस्ट लिखते भी संकोच होता है। मै यह जान चुका हूं कि शिव के स्तर का सटायर नहीं लिख सकता। लिहाजा वहां जोड़ीदारी करने में एक प्रकार का इनफीरियॉरिटी कॉम्प्लेक्स होता है। (मुझे मालुम है यह लिखना शिव को असहज कर रहा होगा! पर जो है, सो है!)
अभी तो अधिकतर लोगों ने लिखना शुरू किया है।
लिहाजा यह (चुक जाने का) भय अभी तो लोगों को नहीं आया होगा। पुराने लिक्खाड़ इस भय के बारे में बता सकते हैं।
वैसे यदि आप लिखते-पढ़ते-सोचते रहें; और पाठक पर्याप्त सिंफनी (symphony – सुर) मिलाते रहें तो यह भय बहुत सीमा तक निर्मूल होता है। पर आप कह नहीं सकते कि कब कहां क्या गड़बड़ हो जायेगा; और आपका लेखन मूक हो जायेगा।
मैं अगर २५ साल का जवान होता तो यह न सोचता। उस समय शादी न हुई होती तो और अच्छा – रोमांस पर ठेलता। पर अब तो यदा-कदा लगता है कि कहीं हलचल की बैण्डविड्थ संकरी तो नहीं होती जा रही है। कभी लगता है कि स्टेल (stale – बासी) विषयों पर ठेलना नियति बन गयी है।
अन्य भयों की तरह, मैं जानता हूं, कि यह भय भी जड़ें नहीं रखता। पर हाइड्रा की तरह यह बिना मूल के कभी कभी बढ़ने लगता है। यहां लिखने का ध्येय वैरियेण्ट विषय पर पोस्ट ठेलना नहीं – केवल आपसे यह जानना है कि यह भय कितना व्यापक है!

बीच रास्ते में गाड़ी खराब होने पर उसका बोनट खोल कर भिन्न भिन्न आयाम से अपने मोबाइल के कैमेरा से फोटो खींचकर पोस्ट लिखने वाले ब्लॉगर की ब्लॉग पर ऐसा लेख?? विषय न मिला तो विषय न मिलने पर भी आप छत्तिसो लेख लिख सकते है.. घबराईए मत बस पोस्ट पेलते जाइए.. वैसे इस लेख पर जो टिप्पणिया आई है उनमे पढ़कर लगता है हिन्दी ब्लॉग जगत का भविष्य सुनहरा है.. एक से बढ़कर एक विचार आ रहे है..
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हम क्या कहें ! हम तो यहाँ सीखने की इच्छा लिए आते हैं. और आज तक ये नहीं लगा की आप कुछ अप्रासंगिक लिख दें… कभी-कभी लगता है की दिन में २-३ पोस्ट होते तो अच्छा होता. आप नाहक ही सोच में पड़ गए… और सुझाव तो मस्त आए ही हैं… सुकुल जी की गाना गाने वाली बात अच्छी लगी ! और रोमांस पर लिखने के लिए क्या उम्र जरूरी है?… मेरा अभी भी २५ होना तो बाकी है पर थोड़ा मुश्किल ही लगता है :(
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ज्यादा नहीं तो महीने में ३-४ पोस्ट ही सही.
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क्या भइया आप तो मेरी चिंताएँ चुरा रहें है.अब जबकि बहुत से लोगों को आपकी पोस्ट का इंतजार रहता है, आप इस ढंग की बातें कर रहे हैं.और फ़िर अगर लिखना ही है तो शिव के ब्लॉग पर क्यों मेरे ब्लॉग पर लिखिए. मैं और मेरा ब्लाग दोनों तरस रहें है.”म्हारो ब्लाग तो खुलो पड्यो है कब आओगा?”
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महाराज लिखते रहिए, इसमें सोचने की कोई बात ही नहीं है। विषयवस्तु छूटजाने का डर तो डर भी है। जो कि हमें भी सताता है वरना ब्लॉगिंग में और डर काहे बात का। कभी-कभी तो ये लगता है कि भई इसपे लिखूं या उसपे लिखूं, पोस्ट करते करते भी दो-दो मन में चलते रहते हैं। तो महाराज आप को पढ़ने के लिए ही तो यहां का हम रुख करते हैं…। लिखते रहें महाराज।
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आप जब इतना अच्छा लिखते हैं तो ये विचार क्यूं। महाराज लिखते रहिए। विषय वस्तू छूटने का डर तो मुझे भी सताता रहता है। कई बार लिखते लिखते भी विचार डोलते रहते हैं लगता है कि यार इस पर भी लिखना है। अगर हम लिखते ही रहें तो आप जैसी हस्तियों को पढ़ कैसे पाएंगे। महाराज चालू रहिए….।
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आप तो लिखते रहियेजी,यह डर वर का चक्कर छोड दीजिये.जो लिखेंगे, जब जब लिखेंगे,सिर आंखों पर.
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aap aisa kahenge panditjee to humare jaise naye nawadiye kaise tik payenge
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I almost wrote a comment but didn’t post it. I will post my comment when I can judge it better.To give a hint, its Wednesday and my running (11 kms) and beer drinking day, :-)
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ज्ञान जी, आप भी कभी नाहक सोचने लगते हैं। आप के उम्र के बयान से लगता है आप की और मेरी उम्र समान ही है। लेकिन मेरा दृष्टिकोण भिन्न है। प्रेम और रोमांस की उम्र तो यही है। जब यौन आकांक्षाएँ तृप्ति की और होती हैं। तब केवल साहचर्य से उत्पन्न प्रेम ही तो रह जाता है। उस में कितना रोमांस भरा है। जरा उसे अनुभव कर देखिए और रीता भाभी को भी कराइए। अभी तो आप को बहुत लिखना है। मैं तो सोचता हूँ कि मेरे पास और कोई काम और दायित्व न हों तो इतना लिखूं, इतना लिखूँ कि मेरे पास जो कुछ है उस सब को उड़ेलता रहूँ तो शायद यह जीवन भी कम पड़ जाए। आप संकोचों को त्याग कर लिखें और प्रेम करें, रोमांस भी।
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