नयी सुबह

 

सूर्योदय

हनुमान जी अपने मन्दिर में ही थे। लगता है देर रात लखनऊ से लौट आये होंगे पसीजर से। लखनऊ जरूर गये होंगे फैसला सुनने। लौटे पसीजर से ही होंगे; बस में तो कण्डक्टर बिना टिकट बैठने नहीं देता न!

सूर्जोदय हो रहा था। पहले गंगा के पानी पर धूमिल फिर क्या गजब चटक लाल। एक नये तरह का सवेरा! बड़ी देर टकटकी बांध देखते रहे हम।

जूतिया के व्रत का नहान। पर गंगाजी में इतना ज्यादा पानी आ गया है कि अच्छों अच्छों को पसीना आ जाये पानी में हिलने में। लिहाजा एक दो औरतें ही दिखीं। पण्डाजी की दुकान चमक न पा रही थी।

मैने जोर से सांस भरी – आज नई सी गन्ध है जी। नया सा सवेरा।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

24 thoughts on “नयी सुबह

  1. शायद ऐसी ही किसी सुबह के लिये कवि दिनेश कुमार शुक्ल की किसी कविता का एक अंश है-पंखुरी-दर-पंखुरी दिन खुल रहा हैसमय की गति मंद करता हुआजैसे पक रहा हो, दाल पर फलघुमडता हो रागकोई कंठ बस अब फूटने को है.

    Like

  2. लगता है हनुमान जी नाराज़ होकर पैसिंजर से बिना टिकट आये हैं, निराशा में टिकट कटवाना भूल गए होंगें.निराशा इस बात की कि उनके राम लला को जन्म स्थान तो मिल गया, पर उनकी अर्धांगनी कि रसोई किसी और कि हो गयी……, लव-कुश के खेलने का स्थान भी किसी और का हो गया, अब कहाँ पकाएं कहाँ खेले………सुप्रभात……चन्द्र मोहन गुप्त

    Like

  3. पसीजर से…. तो पहाड कहां रखा होगा हनुमान जी ने? ओर क्या उडना भुल गये?शायद बुढ्ढे हो गये होंगे जी

    Like

आपकी टिप्पणी के लिये खांचा:

Discover more from मानसिक हलचल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Design a site like this with WordPress.com
Get started