हनुमान जी अपने मन्दिर में ही थे। लगता है देर रात लखनऊ से लौट आये होंगे पसीजर से। लखनऊ जरूर गये होंगे फैसला सुनने। लौटे पसीजर से ही होंगे; बस में तो कण्डक्टर बिना टिकट बैठने नहीं देता न!
सूर्जोदय हो रहा था। पहले गंगा के पानी पर धूमिल फिर क्या गजब चटक लाल। एक नये तरह का सवेरा! बड़ी देर टकटकी बांध देखते रहे हम।
जूतिया के व्रत का नहान। पर गंगाजी में इतना ज्यादा पानी आ गया है कि अच्छों अच्छों को पसीना आ जाये पानी में हिलने में। लिहाजा एक दो औरतें ही दिखीं। पण्डाजी की दुकान चमक न पा रही थी।
मैने जोर से सांस भरी – आज नई सी गन्ध है जी। नया सा सवेरा।

सचमुच ही यह अनुपम प्रभात है.
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अच्छा है! क्या? सब कुछ नहीं तो बहुत कुछ तो है ही अच्छा!
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हनुमान जी को पसिंजर की जरूरत नहीं, वे तो मन की गति से चलते हैं। पर सवेरा वाकई नया है।
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अपने आराध्य की सेवा का व्रत जो लिया है, जाना तो पड़ेगा ही निर्णय सुनने। कल ट्रेनें खाली रही हैं हर जगह, बड़े आराम से आये होंगे सोते सोते, निश्चिन्त होकर। साठ साल की प्रतीक्षा की थकान है, अभी सोने दें बजरंग बली को।
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मलिकाइन जिउतिया व्रत हैं। आप ने इस व्रत को याद किया है तो यह लिंक दे रहा हूँ: http://girijeshrao.blogspot.com/2009/06/1_09.htmlहनुमान जी को अभी आराम करने दीजिए। उन्हें दूर तक जाना है। पैसेन्जर नहीं मेट्रो स्टेशन की ए सी गाड़ियों में धक्के खाना है। आखिर में लौट के बुद्धू घर को आए की तर्ज़ पर सरजू के पानी में लाली के साथ साथ गन्दगी भी निहारना है। जय राम जी की।
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लोगों ने जैसा संयम दिखाया है, लगता है वाकई नया सा सवेरा…
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सचमुच!जय राम जी की!
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शुभ प्रभात. हम तक भी यह गन्ध पहुंच रही है.
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नई गंध है जी.तड़के ही आँख खुल गयी. लेटे-लेटे क्या करते? उठ गए. पानी भरा. कपडे धोये. नहाया. दिया लगाया.फिर ये पोस्ट पढी.दिन की बढ़िया शुरुआत.'जूतिया के व्रत का नहान'. इसपर तो पोस्ट की गुंजाइश है जी.
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शुभ प्रभात! जय राम जी की!
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