मैं विफलता-सफलता की बात कर रहा था। सत्यम की वेब साइट, जो अब बड़ी कठिनाई से खुल रही थी (बहुत से झांकने का यत्न कर रहे होंगे), के मुख्य पन्ने पर बने विज्ञापन में एक छवि यूं है:
सफलता लक्ष्य/परिणाम पर सतत निगाह रखने का मसला है।
काश सत्यम ने यह किया होता।
सत्यम छाप काम बहुत सी कम्पनियां कर रही होंगी। और आस पास देखें तो बहुत से लोग व्यक्तिगत स्तर पर उस प्रकार के छद्म में लिप्त हैं। अन्तर केवल डिग्री या इण्टेंसिटी का है। मिडिल लेवल इण्टेंसिटी वाले “सत्यमाइज” होते हैं। बड़े पापी मार्केट लीडर हो जाते हैं। छोटे छद्म वालों को कोई नोटिस नहीं करता।
बाइबल की कथा अनुसार पतिता को पत्थर मारने को बहुत से तैयार हैं। पहला पत्थर वह मारे जो पाक-साफ हो!
सत्यम का शेयर ३९-४० रुपये पर बिक रहा है। खरीदने वाले तो हैं। सब पत्थर मार रहे हैं तो कौन खरीद रहा है?


और हाँ शेयर अगर 15 से 21 के बीच मिले तो थोड़ा थोड़ा करके ले लेना। लेकिन दो साल का इंतजार करने के लिए तैयार रहना।
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सत्यम का मामला, कोई पहला नही है, और आखिरी भी नही होगा। ये तो बस शुरुवात है, ग्लोबल मेल्टडाउन के शुरुवाती झटके, ये झटके कहाँ कहाँ तक जाएंगे, कहना मुश्किल है। एक राज की बात बता देता हूँ, थोड़े समय मे ही, लोग वापस गड्ढे मे अपना जमा पूँजी रखने मे ही भलाई समझेंगे। समझदारों के लिए इशारा ही काफी है।आज राजू भले ही अकेला दिखे, लेकिन वो अकेला नही है। कोई ना कोई तो आगे आएगा ही उसको बेगुनाह साबित कराने, फिर कोर्ट कचहरी, सीबीआई वगैरहा तो चलता ही रहता है। वैसे भी भारत में लोगों की यादाश्त बहुत खराब है। जल्द ही भूल जाएंगे ये सब। सत्यम के बाद राजू शिवम और सुंदरम भी करेगा, बस देखते जाइए।
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यही तो पूंजीवाद का चेहरा है। एक लाख शेयर खरीदने वाले आम लोग डूबते हैं तो एक आदमी अमीर होता है। राजू बेचारे ने बीस साल तक खुद मौज किया, इतनी बडी कंपनी खड़ी की। कमॆचारियों को भी कार्पोरेट गवर्नेंस के बेहतरीन उदाहरण के रूप में बेहतरीन वेतन दिया, मौज कराया। तमाम शेयर खरीद करने वालों को बगैर मेहनत के मौज कराया। कंपनी का विस्तार होता गया, औकात से ज्यादा कमॆचारियों को पैसा देना मुश्किल हो गया। गलत बैलेंस शीट दिखाकर मामला संभालने की कोशिश हुई और नतीजा यह निकला कि कंपनी ही बर्बाद? यह तो वही स्थिति है न भइये कि कर्ज लेकर गाड़ी खरीदो, मकान खरीदो- इस उम्मीद में कि कल पैसा होगा तो चुका देंगे। बाद में पता चला कि जितना कमाते थे, वह भी चला गया। गए तेल बेंचने।
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विश्वनाथ जी और आलोक पुराणिक जी से सहमत हैं. काफ़ी कुछ है जो अभी उजागर नहीं हुआ है. (होगा भी या नहीं?)काल भैरव जी ने अवतार ले लिया है. भाजपा के सपने टूट सकते हैं.
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अच्छा हुआ हम सत्यमाइज नही हुए… आपकी पोस्ट नये रंग ला रही है.. इसके बनाए रखिएगा…
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हम तो खैर मन रहे हैं की हमारा सत्यम में जॉब नही लगा था | अभी आगे आगे देखिये होता है क्या ? अभी उसके शेयर के दाम और घटने के आसार हैं….
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अंत में राजनीति का तड़का मजेदार रहा. सत्यम ने क्या किया बहुत कम जानते, मगर पत्थर मारने को तैयार है. सिद्धांतहीनता किसी भी क्षेत्र का सत्यानाश करती है. सत्यम की निगाहें तो सफलता पर थी, मार्ग गलत चुना…
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राजू भौत बदमाश निकला जी। राम नाम सत्यम हो लिया शेयरधारकों का। पता नहीं राजू ने क्यों किया ऐसा, बहुत था,उसके पास। मुझे लगता है कि अभी स्टोरी की कई परतें खुलना बाकी हैं। जमाये रहिये। सफलता विफलता बहुत ही रिलेटिव कंसेप्ट है। अब तो मेरा मानना यह है कि जब तक आदमी फुंक ना जाये, उसकी अस्थियां में गंगाजी में विलीन ना हो जायें, तब तक उसे सफल या विफल कहना जल्दबाजी है। कल के हीरो देखते देखते ही जीरो होण लाग रे हैं।
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Price Waterhouse Cooper जैसे auditor होते हुए इतना बडा घोटाला?दाल में जरूर कुछ काला है।मुझे लगता है पर्दाफाश अभी पूरा नहीं हुआ है।राजू दोषी जरूर है लेकिन वह अकेला नहीं हो सकता।मुझे संदेह है कि वह स्थानीय राजनीतिज्ञों से ज़बरदस्ती वसूली का शिकार बन गया है।मुझे यह भी संदेह है कि उसने अब तक अपना मुँह पूरा नहीं खोला है और उसे खोलने नहीं दिया जाएगा।उसकी जान को खतरा है।
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पिछले बीस साल में इसी तरह से धनकुबेर बनने वालों की एक बड़ी जमात है भारत में!
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