यह सबसे बड़ी टिप्पणी है!


ज्ञानजी,
यह मैं क्या पढ़ रहा हूँ?
जब कोई विषय नहीं सूझता था तो आप मक्खियों पर, आलू पर और टिड्डे पर लिखते थे। चलो आज और कोई अच्छा विषय न मिलने पर मुझ पर एक और लेख लिख दिया। विनम्रता से अपना स्थान इन नाचीजों के बीच ले लेता हूँ !

Vishwanath Small
यह लेख श्री गोपालकृष्ण विश्वनाथ जी ने "कुछ और विश्वनाथ, और आप मानो तर गये!
" पर टिप्पणी के रूप में लिखा है। एक दक्षिण भारतीय की इतनी अच्छी हिन्दी में इतनी विस्तृत टिप्पणी! आप उसका अवलोकन करें।

चिन्तित होने की आवश्यकता नहीं। मज़ाक मुझे बहुत पसन्द है (और जब और लोग मेरे साथ मज़ाक नहीं करते, तो स्वयं कर लेता हूँ!)

मुझे  आपने बहुत "लिफ़्ट" दे दिया। दिनेशरायजी और अनिल पुसाडकरजी ठीक कहते हैं। मैं अकेला नहीं हूँ। और भी लोग हैं जो आपके ब्लॉग नियमित रूप से पढ़ते हैं। यदा कदा उनके बारे में भी कुछ लिखिए (तसवीर के साथ)। औरों के बारे में जानने के लिए उत्सुक हूँ। अवश्य वे मुझसे ज्यादा सुन्दर दिखते होंगे। समीरजी से शुरुआत की जाए। देखने में पहलवाल लगते हैं और लिखने में भी पहलवान से कम नहीं)।

अच्छे ब्लॉग तो बहुत सारे लिखे जा रहे हैं। हर एक को पढ़ना हमारे लिए असंभव है। फ़िर भी, आपका ब्लॉग मैं नियमित रूप से पढ़ता हूँ। इसके कारण हैं:

एक ब्लॉगर का स्वप्न हैं विश्वनाथ जी जैसे पाठक। आप आधा दर्जन गोपालकृष्ण विश्वनाथ को पसन्द आ जायें तो आपकी जिन्दगी बन गयी! हम उनकी राह में ताकते हैं जो प्योर पाठक हैं। प्रबुद्ध पाठक। वे आपके लेखन का मानदण्ड भी स्थापित करते हैं। आप जबरी अण्ट-शण्ट नहीं ठेल सकते।
"कुछ और विश्वनाथ, और आप मानो तर गये" से।

१) एक तरह का भाइचारा। हम दोनों बिट्स पिलानी के छात्र रहे हैं|

२) उम्र में ज्यादा अन्तर नहीं। उम्र में आपसे बडा हूं लेकिन सोच में कभी कभी आप हम से बडे नजर आते हैं।

३)आप विषय विशेषज्ञ नहीं हैं, आपके लेखों पर टिप्पणी करना मेरे लिए आसान है; और ज्यादा सोचना भी नहीं पढ़ता। तात्कालिक टिप्पणी  सहजता से कर पाता हूँ। ("इम्प्रोम्प्टु" और "स्पॉन्टेनियस" कहना चाहता था पर ऐन वक्त पर हिन्दी के उपयुक्त शब्द मिल गए!)

४)आप नियमित रूप से लिखते हैं। जब कभी यहाँ पधारता हूँ कुछ न कुछ नया पढ़ने को मिलता है और विषय हमेशा "सस्पेन्स" में रहता है।

५) आप कोई बडे साहित्यकार नहीं हैं जो हम आम लोगों के मन मे "कॉम्प्लेक्स" पैदा करते हैं। जब कोई बहुत ही ऊँचे दर्जे का लेख पढ़ता हूँ तो डर लगने लगता है। क्या हम जैसे साधारण लोग इन लेखों पर टिप्प्णी करने की जुर्रत कर सकते हैं?

