हमने पढ़ा है कि फैण्टम नामक मशहूर कामिक्स का चरित्र बेंगाला नामक अफ्रीकी देश (नक्शे पर नहीं मिलेगा, यह मिथकीय देश है) का है। पर हमारे गोपालकृष्ण विश्वनाथ जी को एक अन्य फैण्टम के दर्शन उनके कैलीफोर्निया प्रवास में हुये। मैने उनसे नहीं पूछा कि उन्हे डायना पॉमर भी दिखी या नहीं। आप पूछने के लिये स्वतंत्र हैं!
आप उनकी इस अतिथि पोस्ट में उनके संस्मरणों की पांचवीं किश्त पढ़ें:
अब कुछ निजी अनुभवों के बारे में जानकारी दे दूँ।
सोचा इस बार कम लिखूँगा और चित्रों को बोलने दूँगा।
केप्शन : यह है पडोस की एक बहुत ही सुन्दर बिल्ली जिससे मैंने बार बार दोस्ती करने की कोशिश की पर इस घमण्डी बिल्ली ने हर बार मेरा दोस्ती का हाथ ठुकरा दिया। कोई बात नहीं। कम से कम एक दिन तसवीर लेने की अनुमति दे दी उसने।
केप्शन: अगर पहली बार सफलता न मिले तो क्या, फिर यत्न करें! (If at first you don’t succeed, try again.)
कुछ दिन बाद मैंने दूसरी बिल्ली से संपर्क करने की कोशिश की। इस बार सफ़ल हुआ।
यह काली बिल्ली (जिसका नाम था फेण्टम – Phantom) रोज एक ही समय हमारे घर के पीछे के बगीचे में आती थी और मुझसे दोस्ती करने के लिए राजी हुई।
केप्शन: हम इससे खेलने लगे थे। एक पुराना टेनिस का गेंद मिल गया जो बहुत काम आया।
केप्शन: एक दिन बिन बुलाए, वह घर के अन्दर घुस गई। पत्नी को बिल्ली से कोई लगाव नहीं है। उसने बिल्ली को रोकने की कोशिश की। पर बिल्ली (बिल्ले) ने कह दिया, मैं आपसे मिलने नहीं आया। हम तो विश्वनाथजी के मेहमान हैं। :-)
केप्शन : बस पूरे आत्मविश्वास के साथ हमारे ड्राइंग रूम के सोफ़े की नीचे लेट गई।
पत्नी ने मुझे आवाज देकर आदेश दिया, तुम्हारे इस दोस्त को बाहर ले जाओ।
केप्शन : हम कहाँ मानते पत्नी की बात? बस उठा लिया उसे और गोदी में रखकर पुचकारने लगे।
नाम था उसका वेताल (फेण्टम – Phantom)। कैसे पता चला? उसके गले में पट्टी बाँधी हुई थी और उसमें उसका नाम, मालिक का पता और फ़ोन नम्बर भी लिखा था। बडे गर्व के साथ इस चित्र को बेटी को दिखाना चाहा। उसने चेतावनी दी:
खबरदार जो उसे कुछ खिलाया। यदि बिल्ली किसी कारण बीमार हो जाती है या उसे चोट आती है तो पडोसी हम पर मुकदमा दायर कर देंगे! यह भारत नहीं है, अमरीका है!
