कल लिखने का मसाला नहीं है। क्या ठेलें गुरू? पर ये ठेलना क्या है। कुच्छो लिखो। कुछ लगा दो। एक ठो मोबाइल की या क्लिपार्ट की फोटो। वो भी न हो तो कुछ माइक्रो-मिनी-नैनो।
सन्तई ठेलो। आदर्श ठेलो। तुष्टीकरण ठेलो। हिन्दू आतंकवाद पे रुदन करो। पल्टी मारो तो गरियाओ इस्लाम की बर्बरता को। साम्यवाद-समाजवाद-बजारवाद-हेनवाद-तेनवाद। बस लिख दो।
कल चिठ्ठाचर्चा कौन कर रहा है जी? फुरसतिया लौटे कि नाहीं पहाड़ से? शिवकुमार मिसिर से हीहीही कर लो फोन पर। अपनी अण्टशण्टात्मक पोस्ट की बात कर लो। क्या पता एक आध लिंक दे ही दे छोटा भाई हमारी पोस्ट का। मसिजीवी कर रहे हों चिठ्ठा-चर्चा तो अपनी पोस्ट तो उभरती ही नहीं जी। पर भैया पोस्ट क मसलवइ न होये त कौन लिंक-हाइपर लिंक? कौन सुकुल और कौन मसिजीवी?
लोग गज भर लिख लेते हैं। यहां ३०० शब्द लिखने में फेंचकुर (मुंह में झाग) निकल रहा है। भरतललवा भी कोई चपन्त चलउआ नहीं बता रहा है नया ताजा। कित्ता जबरी लिखें। कट पेस्ट कर लिया तो चल पायेगा? देखें ताऊ की पोस्ट से ही कुछ उड़ा लिया जाये! विश्वनाथ जी भी कृपा कम कर रहे हैं आजकल। कौन से उदार टिप्पणी करने वाले पर लिख दिया जाये?
भैया ग्लैमराइजेशन का जमाना है। देखो तो वो दरजा चार पास आतंकवादी भी टापमटाप ग्लैमर युक्त हो गया है। फरीदकोट से फ्लोरिडा तक चर्चा है। अब न तो उसे फांसी हो सकती है न एनकाउण्टर। एक आध प्लेन हाइजैक कर लिया अलकायदियों ने, तो बाइज्जत बरी भी होना तय है। इस समय मीडिया की चर्चा के सारे लिंक-हाइपर लिंक का केन्द्र वही है। ब्लॉगजगत में भी कैसे वैसा ग्लेमर पाया जाये? पर इस ग्लैमराइजेशन के बारे में लिखने का सारा सिंगल टेण्डर आलोक पुराणिक के नाम डिसाइड हो गया है। उस पर लिख कर किसी व्यंगकार की रोजी-रोटी पर नजर गड़ाना हम जैसे सिद्धान्तवादी को शोभा थोड़े ही देगा?
चलो ठेलाई की लेंथ की पोस्ट तो बन गयी। अब पत्नी जी से परमीशन मांगे कि पोस्ट कर दें या अपनी मानसिक विपन्नता का प्रदर्शन न करते हुये कल का दिन खाली जाने दें? (वैसे भी दफ्तर में बहुत बिजी रहते हैं। उसी के नाम पर एक दिन की छुट्टी जायज बन जाती है ब्लॉगिंग से!) कल सनीचर की सुबह यह पोस्ट दिख जाये तो मानियेगा कि पत्नीजी से परमीशन मिल गयी अण्टशण्ट ठेलने की।
पर ओरीजिनल क्वेश्चन तो रह ही गया। कौन है इस चिरकुट ब्लॉग जगत का ओरीजिनल ठेलक? सेंस तो बहुत लिखते हैं; पर कौन था ओरीजिनल नॉनसेंसक?

ठेल ठेल के का भया ?????जो अब भी ठेलत जाय ???जब भी पुरा मौका पाये???आपन ठेलत पोस्ट पढाये?
LikeLike
आज तो बहुत अच्छा ठेल दिया है आपने |
LikeLike
जो मन में आए वह लिखे वही ओरिजनल ठेलक। जो चिंता करे ओरिजनल की वह ठेलने से चूके।
LikeLike
अलकायदियों …is a cute name :)let's send them to Alaknanda ..& अजित भाई का कवित्त तो ज़बरदस्त है ठेलई मौज मेँ करो तब,ठलई..सुस्ती मेँ करो तब और ठेलुआ सरकसी अँदाज़ मेँ होत है
LikeLike
पोस्ट ठेलन पर विषद लेखन। अजित जी ने दोहा कवित्त जोडकर पोस्ट को और रोचक बना दिया। वैसे समीरजी अपनी टिप्पणी में लिखते हैं कि शायद मेरी सोच को जंग खा गई है…..यानि कि भारी हो गई है। नहीं समझे :) अरे भई, जब लोहे पर जंग लगता है तो ऑक्सीकरण के कारण लोहे का वजन बढ जाता है, यानि समीरजी की जंग लगी सोच अब भारी हो गई है :):)
LikeLike
आपई आप है महाराज…जे भी खूब ठेली है आपनेठेलत ठेलत जग मुआ, ठलुआ भया न कोय।ढाई आखर ब्लाग का, पढ़े सो ठलुआ होय।
LikeLike
आज हमारी तो डर के मारे बोलती बंद है ! सारा दिन लट्ठ के साथ रहना है आज तो ! सो आपकी बात का जवाब तो फ़िर कभी देंगे ! वैसे हमको कैसे आईडिया मिलता है ये आप हमारी आज की पोस्ट से समझ जायेंगे ! हम दिन में १२ बजे से टिपणी देना शुरू करते हैं जो आज सुबह ६ बजे से शुरू हुए हैं ! क्या पता , आज दिन में छुट मिले की नही मिले ! :)
LikeLike
बहुत विचारा..मगर आपके अलावा कोई नाम उभरता ही नहीं.शायद मेरी सोच जंग खा गई है. कुछ प्रबंध करता हूँ.
LikeLike
साम्यवाद-समाजवाद-बजारवाद-हेनवादएक वाद छूट गया – ठेलमठेलवाद!
LikeLike
अगर सारा ब्लॉग जगत ही चिरकुट है तो ओरिजिनल ठेलक, नॉनसेंसक तो आप ही ठहरेंगे. वैसे यह मैं नहीं कह रहा, आपकी पोस्ट पढ़ते रहने वाला मेरा एक दोस्त कह रहा है. मैं आपके लिए ऐसे शब्द… ? गर जरूरी हो तो भी नहीं.
LikeLike