६)आपको भी वही बीमारी है जो मुझे है, और यह की भाषा की शुद्धता पर आवश्यकता से अधिक जोर नहीं दिया जाता है। आप से सहमत हूँ कि ब्लॉग्गरी कोई साहित्य का मंच नहीं है। यहाँ हम पांडित्य प्रदर्शन करने नहीं आते। आपका  यहाँ-वहाँ अंग्रेज़ी के शब्दों का "इम्प्रोवाइसेशन" हमें बहुत भाता है चाहे अनूप शुक्लाजी और दिनेशरायजी को यह पसन्द न हो। यहाँ गप शप का माहौल रहता है जो मुझे आकर्षित करता है।

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Vishwanath at workdesk at Bangaloreसमीरजी, आपका ब्लॉग भी नियमित रूप से पढ़ता हूँ। ज्ञानजी का ब्लॉग तो सुबह सुबह कॉफ़ी के साथ "जल्दी जल्दी" पढ़ता हूँ  लेकिन आपके ब्लॉग का सब्सक्राइबर हूँ। ई मेल डिब्बे में नियमित रूप से आपके लेख पहुँच जाते हैं और इत्मीनान से पढ़ता हूँ, और आनन्द उठाता हूँ।

बस जब टिप्पणी करने की सोचता हूँ तो देखता हूँ इतने सारे लोग टिप्पणी  कर चुके हैं अब तक। एक और टिप्पणी का बोझ क्यों आप पर लादूँ? वैसे कहने के लिए कुछ खास होता नहीं है। सोचता हूं – छोडो इस बार; अगली बार टिप्पणी करेंगे। यह "अगली बार" बार बार आता है और चला जाता है।

ब्लॉग जगत में और भी मित्र हैं लेकिन मैंने देखा है के वे नियमित रूप से लिखते नहीं हैं और उनके यहाँ पधारने पर कई बार वही पुराना पोस्ट नजर आता है ("अनिताजी, are you listening?")

कई और ब्लॉग हैं (जैसे रवि रतलामीजी, अनूपजी और शास्त्रीजी के ब्लॉग) जहाँ मुझे रोज पधारने के लिए समय नहीं मिलता लेकिन उनके यहाँ सप्ताह में एक या दो बार जाता हूँ और एक साथ सभी लेखों को पढ़ता हूँ। मुसीबत यह है कि यह नहीं तय कर पाता कि किस लेख पर टिप्प्णी करूँ और यदि कर भी दिया तो क्या इतने दिनों के बाद टिप्पणी में दम रहेगा? मामला तब तक ठंडा हो चुका होता है।

आपके यहाँ कई नामी ब्लॉग्गरों के नामों से परिचित हुआ  हूँ। मन करता है कि किसी का ब्लॉग न छोड़कर सब को पढ़ूँ लेकिन यह कहने की आवश्यकता नहीं की यह सरासर असंभव है। फ़िर भी कभी कभी समय मिलने पर यहाँ वहाँ झाँकने का मजा उठाता हूँ लेकिन जानबूझकर टिप्पणी करने की प्रवृत्ति पर रोक लगा लेता हूँ। ब्लॉग नशीली चीज है। एक बार किसी नए ब्लॉग्गर से सम्बन्ध जोड़ लिया तो फ़िर उसके साथ इन्साफ़ भी करना होगा। उसका भी ब्लॉग नियमित रूप से पढ़ना पढ़ेगा और टिप्पणी करके उसे प्रोत्साहित करना होगा। क्या इस जिम्मेदारी के लिए समय हैं मेरे पास? यह सोचकर, कई अन्य चिट्ठाकाकारों के लेखों का कभी कभी आनन्द उठाता हूँ पर जान बूझकर टिप्पणी नहीं करता।

दूर से उन सबको मेरा गुमनाम सलाम!
— गोपालकृष्ण विश्वनाथ


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

26 thoughts on “यह सबसे बड़ी टिप्पणी है!

  1. विश्वनाथ जी जैसे पाठक और टिप्पणीकार अगर कहें तो नसीब वालों को हो मिलते है ।

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  2. ग्रेट ब्लॉगर और ग्रेट टिप्पणीकार – ग्रेट जुगलबंदी. एक चिट्ठाकार को और क्या चाहिए. बाकी, आपके ब्लॉग के लिए मैं भी सरासर वही कहूंगा जो विश्वनाथ जी ने कही है. नियमितता बनाए रखने के लिए जो जद्दोजहद रखनी पड़ती है, जो डिटरमिनेशन बनाए रखना पड़ता है, वो तो मुझे भी अच्छी तरह मालूम है. और, पाठकों को बनाए रखना… वो तो और भी मशक्कत का काम है.विश्वनाथ जी जैसे पाठक आसानी से नहीं मिलते, ये भी तयशुदा बात है.