क्या हुआ यदि अमरीकी लोग मुझसे दोस्ती करने में हिचकते थे? कम से कम वहाँ की बिल्लियाँ ऐसी नहीं हैं। ऐसा क्यों कह रहा हूँ? मेरे कुछ कटु अनुभवों के बारे में भी आपको बता दूँ।
पिछले दस साल से मेरा नाम, करीब ४ हज़ार अमरीकी लोगों को पता है। यह इसलिए के मैं कुछ professional yahoo groups का बहुत ही सक्रिय सदस्य रहा हूँ। और यह सभी लोग मेरे नाम, निवास-स्थान, आयु, पेशा और विचारों से परिचित हैं। इन में से करीब १०० से भी ज्यादा लोग मेरे अच्छे मित्र भी कहे जा सकते हैं क्योंकि हमारे बीच काफ़ी प्राइवेट पत्र व्यवहार हुआ है।
यह लोग भारत के बारे में, हमारी संस्कृति, इतिहास, भारत – पाकिस्तान के बीच हो रही घटनाओं के बारे में जानकारी के लिए मुझे ईमेल करते थे और उत्तर देते देते मैंने इन लोगों से अच्छी दोस्ती कर ली थी। वे लोग भी हमसे अमरीका में हो रही घटनाओं के बारे में हमारी निष्पक्ष राय जानना चाहते थे। यह लोग मेरी अंग्रेजी से काफ़ी प्रभावित होते थे। इनमें से तीन ऐसे भी हैं जो किसी कारण भारत आए थे और बेंगळूरु में कोई काम न होते हुए भी केवल मुझसे मिलने के लिए एक दिन बेंगळूरु आए थे। मैंने उनको बाराती जैसा ट्रीटमेन्ट दिया था जिसकी उन्हें अपेक्षा नहीं थी।
कैलिफ़ोर्निया पहुँचने से पहले हमने इन इंटरनेट के दोस्तों से कहा था कि हम पहली बार अमेरिका आ रहे हैं। सोचा था इनसे अवसर मिलने पर मुलाकात होगी या कम से कम टेलिफ़ोन पर बात होगी और हमने इनसे पता और टेलिफ़ोन नम्बर माँगा ।
पर मुझे निराश होना पडा। सौ से भी ज्यादा लोगों में से केवल १० लोगों ने अपना टेलिफ़ोन नम्बर और पता बताया। इन सब से मेरी टेलिफ़ोन पर बात हुई । केवल एक मित्र घर से निकल कर, १०० से ज्यादा मील गाडी चलाकर मुझसे मिलने आया था। दो घंटे तक हम बात करते रहे। यह मित्र है केविन (Kevin), जिसके साथ मैंने यह चित्र खिंचवाया।
एक खास मित्र के बारे में आपको बताना चाहता हूँ। यह एक महिला थी जो करीब मेरी ही उम्र की थी। इनके साथ मेरा पत्र व्यवहार सबसे ज्यादा था। सोचा था, चाहे अन्य लोगों से न सही, पर इस महिला से अवश्य मिलूँगा। पर जब पता माँगा तो पता नहीं क्यों इस महिला ने मुझसे बचने की कोशिश की! बहाने भी अजीब निकले। कहने लगी की मेरा उसके यहाँ आना ठीक नहीं होगा। उसका घर इस योग्य नहीं है, और उसकी हाउसकीपिंग (housekeeping) इतनी घटिया है कि उसे किसी को घर बुलाते शर्म आती है। उसने यह भी कहा के उसके दो कुत्ते भी हैं जो मेहमानों को काटते हैँ।
समझने वालों को बस इशारा काफ़ी है। हम वहाँ नहीं गए। टेलोफ़ोन पर बात करके सन्तुष्ट हो गए।
भारत में भी मेरे ब्लॉग जगत के कई सारे इंटर्नेट मित्र हैं।
अवश्य, अवसर मिलने पर किसी दिन इन मित्रों से साक्षात भेंट करना चाहता हूँ और कुछ लोगों से भेंट हो चुकी है। सपने में भी सोच नहीं सकता के मेरे भारतीय मित्र मुझसे ऐसा व्यवहार करेंगे जो अमरीकी दोस्तों ने किया।
आज इतना ही। सोचा था यह अन्तिम किस्त होगी। विष्णु बैरागी जी और स्मार्ट इन्डियनजी तो मुझे प्रोत्साहित कर रहे हैं। यदि कुछ और दोस्त भी चाहते हैं तो इसे कुछ दिन और जारी रखूँगा। अपने अनुभवों को आप लोगों पर थोंपना नहीं चाहता। ज्ञानजी की कृपा है हम पर। पाँच किस्तें बर्दाश्त की है। फ़िलहाल मेरा अपना ब्लॉग आरंभ करने का कोई इरादा नहीं है। आखिर कब तक उनकी उदारता का फ़ायदा उठाता रहूँ?
