गंगा सफाई – प्रचारतन्त्र की जरूरत

DSC01908 (Small) पिछली बार की तरह इस रविवार को भी बीस-बाइस लोग जुटे शिवकुटी घाट के सफाई कार्यक्रम में। इस बार अधिक व्यवस्थित कार्यक्रम हुआ। एक गढ्ढे में प्लास्टिक और अन्य कचरा डाल कर रेत से ढंका गया – आग लगाने की जरूरत उचित नहीं समझी गई। मिट्टी की मूर्तियां और पॉलीथीन की पन्नियां पुन: श्रद्धालु लोग उतने ही जोश में घाट पर फैंक गये थे। वह सब बीना और ठिकाने लगाया गया।

घाट में वृद्धों को नहाने में कठिनाई होती है – चूंकि गंगाजी की धारा इसी घाट पर कटान कर रही है। घाट काफी ऊर्ध्व हो गया है। उसे सीढ़ियां बना कर सही शक्ल दी गयी। कुछ बोरियों की जरूरत है, जिनमें बालू भर कर किनारे जमा किया जाये – कटान रोकने को। वह शायद अगले सप्ताहांत में हो।

घाट आने के रास्ते में भी एक उतराई है। उसपर भी सीढ़ियों के रूप में मिट्टी काटी गयी। उस मिट्टी में बालू कम, कंकर – पत्थर ज्यादा थे। लिहाजा फावड़े से खोदने में बहुत मेहनत लगी। तीन नौजवान – पंकज सिंह, नरेन्द्र मिश्र और चन्द्रकान्त त्रिपाठी ने बहुत मेहनत की। एक और त्रिपाठी जी भी हैं – जिनका नाम मैं नहीं पूछ पाया। वे भी जोर शोर से लगे थे। आद्याप्रसाद पाण्डेय तो मुख्य संयोजक के रूप में थे ही!

इस बार बालकगण अधिक थे और अधिक उत्साही थे। घूम घूम कर पन्नियां और मूर्तियां बटोरने में बहुत काम किया। एक युधिष्ठिर का कुकुर भी बराबर साथ लगा रहा।

कुछ सज्जन यूंही आये गये जा रहे थे और सीढ़ियां बनाने में व्यर्थ व्यवधान बन रहे थे। उनको जब मैने कड़ी जबान से अलग रास्ते से आने जाने को कहा तो वे ऐसे देखने लगे कि मैं उनके मौलिक अधिकारों में अतिक्रमण कर रहा होऊं!

निश्चय ही बेहतर काम हुआ इस बार।

मुझे व्यक्तिगत रूप में प्रचारतन्त्र से मोह नहीं है। पर लगता है कि लोगों और बच्चों का जोश बनाये रखने को वह चाहिये जरूर और पर्याप्त मात्रा में भी। जन जन को जोड़ने और सामुहिक काम करानें में जो प्रतिभा की दरकार होती है, वह मुझमें ईश्वरप्रदत्त नहीं है, लिहाजा मैं सहायता की आशा ही कर सकता हूं। मैं राजीव और मीडिया से जुड़े लोगों का आवाहन अवश्य करता हूं कि इस को यथासम्भव प्रचार दें। ब्लॉगर्स भी यह बखूबी कर सकते हैं। इस काम के लिये इस पोस्ट की कोई भी तस्वीर आप मुक्त हस्त से प्रयोग करें!

अगले रविवार देखते हैं क्या और कितना काम होता है। गैंती, खुरपी और बोरियों की जरूरत तो महसूस की ही जा रही है। व्यक्ति भी और जुड़ेंगे या नहीं – कहा नहीं जा सकता। इस बार अपेक्षा थी कि कुछ स्त्रियां जुड़ेंगी, पर मेरी पत्नीजी के अलावा अन्य कोई नहीं आईं।   

http://picasaweb.google.com/s/c/bin/slideshow.swf (आप कहेंगे मेरी थकान का क्या हुआ? वह याद ही न रही! :-) )


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

34 thoughts on “गंगा सफाई – प्रचारतन्त्र की जरूरत

  1. वाह ज्ञान दत्त जी. आपने काम दूसरे हफ्ते भी जारी रखा, इसके लिए बधाई. आशा है इससे लोगों के मन में गंगा सफाई के लिए थोडी जागृति आये.

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  2. बहुत खुशी की बात है कि कार्यक्रम नियमित होता दीख रहा है. अगर श्रद्धालुओं द्वारा अपना भक्ति-कार्यक्रम करने के बाद पालीथीन फेंकने के लिए कुछेक ड्रम आदि की व्यवस्था हो जाए तो हर हफ्ते पालीथीन बीनने का काम थोडा आसान हो जाएगा. धन्यवाद!

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  3. ज्ञानदत्त जी, सिर्फ सफाई से कुछ नहीं होने वाला। जब तक गंगा को गंदा करने वाली मानसिकता और परम्पराएं नहीं बदली जातीं, वह इसी तरह गंदी होती रहेगी।——————और अब दो स्क्रीन वाले लैपटॉप।एक आसान सी पहेली-बूझ सकें तो बूझें।

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  4. प्रचारतंत्र तो स्वतः शामिल हो जाएगा. जब युद्धिष्ठिर के कुकुर तक आ गए तो फिर सब होता जाएगा !

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  5. मैं तो अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर लोग आते गए कारवां बनता गया …शुभ हो …!!

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  6. आप जैसे लोगों से प्रेरणा लेनी चाहिए विभिन्न समस्याओं से जूझते उन समूहों को जो सिर्फ ज़बानी पीड़ा व्यक्त करते हैं, यह भूलते हुए कि दो हाथ, दो पैर और दिमाग़ उनके पास भी है। रही साधनों की बात तो वह तो जुटाया जा सकता है। इलाहाबाद में वक्त नहीं था। इच्छा थी कि वह स्थान देखूं जहां से आपको ब्लागिंग का रॉ मटिरियल मिलता है।

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  7. मेरे लिए आपके चिट्ठे से ज्यादा प्रिय आपका सफाई काम हो गया है. बधाई व शुभकामनाएं.अखबार इस तरह के सफाई या अन्य अभियानों के बारे में छापते तो हैं. आप सम्पादक के नाम पत्र भी लिख सकते है, जिसमें बालकों द्वारा किये जा रहे सहयोग के लिए प्रसंशा लिख सकते है.

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  8. आपसे सहमत हूँ प्रचार स्वयंसेवकों का उत्साह बढ़ाएगा।मेरे विचार से आप इस अभियान एवं अपने दल को एक उपयुक्त नाम दें। सेवा के वक्त कार्यस्थल पर दल एवं अभियान के नाम का झंडा लगाएँ।सही प्रचार होगा तो और लोग भी जुड़ने के लिए प्रेरित होंगे तथा अन्य लोग भी अपने क्षेत्रों में अभियान चलाने के लिए प्रेरित होंगे।

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