नीतिशतक मुझे मेरे एक मित्र ने दिया था। उनके पिताजी (श्री रविशकर) ने इसका अनुवाद अंग्रेजी में किया है, जिसे भारतीय विद्या भवन ने छापा है। मैं उस अनुवाद के दो पद हिन्दी अनुवाद में प्रस्तुत कर रहा हूं –
२: एक मूर्ख को सरलता से प्रसन्न किया जा सकता है। बुद्धिमान को प्रसन्न करना और भी आसान है। पर एक दम्भी को, जिसे थोड़ा ज्ञान है, ब्रह्मा भी प्रसन्न नहीं कर सकते।
४: कोई शायद रेत को मसल कर तेल निकाल सके; कोई मरीचिका से अपनी प्यास बुझा सके; अपनी यात्रा में शायद कोई खरगोश के सींग भी देख पाये; पर एक दम्भी मूर्ख को प्रसन्न कर पाना असंभव है।

पर एक दम्भी को, जिसे थोड़ा ज्ञान है, ब्रह्मा भी प्रसन्न नहीं कर सकते। बिलकुल सत्य वचन, बहुत सुंदर.धन्यवाद
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प्रशंसा किसे नहीं सुहाती ? ईश्वर भी प्रशंसा पसन्द करते हैं ।
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सुंदर मंथन।
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लोग शंकालु,जिज्ञासु और शिष्य तीन ही प्रवृत्ति के होते हैं,ऎसा शास्त्रों नें कहा है।जिज्ञासा शान्त की जा सकती है,शान्त हुई जिज्ञासा वाले को शिष्य भी बनाया जा सकता है किन्तु शंकालु की शंकाएँ अनन्त होती हैं।शंकालु के पास प्रश्न ही प्रश्न होते हैं,इसलिए भी क्योंकि वह समझता है कि उसे सब ज्ञात है,इसीलिए प्रश्न की पृष्ठ्भूमि में उपहास या छिन्द्रान्वेषण अधिक होता है। वस्तुतः ऎसे व्यक्ति दांभिक अहमन्यता से ग्रसित हो स्वयं को प्रश्नचिन्ह बना ड़ालते हैं और उत्तर से रहित जीवन क्लेषयुक्त ही रहता है।भर्थहरि के माध्यम से खरी खरी की खरी खरी पर सांकेतिक किन्तु शिष्ट खरी खरी का अनुपम उदाहरण प्रतीत्यमान हो रहा है!!हिन्दी में भर्तहरि के तीनों शतक वाराणासी के चौखम्भा प्रकाशन नें प्रकाशित किये हैं और सहजता से उपलब्ध हैं।
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वाह! :)इसका हिन्दी संस्करण उपलब्ध है क्या? यदि हाँ तो कृपया टाईटल और प्रकाशक का नाम बताएँ।और कृपया अंग्रेज़ी संस्करण का भी टाईटल बताएँ, मौका मिलते ही इसको खोजा जाएगा, संग्रहणीय किताब लग रही है! :)
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एक मूर्ख को सरलता से प्रसन्न किया जा सकता है। बुद्धिमान को प्रसन्न करना और भी आसान है। पर एक दम्भी को, जिसे थोड़ा ज्ञान है, ब्रह्मा भी प्रसन्न नहीं कर सकते।सत्य!!!!!!गुरुवर इसी तरह ग्यान देते रहिये!!!
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papa ji post to masst hai. iss ko samajana ma roji masi bahoot madad kari. unaho na hi bataya ki link ka aak aak example to hamara ghar ma hi hai. aagar aap ko bhi nahi samaja ma aay to mammy sa puchyaga.
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सत्य वचन !
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दंभी का ब्लॉग भी तो होगा ही… यदि उस पे उसके फेवर की टिप्पणी कर दी जाए तो प्रसन्न हो जाएगा.. परंतु फिर भी अरविंद जी का प्रश्न यथावत रहेगा.. कोई आख़िर ऐसे दम्भी को प्रसन्न करे ही क्यों ?
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अक्षरशः सत्य और जीवनोपयोगी.
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