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  3. आदरणीय ज्ञान जी , आपको और आदरणीय विश्वनाथ जी को ह्रदय से प्रणाम करता हूँ ! कृपया स्वीकार करे ! ऐसा मार्मिक और सच्चा लेख पहली बार पढ़ रहा हूँ ! शुभकामनाएं !

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  4. @विश्वनाथ जी’तीसरा खंबा ‘ और ‘JUDICATURE INDIA’ पर आप की टिप्पणियाँ मिलीं जवाब भी दूंगा। कल समय नहीं निकाल पाया। मेरा आग्रह भाषा की शुद्धता नहीं है, अपितु सहजता है। हम तकनीकी लोग निजी कामकाज बहुत सारे अंग्रेजी शब्दों का व्यवहार करते है, वे हमें सहज लगते हैं। लेकिन जब हम आम पाठकों से रूबरू होते हैं तो वे असहज और अपरिचित भी हो जाते हैं। ज्ञान जी की पोस्ट में आए शब्दों के लिए मुझे शब्दकोष में जाना पड़े तो आम पाठक का क्या होगा? पाठक शब्दकोष तलाशे इस से अच्छा है लेखक खुद तलाश ले। दोनों ही शब्दों का प्रयोग करे तो इस से पाठक को सहज भी लगेगा और एक नए शब्द को सीखने का अवसर भी उसे प्राप्त होगा। किसी भी आलेख को पढ़ने पर एक दो शब्दों का इजाफा यदि पाठक के शब्द सामर्थ्य में हो यह मैं किसी भी लेखक का आवश्यक गुण मानता हूँ। बाकी आप जैसा विश्लेषक और प्रश्न-कर्ता पाठक का होना वाकई किसी भी लेखक/ब्लागर के लिए सम्मान की बात तो है ही।

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  5. मात्र विश्वनाथ जी के लिए: मैं धन्य हुआ आपने मुझे इतना मान दिया. मेरे हृदय में आपके प्रति विशेष आदर है और आपने उसी तरह सहदयता से मेरी बात ली, मैं अभिभूत हूँ. ज्ञान जी ऐसे मसले लाते ही रहते हैं, इसीलिए वे मेरे विशिष्ट हैं…उनकी लेखनी के प्रति कुछ भी शब्द देना मेरी लेखनी की अपनी कमजोरी है…प्रयास है कभी शायद कुछ सही लिख पाऊँ..उस दिन का हमेशा ही इन्तजार रहेगा मुझे आजीवन.

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  6. भाई साब विश्वनाथ जी जैसा एक पाठक भी मिल जाये तो लिखना सफ़ल हो जाये। आप खुशकिस्मत हैं जो उन जैसा पाठक मिला,हम तो ये सोच कर ही खुश हैं की चलो अपनी टिपण्णी मे ही सही उन्होने हमारा उल्लेख तो किया। और सबसे बडी बात जितनी इमानदारी से उन्होने समय नही होने की बात कही है क्या इतनी हिम्मत से कोई कह सकता है,दिल रखने के लिये ही सही झूठ का सहारा ले लेता है हर कोई।

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  7. क्या केने क्या केने। समीरजी हिंदी ब्लागिंग जगत के आशीर्वाद पुरुष हैं। पहलवानी तो और लोग कर रहे हैं। ब्लागिंग के इतिहास में वह आशीर्वाद पुरुष के तौर पर जगह बना चुके हैं।

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  8. विश्वनाथ जी एक ज्ञानी पाठक हैं -ज्ञान और पठनीयता का यह गंठजोड़ आगे भी गुल खिलाता रहेगा ! ज्ञान जी सुवरण पारखी हैं ,यह मैं पहले भी रेखांकित कर चुका हूँ उनके अंगरेजी शब्दों के प्रयोग और अब तो उनके समतुल्य हिन्दी शब्दों का चातुर्य प्रदर्शन बहुत लुभाने लगा है -यह मूलतः ज्ञान बाटने की नेक नीयत से प्रेरित है इसमें कतई ज्ञान का प्रदर्शन नही है -मैं तो ऐसयिच सोचता हूँ ! विश्वनाथ जी ,आशु या सहज प्रतिक्रया को अंगरेजी में क्या कहते है ? अरे अभी अपने ही तो बताया है ?

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  9. पढने के बाद महसूस हुआ कि विश्वनाथजी की टिप्पणी दिमाग से नहीं, दिल से लिखी गई है।

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