मेरी पत्नी जी की सरकारी नौकरी विषयक पोस्ट पर डा. मनोज मिश्र जी ने महाकवि चच्चा जी की अस्सी साल पुरानी पंक्तियां प्रस्तुत कीं टिप्पणी में –
देश बरे की बुताय पिया – हरषाय हिया तुम होहु दरोगा। (नायिका कहती है; देश जल कर राख हो जाये या बुझे; मेरा हृदय तो प्रियतम तब हर्षित होगा, जब तुम दरोगा बनोगे!)
हाय! क्या मारक पंक्तियां हैं! ए रब; यह जनम तो कण्डम होग्या। अगले जनम मैनू जरूर-जरूर दरोगा बनाना तुसी!
मैने मनोज जी से चिरौरी की है कि महाकवि चच्चा से विस्तृत परिचय करायें। वह अगले जन्म के लिये हमारे दरोगाई-संकल्प को पुष्ट करेगा।

ए रब; यह जनम तो कण्डम होग्या। अगले जनम मैनू जरूर-जरूर दरोगा बनाना तुसी! LOL ! Lovely to read your punjabi, a small amendment if I may, ‘Thanedar’ is appropriate word for punjabi culture :)
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अजी दरोगा लोगो को बेचारो को कितना लज्जित होना पडता है इन घटोले बाजो के सामाने , ओर फ़िर आप तो चेहरे से ही मासुम, भोले भाले लगते हो, ओर दरोगा बनाने के लिये तो रावाण जेसा थोवडा कहां से लाओगे? जिसे देख के गली का कुता भी दुबक जाये, आंखे ऎसी जेसे दो चिंगारियां… अजी आप तो हमारे ग्याण जी स्टेशन वाले ही बने रहे.. कभी कभी मुफ़्त मै रेलबे का पास तो मिल जायेगा, दरोगा बन गये तो वो कहावत तो सुनी होगी.. कि पुलेस से ना दोस्ती अच्छी ओर ना ही दुशमनी, लेकिन जनाब दुशमनी तो तब होगी जब कोई दोस्ती करेगां, तो भईया बीबी को समझाओ कि अगले क्या सात जन्मो मे भी कोई नेता, ओर दरोगा ना बने..राम राम जी की, वेसे आप की इच्छा, हमे तो लाभ ही होगा, रिशवत नही देनी पडेगी, बस आप का नाम लिया ओर निकल जायेगे पतली गली से, जो भी बनो पहले बता जरुर देना…ताकि हम भी जन्म उसी हिसाब से लेगे..
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बहुत बढ़िया। दरोगा भी तमाम होते हैं। प्रेमचंद ने भी लिखा था नमक का दरोगा। कहीं वैसा दरोगा हुए तो सब कुछ गंवाना पड़ेगा।
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आपने तो इन पंक्तियो की याद दिला दी।”दरोगा जीरोगा जी! देश केशक्ल मे हाथीबन्दूक के साथीतोन्दिल दरोगा जीतुम भर दुबले नही हुये गुलामी के हुकुमबरदारअन्धे कानून के तरफदारअफसर के सिपहसलारतुम भर आदमी नही हुए (उजास भरा मन का आँगन- बबन प्रसाद मिश्र, वैभव प्रकाशन, छत्तीसगढ)”
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अगले जन्म का तो राम मालिक….इस जन्म की रेलगाडी़ तो पहले ठेलते रहिए :)
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दरोगा होने के खतरे भी है.. बाकि .पल्लवी बेहतर टॉर्च डालेगी ….
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दरोगा बनने का मोह छोडें. और कितना प्रताडित होना है!
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दरोगा तो दरोगा, उस से ज्यादा रोब दरोगाइन का।वह दरोग की दरोगन जो है।
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कहीं का भी दरोगा हो जाईयेगा मगर छत्तीसगढ का नही।यंहा थोड़ा नही बहुत तक़्लिफ़ है,कंही बस्तर भेज दिये तो………………………………………………………॥
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मैं तो यही सोच सोच के भय को प्राप्त हो रहा हूँ कि तब आदरणीय रीता पाण्डेय जी दरोगायिन हो कर न जाने कैसे जोर जुल्म ढ़ायेंगीं ! हमें भी अपने कुनबे में रखियेगा ज्ञान जी !
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