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
और मैने विश्वनाथ जी से कहा है कि यह ब्लॉग उनका अपना ही मानें। हां, पोस्ट का दिन शेड्यूल करने के मामले में आजकल मैं कुछ आलस्य दिखाता हूं। आशा है वे अन्यथा न लेते होंगे। बाकी, वे जितना मन आये लिखें। जब लिखने-पढ़ने वाले राजी हैं, तो हम कौन होते हैं फच्चर फंसाने वाले! :)
हाँ, बतौर ब्लॉगर यह जरूर चाहूंगा कि विश्वनाथ जी अपना एक ब्लॉग बनायें!

GYAN DUTTJISADAR NAMANAAPKA AMERIKA MEIN SWAGAT KARNE KE SAATH SAATH PAHLEPRAVEENJEE KO DHANYAWAAD, JINKEE 'TIPPANI' KEE BADAULATMAIN AAPKE BLOG TAK PAHUNCHA. SAHAJ ATIMYTA AUR HASYA KEERASHMIYON SE NEHLA GAYEE AAPKEE ROCHAK POSTING.AB ITNEE TAREEF KAR LEE HAI TO AAPSE BAAT KARNE KEE CHAH BHEE PRAKAT KAR LOON.AGAR NEW YORK PADHARNA HO, TO DARSHAN BHEE HO PAAYENGE.SHUBHKAMNAON SAHITASHOK VYASPunditvyas@gmail.comPS– NEW YORK STHIT TV CHANNEL ITV KE SAHITYIK KARYAKRIM MEIN "HINDI BLOGGERS" PAR EK YA SERIES OF PROGRAMS BANANE KA VICHAAR HAI, IS SAMABANDH MEIN APNE VICHARON/SUJHAVON/MARG NIRDESHAN SE LAABHANVIT KAREN
LikeLike
यह चित्रमय कथा अच्छी लगी ।
LikeLike
विश्वनाथ जी, आप एक सफल नेटीज़ेन हैं, आपका प्रेम ब्लॉग लेखकों पर भरपूर है. ऐसे ही आप अपने प्रवास के बारे में लिखते रहें, मुझे और यहाँ कई लोगों को काफी अच्छा लग रहा है..केविन ज़रूर पिछले जन्म में भारत निवासी रहे होंगे. सौ मील से चलकर आना सिर्फ प्रेम के बूते ही हुआ है..इंदौर आने का निमंत्रण आपको मिल चुका है, इससे पहले एक निमंत्रण मैं भी दे चुका हूँ, उम्मीद है उसपर कुछ विचार करेंगे. अभी डेढ़ महीने पहले एक ब्लॉगर के शहर सिर्फ इसलिए पहुँच गया क्योंकि उनकी लिखी कहानियाँ बहुत भाती हैं. कोई काम ना होने के बावजूद उस शहर जाकर जो अनुभव हुआ उसका चित्रण शब्दों में नहीं हो सकता. ऑटो से उतरते ही उन्होंने कहा – अरे आपने कहा होता मैं लेने आ जाता.. मुझे लगा आपके रिश्तेदार आपको यहाँ ड्रोप करेंगे. मुलाक़ात के बाद, उन्होंने मेरे लाख मना करने के बावजूद मुझे अपने रिश्तेदार के यहाँ तक छोड़ा.यह आत्मीय रिश्ते हैं, …आभारमनोज
LikeLike
विश्वनाथ जी के लेख से हम सब को इन गोरो के बारे जरुर सोचना चाहिये, यह बुरे नही लेकिन एक दुरी रख कर ही दोस्ती करते हे, हम भारतियो की तरह से नही कि गोरा देखा ओर झट से चिपट गये,इन के आगे पलके बिछा दी,इस लिये हमे भी इन से दोस्ती वेसी ही रखनी चाहिये, ओर इन्हे ज्यादा भाव नही देना चाहिये, बाकी दुसरे कि बिल्ली या कुते को आप कुछ खिला कर तो देखे….. हम भारतियो जेसा जिगरा दुनिया मै अभी किसी ओर का नही.विश्वनाथ जी की बाते बहुत अच्छी लगी शुरु से पढ रहा हुं, इन्होने बेवाकी से सब लिखा, आशा करता हू आगे भी युही लिखेगे, ग्याण जी आप का ओर विश्वनाथ जी का धन्यवाद
LikeLike
`यदि कुछ और दोस्त भी चाहते हैं तो इसे कुछ दिन और जारी रखूँगा'विश्वनाथ जी, लगे रहिए, कोई बिल्ली रास्ता नहीं काटेगी :) रोचक तथ्य के लिए आभार॥
LikeLike
आपके संस्मरण बहुत ही रोचक हैं..और अंदाज-ए-बयाँ एकदम सहज…. कृपया जारी रखें, लिखना ..एक बिल्ली के साथ मुलाकात को भी इतने सुन्दर ढंग से लिखा है…अभी तो यादों के खजाने में बहुत कुछ होगा…..और हाँ तस्वीरें भी बहुत अच्छी हैं.
