नीरज रोहिल्ला जिस तरह से एक मॉडल की फोटो चेंप टाइट स्पॉट में फंसे और उससे रिगल आउट (wriggle-out) हुये, वह देख मन गार्डन-गार्डन है! ब्लॉगिंग डिजास्टर मैनेजमेण्ट (आपदा-प्रबन्धन) मैन्युअल में निम्न नियम बनाये जा सकते हैं:
आपदा-प्रबन्धन नियम १: किसी नारी का फोटो बिना परमीशन के न लगायें।
आपदा-प्रबन्धन नियम २: अगर लगा चुके हैं तो बिना-शर्त सॉरी कहते हुये फोटो हटा लें।
आपदा-प्रबन्धन नियम ३: पर हटाने में पोस्ट का कचरा होने की संभावना है तो फोटो को बीफंकी से परिवर्धित-परिवर्तित कर प्रयोग करें।
बहुत बधाई नीरज। और बहुत स्थितप्रज्ञ व्यक्ति हैं आप! मैं उक्त “आपदा-प्रबन्धन नियम ३” को तो आपकी पोस्ट से ही सीख पाया।
बीफंकी का उदाहरण देखें – अगर ताऊ अपने आइकॉन का प्रयोग करने को मना करें तो उसकी बीफंकियत कर प्रयोग आप कर सकते हैं। और कोई फोटो-एडीटर इन्स्टॉल करने की जरूरत नहीं।
यह जरूर है कि बीफंकियत से फोटो का कार्टून में परिवर्तन कॉपीराइट कानून का उल्लंघन होगा या नहीं, यह तो जानकार लोग ही बता पायेंगे। पर रिगल आउट का एक तरीका तो सामने आया!
यूं तो बेहतर होगा कि नेट से ले कर चित्र लगाने की प्रवृत्ति पर हम संयम की लगाम लगायें।
प्रभात गोपाल झा जी ने ई-मेल कॉण्टेक्ट के लिये टिप्पणी की। मुझे लगा कि पाठकों के संदेश के लिये एक तरीका होना चाहिये, अगर आप अपना ई-मेल एड्रेस स्पैम से बचने के लिये जग जाहिर नहीं करते। लिहाजा मैने पोस्ट में हेडर से नीचे Kontactr का “संदेश भेजें” लिंक लगा दिया है, जिससे संदेश आदानप्रदान हो सकेगा। और झा जी को तो धन्यवाद दूंगा ही!
मैं टिप्पणी करने की महत्ता समझ रहा हूं और श्री समीर लाल की ब्लॉगजगत में सशक्तता का अहसास भी कस कर हो रहा है/होता रहा है।
वैसे, आप हिन्दी जगत के अन-सॉलिसिटेड ई-मेल यातायात से त्रस्त हैं कि नहीं? मैं तो उसके लिये स्पैम में डालने और डिलीट करने का मुक्त रूप से प्रयोग कर रहा हूं।
बम्बई के पिछले ट्रेन ब्लॉस्ट में इण्डियन मुजाहिदीन के लिये फलाने जी वकील बनने को तैयार हो जाते हैं। बेचारे फरीदकोट,पाकिस्तान के आतंकवादी अजमल कसाई को लीगल सहायता देने में अंतरात्मा आड़े आ रही है!
इण्टेलिजेंशिया को यह जवाब जरूर देना चाहिये कि पाकिस्तानी आतंकवादियों को दफनाने को जमीन न दी जायेगी और इण्डियन मुजाहिदीन के मामले उससे अलग ट्रीट किये जाते हैं। उपकुलपति बटालाहाउस के मामले में सारी लीगल सहायता देने को तत्पर हैं। यह जीभ में फॉर्क (fork – द्विशाख) क्यों है?

आपदा प्रबंधन कब से लागू हो रहा है?? वेसे ताऊ की फ़ोटो तो बहुत प्यारी लगती है, लेकिन इन तीनो मे ताऊ कोन´सा है???धन्यवाद
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कानूनी सहायता पाने का हक़ सभी को है कम से कम हमारा संविधान तो यही कहता है. चाहे वो कसाब कसाई ही क्यों न होवैसे जीभ में फोर्क की ज़ायज वजह है मुंबई के कसाई सबकी नजर के सामने गुनाह करते हुए पाये गए हैं और दूसरे अपना पराया भी तो कुछ होता है?
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बड़े दिनों बाद आपने कई सारी बातो पे ख़ास अपने स्टाइल में नजर दौडाई .पता नही आप पिक्चर देखते है या नही…कभी मौका लगे तो “ओये लकी ओये “देखियेगा ……वैसे समीर जी की सशक्तता में बड़ा हाथ उनकी लेखनी का है…टिप्पणी तो बहुत सारे लोग करते है
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विचार आपके अत्यन्त गंभीर हैं ,बेहतरीन पोस्ट.
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ज्यादा क्या कहूं, सुधीश पचौरी के भाषा संस्कार में लिखी इस प्रविष्टि को पढ़ कर आनंद आया . धन्यवाद .
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पाण्डेजी, दुर्गत से बचने के लिए भूमिगत होने की क्या ज़रूरत – उड़न तश्तरी है ना!
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“मैं टिप्पणी करने की महत्ता समझ रहा हूं और श्री समीर लाल की ब्लॉगजगत में सशक्तता का अहसास भी कस कर हो रहा है/होता रहा है।” वैसे टिप्पणी के मामले में आप समीर लाल जी से पीछे नहीं। मैं भी हिन्दी चिट्ठा जगत के अन-सॉलिसिटेड ई-मेल के यातायात से त्रस्त हूं। अधिकतर ईमेल उनके द्वारा लिखी चिट्ठी पढ कर टिप्पणी करने के अनुरोध में होती हैं या ऑर्कुट या इसी तरह की सुविधा में उनका मित्र बनने की बात होती है।
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सिर्फ़ पोस्ट पढ़कर क्लीयर नही हुआ तो लिंक खोल विवरण पढ़ा ……… अब सब किलियर है…………..
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नीरजजी का अनुभव पढ़कर मज़ा आ गया।यही है सुंदर यवती होने का लाभ।यदि उस लड़की के स्थान पर मैं खड़ा होता तो क्या नीरज हम पर यह कृपा करते?आप जब चाहें मेरी तसवीर बिना अनुमति लिए छाप सकते हैं।”बीफ़ंकियत” की आवश्यकता भी नहीं पढ़ेगी।मेरा चेहरा तो पहले से हीं “बीफ़ंकित” है।वैसे नीरज तो भाग्यशाली है।पढ़कर एक पुराना किस्सा याद कर रहा हूँ। एक बार मैंने भी एक ट्रेन में सफ़र करते समय एक अपरिचित सुंदर और आधुनिक युवती से बात करने की कोशिश की थी। आप ही के ब्लॉग पर यह दु:खभरी कहानी मैंने सुनाई थी लेकिन किस सन्दर्भ में, मुझे याद नहीं आ रही है।अजमल कसाई को कानूनी सहायता मिल जाएगी समय आने पर.वकील का नाम गुप्त रखा जाएगा आखरी समय तक.जिन लोगोंने इस कार्रवाई को आर्थिक सहायता और समर्थन प्रदान किया था वे अवश्य इसकी सहायता करेंगे गुमनाम रहकर। लाखों वकीलों में से जरूर कोई एक तो होगा जो एक मोटी रकम के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाएगा।राम जेठमालानी आजकल कहाँ हैं?
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हा हा!! हमारे रहते आपको भूमिगत होने की जरुरत नहीं. बात बिगड़ेगी तो हम हूँ न!!! :)
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