प्रभुजी, इत्ती योनियां पार करा कर मानुष तन दियो। प्रभुजी, अब मोहे भुनगा@ न करो!
प्रभुजी मोहे प्राइम-मिनिस्टर न बनायो, सांसदी/बिधायकी भी न दिलवायो, नोबल प्राइज क्या, जिल्ला स्तर का शाल-श्रीफल-सवा रुपया न मिल्यो। पर प्रभुजी, मोहे रोल-बैक फ्राम विकासवाद; अब भुनगा न करो!
प्रभुजी, कहो तो पोस्ट ठेलन बन्द करूं। कहो तो सेलिब्रिटी की खड़ताल बजाऊं। मेरो सारो स्तर-अस्तर छीन लो प्रभु; पर मोहे भुनगा न करो!
प्रभुजी किरपा करो। मोहे भुनगा न करो!
@ लवली कुमारी की “संचिका” ब्लॉग पर पोस्ट देखें:
हम बेचारे भुनगे टाईप ब्लोगर ..कभी स्तरीय लेखन कर ही नही सकते ..

हां जी, स्त्री-सशक्तिकरण का दौर है, भुनगी से तो डरना ही होगा:)
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किधर गायब हैं?सब ठीक ठाक?रोजाना खुराक न मिले तो गड़बड़ हो जाती है न।इसलिए लौटिए फटाफट इधर कू। ;)
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भुनगे का जिक्र करना दर्शाता है कि वे भुनगे से घबराए हुए हैं.
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भुनगा??और कीडे मारने स्प्रे!अजब-गजब![छोटी पोस्ट मगर चोट बड़ी!]
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ज्ञान जी, वह आलेख देख लिया!मुझे लगता है कि मजाक में भी हमको वैसा निराशावादी रूख अख्तियार नहीं करना चाहिये जैसा कि उस आलेख में दिखता है!!सस्नेह — शास्त्री
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सबसे बड़ी समस्या यही है. एबीसीडी सीखी नहीं कि अपने को ज्ञानियों का ठेकेदार समझने लगे. अभिव्यक्ति के इस मंच पर कुछ लोगों नेतागिरी करने लगते हैं. काम्प्लेक्स तो काम्प्लेक्स है सुपीरियारिटी हो या इनफीरियारिटी. ऐसे ऐसे खुर्राट ब्लॉगर हैं जिनका थोक प्रोडक्शन देख कर लगता है कि ये और कोई काम तो करते नहीं होंगे. नहाने- खाने की फुरसत भी नहीं होती होगी. लेकिन नहीं, इनमें से कई बड़ी जिम्मेदारी की सरकारी या गैरसरकारी नौकरी में हैं. कभी कभी शक होता है कि अपना काम ये खाक करते होंगे. ब्लॉगिंग में कमाल के और अपने काम में? वैसे मैंने पाया है कि जो उपदेश ज्यादा देता है वह कामचोर होता है. ब्लॉग जगत में आपको पॉटी भी मिलेगी और पकवान भी. अब ये आप पर है कि आप पॉटी में बुड़ जाएं और दुर्गंध फैलाते चलें या बच कर आगे बढ़ जाएं अपने मन पसंद पकवान का स्वाद लेने.
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