LikeLike
वेताल कहीं का हो, रहता भारत के जंगलों में था. कोहिमा में. :)
LikeLike
इस ब्लोग ने मेरी अहं को इतनी चोट पहुँचायी कि अब एक कोने में बैठकर, अपने घावों को चाट रहा हूँ। अब हिम्मत ही नहीं है वहाँ फ़िर लौटने की।निश्चिन्त रहिए। हिन्दी भाषा में मैं केवल म्याँऊ करने वाले बिल्ली हूँ, एक गुर्राता हुआ शेर नहीं और किसी को आतंकित करने की क्षमता मुझमें है ही नहीं।रतलाम आकर आपसे मिलने का निमंत्रण के लिए धन्यवाद। कई बार रतलाम स्टेशन पर रुका हूँ, ट्रेन से दिल्ली जाते समय।रतलाम स्टेशन की चाय और नाश्ता ही अब तक मेरे नसीब में लिखा था। पता नहीं कभी रतलाम स्टेशन के बाहर आने का मौका मिलेगा या नहीं पर यदि वहाँ आना हुआ तो अवश्य आप को बता दूँगा और मिलने की कोशिश करूंगा। आपका "हाउसकीपिन्ग" चाहे कैसा भी हो, हमें विश्वास है कि आप का "दिल कीपिंग" श्रेष्ठ होगा। हमें तो आपके दिल में जगह चाहिए, "हाउस" में नहीं! और यदि आप कुत्ते भी पाल रखे हैं तो मुझे कोई आपत्ति नहींउनसे भी दोस्ती कर लेंगे। आप जैसे इनसान के कुत्ते भी किसी को काट नहीं सकते।आपकी इस विशेष और प्रेम से भरी टिप्पणी का यह विशेष उत्तर देना चाहता थाअन्य मित्रों की टिप्पणीयों का भी दो या तीन दिन बाद उत्तर भेजूंगा।शुभकामनाएंजी विश्वनाथ
LikeLike
विष्णु बैरागीजी,मैने केवल आपका नाम लिया तो मैं दुनिया में सबसे अच्छा आदमी बन गया?हम से अच्छे आदमी तो आप हैं भाई। आप ने ही मुझे सबसे पहले प्रोत्साहित क्या।यह सुनकर खुशी हुई के मेरी भाषा में "आतंक" नही है।अजी, मैं इस लायक ही कहाँ कि किसी पढने वाले को अपनी भाषा से आतंकित कर सकूं।मेरा हिन्दी का ज्ञान तो बहुत ही सीमित है। सीधी सादी बोलचाल की भाषा ही जानता हूँ और उसी में लिखता हूँ, क्योंकी औपचारिक रूप से मैंने हिन्दी में न BA और न MA किया है। बस केवल स्कूल में थोडी सी हिन्दी सीखी थी क्योंकी इस अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल में हिन्दी एक अनिवार्य विषय था। उलटा, कुछ पहुंचे हुए ब्लॉग्गर मित्रों के पोस्ट पढकर मैं खुद आतंकित होता हूँ।हाल ही में ज्ञानजी की दी हुई कडी मिलने पर एक ब्लॉग्गर महोदय के यहाँ गया था।पढते पढते पसीना छूटने लगा। भाषा और विचार इतने ऊंचे और अमूर्त कि एक वाक्य भी समझ नहीं सका।हिन्दी का ज्ञानी होने का भ्रम से मुक्त हो गया। continuued …
LikeLike
कुत्ते की पूंछ टेढ़ी की टेढ़ी रहती है, बिल्ली चाहे तो सीधी कर लेती है, लेकिन बिल्ली पूंछ ऐंठती है और कुत्ता पूंछ हिलाता है.
LikeLike