ब्लॉग पर यातायात – फुटकर सोच


मानसिक हलचल पर सर्च-इन्जन द्वारा, सीधे, या अन्य ब्लॉग/साइट्स से आने का यातायात बढ़ा है। पर अभी भी फीड एग्रेगेटरों की सशक्त भूमिका बनी हुई है। लगभग एक चौथाई क्लिक्स फीड एग्रेगेटरों के माध्यम से बनी है।

मैं फीड संवर्धन की कोई स्ट्रेटेजी नहीं सोच पाता और न ही हिन्दी ब्लॉगरी में मीडियम टर्म में फीड एग्रेगेटरों का कोई विकल्प देखता हूं। सर्च इंजन (मुख्यत: गूगल) पर प्रभावी होने के लिये कुछ वाक्य/शब्द अंग्रेजी में होने चाहियें (वास्तव में?)। पर अब, हिन्दी में अधिक लिखने के कारण लगता है, अंग्रेजी में लिखना हिन्दी की पूअर-कॉपी न हो जाये। और वह बदरंग लगेगा; सो अलग!

फीड एग्रेगेटर मैनेजमेंट भी ठीक से नहीं कर पाता। न मेरी फीड में आकर्षक शब्द होते हैं और न मेरी पोस्ट की "पसंदगी" ही जुगाड हो पाती है। निश्चय ही मेरी पोस्ट घण्टा दो घण्टा पहले पन्ने पर जगह पाती होगी एग्रेगेटरों के। उतनी देर में कितने लोग देख पाते होंगे और कितने उसे प्रसारित करते होंगे। पोस्टों को लिंक करने की परंपरा जड़ नहीं पकड़ पाई है हिन्दी में। ले दे कर विभिन्न विचारवादी कबीले पनप रहे हैं (जिनमें उस कबीले वाले "दारुजोषित की नाईं" चक्कर लगाते रहते हैं) या लोग मात्र टिप्पणियां गिने जा रहे हैं। घणा फ्रस्ट्रेटिंग है यह सब।

लिहाजा जैसे ठेला जा रहा है – वैसे चलेगा। फुरसतिया की एंगुलर (angular) चिठ्ठाचर्चा के बावजूद हिन्दी भाषा की सेवा में तन-मन (धन नहीं) लगाना जारी रखना होगा! और वह अपने को अभिव्यक्त करने की इच्छा और आप सब की टिप्पणियों की प्रचुरता-पौष्टिकता के बल पर होगा।  

Blog Traffic
इस पाई-चार्ट में मेरे अपने आई-पी पतों से होने वाले क्लिक्स बाधित हैं।


ओइसे, एक जन्नाटेदार आइडिया मालुम भवाबा। ब्लॉग ट्राफिक बढ़ावइ बदे, हमरे जइसा “उदात्त हिन्दूवादी” रोज भिगोइ क पनही चार दाईं बिना नागा हिन्दू धरम के मारइ त चार दिना में बलाग हिटियाइ जाइ! (वैसे एक जन्नाटेदार आइडिया पता चला है ब्लॉग पर यातायत बढ़ाने के लिये। हमारे जैसा “उदात्त हिन्दूवादी” रोज जूता भिगा कर चार बार बिना नागा हिन्दू धर्म को मारे तो ब्लॉग हिट हो जाये!)
Beating A Dead Horse 2


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

40 thoughts on “ब्लॉग पर यातायात – फुटकर सोच

  1. पोस्ट और अद्यावधि टिप्पणियां पढी -कुछ जिज्ञासा -भारी चीजें जब नीचे बैठती हैं तो क्रीम सतह पर क्यों ? इसका मायने वह भारी नहीं ? यह छुपा व्यंग ? अनूप जी ने अच्छा सावधान किया -हिन्दूधर्म पर ऐड हाक कुछ मत लिखियेगा -आपको जरूरत भी नही है !

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  2. गुरु जी कभी-कभी आप कंफ़्यूसिया देते है। हम जैसे लोग जो आपके पिछे चल रहे हैं जब तक हिन्दू धर्म को गाली बकने की प्रेक्टिस कर पायेंगे आप फ़िर नया आइडिया पट्क दोगे।वैसे बात लिखी सही है आपने ये आंकडेबाजी पर अपन को भी ध्यान देना पडेगा लगता है।

