छोटी चोरी के बड़े नुकसान


सार्वजनिक सम्पत्ति बड़ा सॉफ्ट टार्गेट है – उपद्रवियों का भी और छुद्र चोरों का भी। मेरा संस्थान (रेलवे) उसका बड़ा शिकार होता है। पिछले महीने से मैं इस छुद्र चोरी का दुष्परिणाम एक प्रबन्धक के तौर पर भुगत रहा हूं।

रेलवे के सिगनल सिस्टम की संचार केबल ट्रैक के किनारे बिछी रहती है। जहां जमीन होती है, वहां वह पर्याप्त गहराई में गड़ी रहती है। पर जहां पुलिया होती है, वहां वह केबल पुल के किनारे पाइप में डली रहती है। केबल की यह पाइप रेल पटरी के समान्तर पुल से गुजरती है। जमीन में गड़ी केबल को चुराना मेहनत का काम है। लेकिन पुल पर से पाइप के छोर तोड़ कर बीच में से केबल नोच लेने की घटनायें रोज हो रही हैं। हर दिन १०-२० मीटर केबल चुरा ले रहे हैं लोग।

उस केबल से बहुत बड़ी आमदनी नहीं हो रही होगी चोरों को। कयास यही है कि दारू का पाउच या नशा करने की दैनिक खुराक के बराबर पा जाते होंगे वे। पर इस कृत्य से रेलवे को जो असुविधा हो रही है, वह बहुत भारी है। असुविधाजनक समय पर सिगनलिंग स्टाफ की गैंग भेजनी होती है – जो केबल फिर लगाये। इस काम में कम से कम २-३ घण्टे लग जाते हैं। तब तक पास के स्टेशनों के सिगनल फेल रहते हैं। सिगनल फेल तो सेफ मोड में होते हैं – अत: यातायात असुरक्षित तो नहीं होता पर बाधित अवश्य होता है।

परिणामस्वरूप ४-५ एक्सप्रेस गाड़ियां ३०-४० मिनट लेट हो जाती हैं। चेन रियेक्शन में प्रति दिन २५-३० मालगाड़ियां लगभग ३ घण्टे प्रतिगाड़ी खो देती हैं पूर्व-पश्चिम या उत्तर-दक्षिण के ट्रंक रूट पर। उस अवरोध को अगर पैसे की टर्म्स में लें तो प्रतिदिन १० लाख रुपये से अधिक का घाटा होता होगा। सब रेल उपभोक्ताओं को होने वाली असुविधा अलग। 

Theftयह है छोटी चोरी का नमूना।
चोरी गयी वाश बेसिन की पीतल की टोंटी

हजार दो हजार रुपये के केबल के तांबे की चोरी का खामियाजा देश १००० गुणा भुगतता है। और इस पूर्वांचल क्षेत्र में इस तरह की छोटी चोरी को न कोई सामाजिक कलंक माना जाता है, न कोई जन जागरण है उसके खिलाफ।

सार्वजनिक सुविधाओं का अपने आसपास जायजा लें तो यह छुद्र चोरी के प्रति सहिष्णुता व्यापक नजर आयेगी। सड़क के किनारे मुझे सार्वजनिक नल की कोई टोंटी नजर नहीं आती। सब निकाल कर पीतल या अन्य धातु के लिये बेच लेते हैं ये छोटे चोर। अत: जब पानी की सप्लाई होती है तो पानी सड़क पर बहता है। सड़क भी कमजोर हो कर खुदने लगती है। बस, हम इसे आम हालात मान कर चुपचाप जीते हैं। मजे की बात है अगर पता करें तो आम लोग ही बतायेंगे कि परिवेश में फलाने-फलाने चोर हैं। पर वे चोर भी ठाठ से रहते हैं समाज में।

नहीं मालुम कि क्या क्या हो सकता है ऐसे मामले में। पुलीस भी कितनी कारगर हो पाती है? पुलीस कार्रवाई से चोरों का कार्यक्षेत्र भर बदलता है; सफाया नहीं होता।    


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

33 thoughts on “छोटी चोरी के बड़े नुकसान

  1. जो संचार केबल के जरिये भेजा जा रहा है, उसका सम्प्रेषण वायरलेस तकनीक से करने में क्या हर्ज है? उपग्रह सेवा का प्रयोग कराइये गुरूजी। हवाईजहाजों की उड़ान तो ऐसे ही नियन्त्रित होती होगी?इन टुच्चे और पहुँचे हुए चोरों को रोकना किसी के वश में नहीं है। आखिर इनके भी कैरियर का सवाल है। बड़ी पंचायत तक पहुँचे हुए चोरों से किसी सुधार की उम्मीद करना बेमानी है। कम से कम चोरी रोकने के मामले में। यहाँ वो मौसेरे भाई वाली कहावत चरितार्थ होती है:)

