मेरा डेढ़ साल के ब्लॉग पर हिन्दी लेखन और हिन्दी में सोचने-पढ़ने-समझने का बहीखाता यह है:
धनात्मक |
ॠणात्मक |
हिन्दी में लिखना चुनौतीपूर्ण और अच्छा लगता है। | हिन्दी में लोग बहुत जूतमपैजार करते हैं। |
हिन्दी और देशज/हिंगलिश के शब्द बनाना भले ही ब्लॉगीय हिन्दी हो, मजेदार प्रयोग है। | उपयुक्त शब्द नहीं मिलते। समय खोटा होता है और कभी कभी विचार गायब हो जाते हैं। |
आस-पास में कुछ लोग बतौर हिन्दी ब्लॉगर पहचानने लगे हैं। | पर वे लोग ब्लॉग पढ़ते नहीं। |
ब्लॉगजगत में नियमित लेखन के कारण कुछ अलग प्रकार के लोग जानने लगे हैं। | अलग प्रकार के लोगों में अलग-अलग प्रकार के लोग हैं। |
नये आयाम मिले हैं व्यक्तित्व को। | चुक जाने का भय यदा कदा जोर मारता है – जिसे मौजियत में सुधीजन टंकी पर चढ़ना कहते हैं! |
इसी बहाने कुछ साहित्य जबरी पढ़ा है; पर पढ़ने पर अच्छा लगा। | साहित्यवादियों की ब्लॉगजगत में नाकघुसेड़ जरा भी नहीं सुहाती! |
ब्लॉगजगत में लोगों से मैत्री बड़ी कैलिडोस्कोपिक है। | यह कैलिडोस्कोप बहुधा ब्लैक-एण्ड-ह्वाइट हो जाता है। उत्तरोत्तर लोग टाइप्ड होते जाते दीखते हैं। जैसे कि ब्लॉगिंग की मौज कम, एक विचारधारा को डिफेण्ड करना मूल ध्येय हो। |
हिन्दी से कुछ लोग जेनुइन प्रेम करते हैं। कल तक भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में कार्यरत लोग हिन्दी में इण्टरनेट पर लिख कर बहुत एनरिच कर रहे हैं इस भाषा को। और लोगों की ऊर्जा देख आश्चर्य भी होता है, हर्ष भी। | कुछ लोग महन्त बनने का प्रयास करते हैं। |
मन की खुराफात पोस्ट में उतार देना तनाव हल्का करता है। | ब्लॉगिंग में रेगुलर रहने का तनाव हो गया है! |
पोस्टों में विविधता बढ़ रही है। | विशेषज्ञता वाले लेखन को अब भी पाठक नहीं मिलते। |