मेरे मस्तिष्क में दायीं ओर सूजन होने के कारण बायें हाथ में शैथिल्य है। उसके चलते इस ब्लॉग पर गतिविधि २५ मई से नहीं हो पा रही, यद्यपि मन की हलचल यथावत है। अत: सम्भवत: १५-२० जून तक गतिविधि नहीं कर पाऊंगा। मुझे खेद है।
ब्लॉग लिखे जा रहे हैं, पढ़े नहीं जा रहे। पठनीय भी पढ़े नहीं जा रहे। जोर टिप्पणियों पर है। जिनके लिये पोस्ट ब्राउज करना भर पर्याप्त है, पढ़ने की जरूरत नहीं। कम से कम समय में अधिक से अधिक टिप्पणियां – यही ट्रेण्ड बन गया है।
यह चिठेरा भी जानता है और टिपेरा भी। पर चूंकि ब्लॉग सोशल नेटवर्किंग का बढ़िया रोल अदा कर रहे हैं, यह पक्ष मजे में नजर अन्दाज हो रहा है। चिठ्ठाचर्चा लोगों को कितना पढ़ने को उत्प्रेरित कर रहा है – यह भी देखा जाना चाहिये। चर्चाकार, मेहनत बहुत करते हैं पोस्टें पढ़ने में और लोगों को पढ़ने की ओर प्रेरित करने में। निश्चय ही। पर लोग उसमें से मात्र अपनी पोस्ट की चर्चा का द्वीप ढूंढ़ते हैं। वहां से अन्य के लिंक क्लिक कर ब्लॉग पर जाने का चलन बढ़ा नहीं हैं।
मुझे अपनी एक पुरानी पोस्ट पर आलोक पुराणिक की टिप्पणी याद आती है जो कल मैने अचानक फिर से देखी –
नयी पीढ़ी भौत अपने टाइम को लेकर कास्ट-इफेक्टिव है जी। काफी हाऊस में टाइम नहीं गलाती, सो वहां फेडआऊट सा सीन ही दिखता है। काफी हाऊस कल्चर फंडामेंटली बदल गया है, बहस-मुबाहसे के मसले और जरुरतें बदल गयी हैं। साहित्यिक चर्चाएं बदल गयी हैं।
आपने अच्छा लिखा,बुरा लिखा, ये मसला नहीं है। मसला ये है कि आप हमारे गिरोह में हैं या नहीं। अगर हैं, तो फिर आपको पढ़ने की क्या जरुरत है,आप बेस्ट हैं। और अगर हमारे गिरोह में नहीं हैं, तो फिर आपको पढ़ने की क्या जरुरत है?
सो, आइदर वे, पढ़ने की जरूरत नहीं है। साहित्य में यह हाल है। शोध प्रबन्ध में भी। और हिन्दी ब्लॉगरी में भी। आप गिरोह में हैं तो भी और नहीं हैं तो भी!
उनके पूरे कथन में मायूसी और तिक्तता भर गई थी। “क्या बताऊं, नया नया ब्लॉग खोला था। सजाने संवारने में यह गड्डी निवेश करता। पर जैसी कानून-व्यवस्था की दशा है, उसके देखते लगता है, ब्लॉग बन्द करना पड़ेगा।”
“पर आप पढ़ कर टिप्पणियां क्यों नहीं कर देते? उसमें खर्चा कुछ नहीं होगा।” – मैने कहा।
लगभग खा जाने की मुद्रा से उन्होने मुझे देखा। “देखो सर जी, ज्यादा अक्कल न हो तो बोला मत करो। पढ़ कर टिप्पणी करने का टाइम होता तो एटीएम से टिप्पणियों की गड्डी निकालने जाता मैं?”