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  3. संकट यह है कि तमाम लोग हिन्दू को एक धर्म मानने लगे हैं। यह धर्म से बढ़ कर है, एक ऐसी जीवन शैली है जिस में अनेक धर्म, पंथ स्थान पाते हैं और व्यक्ति भी। इसे धर्म कह कर इस का निम्न मूल्यांकन किया जाता रहा है। कोई घर का या पड़ौसी आप की पतलून की फ्लाई की चैन खुली देख कर आप को बता देता है कि आप उसे बंद कर लें तो उसे जूता मारना कहें तो आप की इच्छा। अच्छा तो यह कि हम उसे खुली न छोड़े और सावधानी पूर्वक बंद करने की आदत डालें।

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  4. ब्लॉग ट्राफिक बढ़ावइ बदे, हमरे जइसा “उदात्त हिन्दूवादी” रोज भिगोइ क पनही चार दाईं बिना नागा हिन्दू धरम के मारइ त चार दिना में बलाग हिटियाइ जाइ! ऊ फ़िर चारै दिना रही। यहिके बाद मुंह भरे गिरि जाई।ऐसा है कि हर बात से उसका पुछल्ला भी साथ चलता है। जैसे चार की चांदनी उसके साथ फ़िर अंधेरी रात।ऐसे ही चार दिन में हिट फ़िर दो दिन में चित।वैसे ज्ञानजी ऊ वाला आइडिया जो आपने अपनाया पिछलकी पोस्ट में कि अरुण कुमार वाला झन्नाटेदार कमेंट जुगाड़ा ऊ भी कम धांसू नहीं है। वो कैसे मैनेज किया आपने? अपनी कविता को कैसे कूड़ा कहलवाया अरुणजी से? जो भी है बड़े भले जीव हैं। आपको वैकल्पिक रोजदार सुझा रहे हैं। आप उनको धन्यवाद भी नहीं दे रहे। यह अच्छी बात नहीं है!और समीरलाल जी की बात से कित्ते मुदित-प्रमुदित हुये जरा खुलासा करिये अपनी एक पोस्ट में-आप क्रीम हैं..दूध भरता जायेगा..क्रीम उपर तैरती रहेगी!! वैसे एक बात है कि समीरलाल जी बहादुर आदमी हैं। डरते नहीं तारीफ़ करने में।अल्लेव लिंकिंग-क्रासलिंकिग तो रह ही गयी। लिकिंग करने की परंपरा इसलिये नहीं कि काफ़ी लोगों को इसके महत्व की जानकारी ही नहीं। हमी को नहीं है-खाली लगा लेते हैं।सबसे जरूरी और शनीचरी बात अंत में। आपने लिखा न! अंग्रेजी में लिखना हिन्दी की पूअर-कॉपी न हो जाये। और वह बदरंग लगेगा; सो अलग! आजकल कापियर बहुत अच्छे आ रहे हैं। एकदम डिट्टो कापी करते हैं। बदरंग लगेगा अगर मूलप्रति वैसी होगी। और इसी बात पर पेशे खिदमत एक शेर-साफ़ आइनों में चेहरे भी नजर आये हैं साफ़धुंधला चेहरा हो तो आईना भी धुंधला चाहिये।

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  5. ये बात कुछ अटपटी लग रही है कि अपने ब्लॉग पर हिंदू धर्म पर दोषारोपण करो तो ब्लॉग हिट हो जायेगा। अभी परसों ही सुरेश चिपलूणकर के ब्लॉग पर कुछ ईसी तरह का लेख था…..हांलाकि उसमे लिखी काफी बातों से मैं सहमत हूं कि जो लोग हिंदू धर्म के खिलाफ बोलते या लिखते हैं उन्हें मिडियॉकर के रूप मे आसानी से मान लिया जाता है औऱ उन्हे स्टूडियो या चैनल मे खूब बुलाया जाता है…पर फिर भी असहमति का पक्ष मेरी ओर से बना हुआ है कि सिर्फ हिंदू धर्म के खिलाफ लिखने भर से हिट होने के चांसेस हैं। वैसे ये पोस्ट पढ कर मैं अब कुछ असमंजस मे हूँ… क्योंकि अपनी आज की पोस्ट में करवा चौथ या नवरात्रि व्रत के नाम पर लोगों के द्वारा ऑफिस में नंगे पैर पहुँचने के मुद्दे पर लिखने जा रहा था कि तभी ये पोस्ट पढ ली। अब सोच रहा हूँ लिखूँ या न लिखूँ :)

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  6. इतने चिन्तन मंथन की क्या आवश्यक्ता आन पड़ी??आप त यूँ ही टॉप पर हैं, और कहाँ जाना चाहते हैं जी?आप क्रीम हैं..दूध भरता जायेगा..क्रीम उपर तैरती रहेगी!!अनेकों शुभकामनाऐं.

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