मैने इक्कीस फरवरी’२०१० को लिखा था :
गंगा सफाई का एक सरकारी प्रयास देखने में आया। वैतरणी नाला, जो शिवकुटी-गोविन्दपुरी का जल-मल गंगा में ले जाता है, पर एक जाली लगाई गई है। यह ठोस पदार्थ, पॉलीथीन और प्लॉस्टिक आदि गंगा में जाने से रोकेगी।
अगर यह कई जगह किया गया है तो निश्चय ही काफी कचरा गंगाजी में जाने से रुकेगा।
आज देखा कि सरकार ने मात्र जाली लगा कर अपने कर्तव्य की इति कर ली थी। जाली के पास इकठ्ठा हो रहे कचरे की सफाई का अगर कोई इन्तजाम किया था, तो वह काम नहीं कर रहा। अब पानी इतना ज्यादा रुक गया है जाली के पीछे कि वह जाली से कगरियाकर निर्बाध बहने लगा है। अर्थात पॉलीथीन और अन्य ठोस पदार्थ सीधे गंगा में जा सकेंगे।
ढाक के कितने पात होते हैं? तीन पात!

हमने पहली पोस्ट पर भी कहा था –
“HIMANSHU MOHAN – ठोस कचरे को रोकने का ठोस उपाय-सस्ता, टिकाऊ और आसान। सरकारी।
ऐसी कई जालियाँ समाज को भी लगानी चाहिए, न केवल गंगा के लिए, बल्कि सांस्कृतिक प्रदूषण की रोकथाम के लिए भी।EditFeb 21”
:)
तब समझते नहीं थे ठीक से न!(जैसे अब समझते हैं?) सो बज़ पर ही कमेण्ट दे दिया करते थे और सोचते थे कि पहुँच गया, जैसे जहाँ मन आए जल चढ़ा के समझते हैं शंकर जी को सीधे पहुँचा…
सो अब देखते हैं तो लगता है कि समाज के किए बिना कुछ स्थायी नहीं हो सकता; दूसरे सांस्कृतिक प्रदूषण भी ऐसे ही जाली से बगलिया कर धँसा चला आता है; और तीसरे खुशी की बात है कि अब तक (जब तक भी हो) तो चला न जाली का प्रभाव! और जाली चोरी नहीं हुई किसी स्मैकिए द्वारा-ये कोई छोटी बात है?
बाक़ी ढाक में तीन भी बचे रहें पात तो कुछ तो बचेगा! ढाक वहाँ भी होता है जहाँ दूर-दूर तक कुछ नहीं होता और यह एक बहुत बड़ा वानस्पतिक सहारा है जैव जगत के लिए।
LikeLike
और जाली चोरी नहीं हुई किसी स्मैकिए द्वारा-ये कोई छोटी बात है?
हां, यह तो गंगा माई की कृपा है!
LikeLike
गंगा माई सब का इंतज़ाम देखती हैं …. स्मैकिये की भी
LikeLike
मेरे कुछ कह देने से थोड़े न सरकार व्यवस्था कर देगी :)
सरकार और व्यवस्था को यहाँ गरियाने से कुछ नहीं होगा…. इसलिए हम कुछों नहीं कहेंगे. ऐसी व्यवस्था हर जगह दिख जाती है. आपने देखा यही बहुत है… झूठ क्यों बोलें हम तो इग्नोर कर देते हैं.
LikeLike
सरकार और व्यवस्था को यहाँ गरियाने से कुछ नहीं होगा….
बिल्कुल। असल में पहली पोस्ट और यह फॉलो-अप सरकार की प्रशंसा या गरियाने में नहीं, मात्र परिवेश की रिपोर्टिंग में है!
सरकार में हूं और जानता हूं कि व्यवस्था में जंग कैसे लगता है! :)
मोटीवेशन बहुत जटिल विषय है सरकारी क्षेत्र में।
LikeLike
ठहराव अधिक हो तो कगरियाकर बहना…इस विशेषता पर खयाल कर रहा हूँ !
मजेदार बात है यह कुछ दूसरे मामलों में !
LikeLike
ओह, अन्य कोण से सोचा न था! पर सोचना है मजेदार।
LikeLike
देखिये, हम कित्ते होशियार हैं, आपकी पहले वाली पोस्ट से पता लगा लिया था कि आप गोविन्दपुरी के आस-पास की फोटो खींचे हैं. ये इलाका पिछले कुछ दिनों में तेजी से विकसित हुआ है और अब प्रदूषण फैलाने में अल्लापुर, झूंसी वगैरह की बराबरी करने लगा है. जाली लगाना तो एक उपाय हो सकता है, पर बाढ़ के समय क्या होगा? वैसे जब ये सिस्टम ऐसे ही नहीं काम कर रहा है, तो बाढ़ के दिनों की बात करना बेकार है.