शम्स के ब्लॉग के थ्रेडेड कमेण्ट व्यवस्था को ले कर फिर कुछ परिवर्तन किया है। इसका प्रयोग मैं प्रत्युत्तर देने में करूंगा। आप सामान्य तरह से टिप्पणी कर सकते हैं! इस जुगाड़ को खोजने का काम किया था श्री पंकज उपाध्याय ने।

चलिए ई सब तो ठीक है …..सीधा सा सवाल हमारा भी !"आप हमारे गिरोह में हैं कि नहीं " ?@टिप्पणी की व्यवस्था तो बहुत बढ़िया लग रही है | आई लाइक इट !
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विचारणीय प्रस्तुती जिसपर हम सभी को सार्थकता से सोचना जरूर चाहिए /
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@1997154491119708892.0तकनीकी समस्या है। स्थूलकाय छिनैती कर भाग नहीं सकता! :)
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पठन तो आवश्यक है, ये तो लिखने के लिए भी एक चारे का काम करता है, जितना ज्यादा पठन उतने ही अच्छे लेखक आप हो सकते है. टिपण्णी पाना और सस्ती लोकप्रियता हासिल करने से पानी के बुलबले तो बन सकते है पर नदी का प्रवाह नहीं. हाँ टिपण्णी में चर्चा हो और फीडबैक हो तो टिपण्णी मेरे लिए शिरोधार्य है.
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टिप्पणियों वाला ATM? पतला सा आदमीं?भगवान का शुक्र है आपने शारीरिक लक्षणों का वर्णन करने में कंजूसी की नहीं तो एक और हंगामा हो जाता.
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मिनी कथा ने बहुत कहा ! टिप्पणियाँ देखने आता रहूँगा इस पोस्ट की !
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@2378683806269224398.0बेचारे बैंक – नहीं जानते कि गलत जगह भेज रहे हैं। आप उन्हे आगह तो कर दें! :)
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ब्लॉग पढ़े नहीं जा रहे इस बात से मैं सहमत नहीं |ब्लॉग पढ़े जा रहे है , हाँ यह जरुर है कि ब्लॉग ब्लोगर्स द्वारा कम पढ़े जा रहे है जो ब्लॉग पोस्ट ब्लोगर्स द्वारा ज्यादा पढ़ी जाती है टिप्पणियाँ उसी पर ज्यादा आती है |जो पाठक गूगल या दुसरे सर्च इंजन से ब्लॉग कंटेंट तलाश करता हुआ आता है वह अपनी रूचि का मसाला मिलने पर ब्लॉग को पढने का पूरा फायदा उठाता है |मैंने ज्ञान दर्पण पर पिछली पोस्ट १५ मई को लिखी थी , यदि सिर्फ ब्लोगर ही मेरे पाठक होते तो शायद १६ मई से आजतक ज्ञान दर्पण पर एक भी पाठक नहीं आता क्योंकि ब्लोगर तो सिर्फ उसी दिन आते है जिस दिन पोस्ट ब्लोग्वानी व चिट्ठाजगत पर प्रकाशित होती है जबकि १६ मई से अब तक ज्ञान दर्पण पर १०८३ पाठक आ चुके है और उन्होंने २८०० पेज पढ़ें है पर टिप्पणी एक भी नहीं | इससे साफ़ जाहिर है ब्लॉग तो खूब पढ़े जा रहे है पर पाठक सिर्फ पढता है वह टिप्पणी वाली ओपचारिकता में नहीं पड़ता जबकि ब्लोगर कभी ब्लॉग पर आ भी गए तो वे सरसरी तौर पर पोस्ट पढ़कर टिप्पणी रूपी रस्म पूरी कर चलते बनते है ( मैं भी कई बार एसा ही करता हूँ )ब्लॉग पर लिखे जाने वाले कंटेंट यदि पाठकों को ध्यान में रखकर लिखे जाये तो पाठक गूगल सर्च करते हुए जरुर आयेंगे | मैं तो ब्लोगर्स की बजाय पाठको को आकर्षित करने का टार्गेट लेकर लिखने की कोशिश करता हूँ |
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हम तो एटीएम कार्ड से ही डरते हैं, आज तक लिया ही नहीं।
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@5583834664943060301.0यह टिप्पणी देख तो पोस्ट डिलीट कर टिप्पणी रखने का मन हो रहा है!
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