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  2. ज्ञान जी, रेलवे में जो चोरी आपने बताया है, वो मेरे ख्याल से वह एक बानगी, एक नमूना भर है…!! रेल विभाग देश के समस्त सार्वजनिक उपक्रमों में सर्वाधिक बड़ा है और सभी विभागों में से सबसे ज्यादा सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान प्रतिवर्ष झेलता है क्योंकि भारत वर्ष में उसकी यह नियति बना दी गई है. ऐसा नहीं है, इसके लिए प्रयास भी किया गया है…रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स [RPF] और शासकीय रेल पुलिस [ GRP ] इसी हेतु तैनात [सुशोभित] हैं . किंतु पहले इनके बीच पहले कार्य क्षेत्र के झगड़े ने फ़िर कानून पर अधिकारिता के विवाद ने समन्वय और कार्य क्षम होने पर सदैव प्रश्नचिन्ह लगाया हुआ है. रेलवे की तरह बिजली विभाग भी अनेक प्रकार की चोरियां …ट्रांस्फोर्मेर, आयल, तार, केबल, खंभों आदि आदि…झेलता है. और उसके विरुद्ध वह अपनी संसाधन रहित सुरक्षा बल और राज्य के पुलिस बल के सहारे मोर्चा लड़ाए रहता है. यह मैंने इसलिए विशेष रूप से उल्लेखित किया क्योंकि लोग यह समझते हैं कि बिजली के करंट से ये चोर डर जायेंगे…जो कि पूरी तरह ग़लत है. ये सबसे अधिक बिजली विभाग का कबाड़ा हाई वोल्टेज पारेषण वाले तार एवम खम्भे चुरा कर ही करते हैं, वह भी चालू लाइन में. अब रही बात चोरों की, तो वो आदतन, मजबूरन, शौकिया और रोजगारन…. सभी प्रकार के होते हैं. एक आश्चर्य कि बात ये है कि इस गोरखधंधें में बड़े कबाडी, ठेकेदार और विभागीय कर्मचारी के अलावा सुरक्षा एजेन्सी के लोग भी अलग-अलग अनुपात में अपनी दखल रखते हैं. इसलिए कहते हैं, केवल ग्राहकी के लिए नहीं अपने देश के लिए भी जागो इंडिया जागो ….!!! .हा हा हा…!

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  3. वि‍श्‍वनाथ जी से सहमत। ट्रेन के टॉयलेट से शीशा, अन्‍य जगहों से बल्‍ब आदि‍ का भी चोरी हो जाना आम बात हो गई है।

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  4. मजे की बात है अगर पता करें तो आम लोग ही बतायेंगे कि परिवेश में फलाने-फलाने चोर हैं। पर वे चोर भी ठाठ से रहते हैं समाज में। बिल्कुल सही कहा आपने. एक मजेदार (?) बात बताता हूँ. एक ऐसे सज्जन को बहुत अच्छे से जानता हूँ जो एक बहुत अच्छी सॉफ्टवेर कंपनी के बहुत ऊंचे ओहदे पर हैं पर शौकिया तौर पर उनको बड़े बड़े होटल्स की चम्मच चुराने का शौक है. उनके घर पास अच्छा खासा कलेक्शन है चोरी की चम्मचों का..अब इसे क्या कहेंगे आप..

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  5. लिखा तो आपने बिलकुल सही है किन्‍तु इसका कोई निदान नहीं । यह समस्‍या तो स्‍थायी रूप से भुगतनी पडेगी – ‘दर्द का हद से गुजरना है दवा हो जाना’ की तरह ।

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  6. समीर जी अभी तो लोग तार ही चोरी करते है, फ़िर साथ मे आप का बोर्ड भी चोरी कर के ले जाये गे.यह चोरीयां तो बहुत पहले से होती आ रही है, अगर चोर पकडना है तो सब्से पहले कबाडियो के यहां छापे मारो सारा समान मिल जायेगा, फ़िर उसे पकड कर अच्छी सेवा की जाये ओर उस से पुछा जाये, बता कोन लोग तुझे यह समान बेचते है… आधी समस्या यही खत्म, चोर को पकड्ने से पहले चोर की मां को पकडो यनि जड को, माता जी को नही.बाकी हम सब मै जब तक जगुरुकता नही आती , तब तक ऎसा होता रहै गा,सब से अच्छा अलर्म लगा देना चाहिये, जब भी कोई इन्हे काट्ने की कोशिश करे आलर्म बजने लगे.

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  7. इस चोरी प्रकरण में अपने एक अनुभव को बांटना चाहुंगा जो मेरे ख्याल से लगभग पंद्रह -सोलह साल पहले घटित हुआ था, तब हमारे यहाँ पहले इलेक्ट्रीसीटी मीटर एक ऐल्युमिनियम के बॉक्स मे लगाये जाते थे, उस पर लगने वाला ढक्कन लगभग आधे किलो से भी ज्यादे का रहता था जिसकी की तब अच्छी खासी कीमत कबाड के तौर पर भी मिलती थी, एक दिन जब सभी लोगों की सुबह आँख खुली तो सबने देखा मिश्राजी के मीटर का ढक्कन गायब है, उन्हें बताने जा रहे थे तो देखा जांभोलकर साहब का भी मीटर का ढक्कन गुल है…और थोडी देर मे पता चला कि यादव, पांडे, पाचपुते, पात्रा…..सब का ढक्कन गायब है…….कम्बख्त चोरों ने अचानक ही समाज में सबको एक ही पायदान पर ला खडा किया, जो काम बडे-बडे संत महात्मा नहीं कर सके वह चोरों ने कर दिया……न जात-पात का भ्रम न मराठी-हिंदी या ओडिया का झगडा……मुझे तो याद नहीं कि कभी इस तरह किसी ने सर्वजन समाज का पहले कभी निर्माण किया हो…सब प्रभु की माया है :)

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