हमारे देश में कई सरकारी योजनायें इसीलिये बेमानी हो जाती हैं कि उनकी निगरानी की व्यव्स्था ठीक नहीं है. सब कुछ राम भरोसे… !
LikeLike
देखिये, हम कित्ते होशियार हैं > हमें इस पर कोई शक ही न था! :)
LikeLike
जनता जागरूक होंकर कुछ कर दे तो कर दे सरकार के बस की तो नहीं है..
वैसे ब्लोगर और वर्डप्रेस में कंटेंट रिप्लिकेट हो रहा है.. मिरर ब्लोग्स को गूगल पेनलाईज भी कर सकता है.. सलाह यही है कि एक को बंद कर दिया जाए या फिर दोनों पर अलग पोस्ट लायी जाए..
LikeLike
सलाह यही है कि एक को बंद कर दिया जाए या फिर दोनों पर अलग पोस्ट लायी जाए..
सलाह के लिये धन्यवाद। आप सही कह रहे हैं। इस पर ध्यान देता हूं।
LikeLike
मेरे हिसाब से तो वर्डप्रेस पर ही रहना चाहिए आपको..
LikeLike
दुविधा में हूं।
LikeLike
पाण्डेय जी … मैंने प्रयोग के तौर पर पोस्टरस से होते हुए वर्ड प्रेस, ब्लोगर, लाइव जर्नल, टाइप पैड, फेसबुक, ट्विटर, आदि पर एक साथ पोस्ट करता हूँ… लेकिन द्विविधा में रहता हूँ कि किसे अपनाऊं किसे छोडूं … फिलहाल खेला सब पर चालू है :)
LikeLike
एक मुख्य ब्लॉग-खम्भा रहे जो आपकी पहचान बताता हो। मैं तो इसी विचार पर चला हूं। पोस्ट करने में नियमिता रहे और रहे संवाद। यही ब्लॉगरी है मेरे हिसाब से।
LikeLike
कमाल है आज भी नाला उसी जाली से होकर गुजर रहा है . हमारे यहा एक नदी पर पुल बना जब तक पुल बन कर तैयार हुआ तब तक नदी ने अपना रास्ता बदल दिया . आज भी बडा पुल रेत मे खडा है और नदी बह रही है पडोस मे
LikeLike
:)
LikeLike
कभी कभी सोचता हू कि एक सोफ़्टवेयर डिलीवरी मोडल की तरह सरकार को भी सपोर्ट सिस्टम प्रोवाइड करना चाहिये… जाने ऐसे न जाने कितने काम सिर्फ़ काम खत्म किये जाने की दृष्टि से किये जाते है.. डिलीवरी के बाद (नाला बन जाने के बाद भी) कम से कम कुछ साल तक तो सपोर्ट देना चाहिये.. हो सकता है प्रोसेस के बारे मे सोचते हुये जो कुछ जो छूट गया हो वो बाद मे समझ मे आ जाय…
पता नही, ऐसी चीज़े और सैड ही करती है.. :(
LikeLike
मेरे विचार से सपोर्ट सिस्टम होगा जरूर। काम नहीं कर रहा। :(
LikeLike
:(
LikeLike
isi karan se to desh ki nadiya aaj bhi bat se bahtar hoti ja rahi he
LikeLike
हां, एक कदम आगे और डेढ़ कदम पीछे चलते हैं हम!
LikeLike
आपकी सेना को लगाईये…वो सब कहाँ गये सफाई अभियान में हिस्सा लेने वाले??
LikeLike
ओह, वे कनाडे से आदेश का इन्तजार कर रहे हैं। आप जरा पत्र लिख दें!
LikeLike
जो गंगा मिलन की आस लिए जा रहा है उसे क्या रोक सकेंगे। आस लगाने के पहले ही कोई इंतजाम हो तो कोई बात बने। हमारी तो आदत है। शिवजी का चबूतरा बना कै पुन्न कमा लिया। पीछे सब कुछ बकरियों के हवाले।
LikeLike
बहुत सही! :(
LikeLike
मगर हरियाली जो बढ़ी है – आप “ग्रीन अर्थ” के हिमायती बन कर सोचिए…
अगर यह नाला किसी तरह सिंचाई के काम लाया जा सके… ज़िग-ज़ैग घुमाव देकर, ठोस कचरे को स्वत: अटकाता हुआ?
LikeLike
अर्जुन प्रसाद पटेल इसी नाले से सब्जियां उगा रहे हैं!
LikeLike